यह त्यौहार नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।
पौराणिक कथा है कि इसी दिन कृष्ण ने एक दैत्य नरकासुर का संहार किया था। सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित करने का विधान है। संध्या के समय दीपक जलाए जाते हैं।
नरक चतुर्दशी को अरूणोदय से पहले प्रत्यूष काल में स्नान करना चाहिए, इससे मृत्यु के पश्चात यमलोक नहीं जाना पड़ता है।
चतुर्दशी के दिन अभ्यंग स्नान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह माना जाता है कि जो भी इस दिन स्नान करता है वह नरक जाने से बच सकता है। अभ्यंग स्नान के दौरान उबटन के लिए तिल के तेल का उपयोग किया जाता है।
अभ्यंग स्नान मुहूर्त = 05:13 से 06:44
अभ्यंग स्नान चतुर्दशी तिथि के प्रचलित रहते हुए हमेशा चन्द्रोदय के दौरान (लेकिन सूर्योदय से पहले) किया जाता है।
ऐसा माना जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्य के उदय होने के बाद नहाता हैं। उसके द्वारा पूरे वर्ष भर में किये गये शुभ कार्यों के फल की प्राप्ति नहीं होती।
प्रात:काल स्नान के बाद घर के बाहर नाली के पास तेल का दिया जलाना चाहिए। नरक चौदस की शाम को दीपदान की परंपरा है जिसे यमराज के निमित्त किया जाता है। इस रात में घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति पूरे घर में एक दिया जलाकर घुमाता है और फिर उसे घर से बाहर कहीं दूर जाकर रख देता है। इस दिया को यम-दीया कहते हैं। इस दौरान परिवार के बाकी सदस्य घर में अंदर ही रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस प्रकार दिए को घर में घुमाकर बाहर ले जाने के साथ ही सभी नकारात्मक शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं। इस दिन एक दीपक पितरों के नाम से भी जलाया जाता है। इस दीपक को जला कर उन सभी पितरों को मोक्ष मिल जाता है जिनकी अकाल मृत्यु होती है।
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