वैदिक ज्योतिष सूर्य-पूजा एवं गायत्री-हवन का सुझाव मुख्य रूप से किसी कुंडली में अशुभ रूप से कार्य कर रहे सूर्य की अशुभता को कम करने के लिए, अशुभ सूर्य द्वारा कुंडली में बनाए जाने वाले किसी दोष के निवारण के लिए अथवा किसी कुंडली में शुभ रूप से कार्य कर रहे सूर्य की शक्ति तथा शुभ फल बढ़ाने के लिए देता है।
यदि आपकी कुंडली में सूर्य नीच अथवा अशुभ हैं या अशुभ सूर्य की दशा चल रही हो आपके लिए 15 जनवरी से अच्छा दिन हो ही नहीं सकता। मकर संक्रांति के दिन अपने घर में एक छोटे से हवन का आयोजन करें और सपरिवार मिलकर गायत्री मन्त्रों से सूर्य के शुभ प्रभाव हेतु संकल्प लेकर हवन करें। हवन करना न भी आये तो सामान्य तरीके से यथाशक्ति हवन करें !
मकर-संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर पधारते हैं। अतः आज के दिन सूर्य हवन से सूर्य देव विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं और जातक को अपनी शुभता का वरदान भी देते हैं।
यदि यज्ञ की व्यवस्था न हो तो गैस जला कर उस पर तवा रख कर गर्म करें, फ़िर मन्त्र पढ़ते हुए यज्ञ की आहुति तवे पर डाल दें। यज्ञ के बाद गैस बन्द कर दें और उस यज्ञ प्रसाद को तुलसी या किसी पौधे के गमले में डाल दें।
यदि यज्ञ की व्यवस्था न हो तो गैस जला कर उस पर तवा रख कर गर्म करें, फ़िर मन्त्र पढ़ते हुए यज्ञ की आहुति तवे पर डाल दें। यज्ञ के बाद गैस बन्द कर दें और उस यज्ञ प्रसाद को तुलसी या किसी पौधे के गमले में डाल दें।
हवन
नारदपुराण के अनुसार हवन के बिना कोई भी पूजा अधुरी मानी जाती है। आज विधि की जानकारी के अभाव में अक्सर लोग मंत्रों के बिना ही यह हवन करते हैं।
अब बात करते हैं दैनिक हवन विधि का जिसका उपयोग आप स्वयं भी कर सकते हैं। सबसे पहलेपूजा के बाद एक पात्र (कड़ाही या मिट्टी के बर्तन) में अग्नि स्थापना करें। उसमें आम की लकड़ी व कपूर रखकर जला दें।
फिर पूरब दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाये ! शुभ कार्यों के लिए हमारे हिंदू धर्म में पूर्व दिशा और उत्तर दिशा को शुभ माना गया है ! हवन करने के लिए हमें पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाना होगा !
ओं भूर्भुव: स्वः ।।
इस मंत्र का उच्चारण करके अग्नि जला अगले मंत्र से आह्वाहन करे। वह मंत्र यह है-
ओं भूर्भुवः स्वर्धौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा ।
तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाधायादधे ।।
ओम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च ।
आस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।
इस मंत्र से जब अग्नि समिधाओं में प्रविष्ट होने लगे तब तीन लकड़ी आठ-आठ अंगुल की घृत में डूबो उनमें से नीचे लिखे एक-एक मंत्र से एक-एक समिधा को अग्नि में चढ़ावें। वे मंत्र ये हैं -
इस मंत्र से एक समिधा अग्नि में चढ़ाएं :-
ओम् अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा ।
इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम् ।
इससे और अगले अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा अग्नि में चढ़ावें :-
ओं समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम् ।
आस्मिन् हव्या जुहोतन, स्वाहा ।।
इस मंत्र से तीसरी समिधा अग्नि में चढ़ावें :-
ओं तं त्वां समिदि्भरड़ि्गरो घृतेन वर्द्धयामसि ।
बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा ।।
इदमग्नयेऽड़ि्रसे-इदन्न मम ।।
जलप्रोक्षण-मन्त्र
ओम् आदितेऽनुमन्यस्व । इससे पूर्व दिशा में
ओम् अनुमतेऽनुमन्यस्व । इससे पश्चिम दिशा मे
ओं सरस्त्वयनुमन्यस्व । इससे उत्तर दिशा मे जल छिड़कें ।
तत्पश्चात अंजलि में जल लेके वेदी के पूर्व दिशा आदि चारों ओर छिड़कें ।
इसके मंत्र है :-
ओं देव सवित: प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञोपतिं भगाय ।
दिव्यो गन्धर्व: केतपू: केतं न: पुनातु वाचस्पतिर्वाचं न: स्वदतु ।।
शुद्ध देशी घी का प्रयोग करें। उसके बाद निम्न मंत्रों से हवन शुरू करें:
ऊं आग्नेय नम: स्वाहा (ओम अग्निदेव ताम्योनम: स्वाहा),
ऊं गणेशाय नम: स्वाहा 11 आहुति
ऊं गौरियाय नम: स्वाहा,
ऊं वरुणाय नम: स्वाहा,
ऊं सूर्यादि नवग्रहाय नम: स्वाहा,
ऊं दुर्गाय नम: स्वाहा,
ऊं महाकालिकाय नम: स्वाहा
ऊं हनुमते नम: स्वाहा,
ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,
ऊं कुल देवताय नम: स्वाहा,
ऊं स्थान देवताय नम: स्वाहा
ऊं ब्रह्माय नम: स्वाहा,
ऊं विष्णुवे नम: स्वाहा,
ऊं शिवाय नम: स्वाहा.
अब सूर्य के लिए हवन 24 या 108 गायत्री-मंत्र के साथ स्वाहा लगाकर करें !
‘ऊँ भूर्भव स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।’ स्वाहा :
इदं गायत्री इदं न मम् !!
इसके पश्चात
ऊं जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा, स्वधा नमस्तुति स्वाहा:,
ओम ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: क्षादी: भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: स्वाहा:,
ओम गुर्रु ब्रह्मा, गुर्रु विष्णु, गुर्रु देवा महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा !
उपरोक्त मंत्रो का जप करने के बाद नारियल में हवन की बची सामग्री डाल ,कलावा बांधकर उसे अग्नि में समर्पित कर दें, इस विधि को वोलि कहते हैं। फिर पूर्ण आहूति के रूप में नारियल, घी, लाल धागा, पान, सुपारी, लौंग, जायफल आदि स्वाहा करें।
स्विष्टकृतहोम:- चमच्च में मीठा और घी लेकर अग्निदेव को अर्पित करें।
पूर्णाहुति मंत्र: गड़ी गोला काट कर उसमें बची हवन सामग्री,घी, पान पत्ता , सुपारी इत्यादि डाल ये मंत्र बोलते हुए अर्पित करें:-
वसोरधारा:-
इस मंत्र से घी नीचे से ऊपर धार बनाते हुए गोले पर डाल दें:-
अब अंत में पानी की सहायता से आचमनी करेंगे ! जो कि कम से कम तीन बार होनी चाहिए ! आचमनी करने के लिए पानी को आम के पत्ते से लेकर तीन बार हवन के ऊपर से घुमा कर बगल में गिरा देंगे. यह प्रक्रिया तीन बार करेंगे उसके बाद हमारी हवन की प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है.
आचार्य मुकेश
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