Contact:9999782755/ 7678689062

PAY NOW

Sunday, 13 January 2019

Makar Sankranti 2019: इस बार 15 जनवरी को मकर संक्रांति, जानें पूजा मुहूर्त, विधि और महत्व


15th
January 2019
(Tuesday)
मकर संक्रांति त्यौहार, हिंदुओं के देव सूर्य को समर्पित है। जब सूर्य धनु से मकर राशि या दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर स्थानांतरित होता है, तब संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। संक्रांति का मतलब है, सूरज का एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करना है। भारतीय ज्योतिष के अनुसार बारह राशियां मानी गयी हैं: मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन, जनवरी महीने में प्रायः 14 तारीख को जब सूर्य धनु राशि से (दक्षिणायन) मकर राशि में प्रवेश कर उत्तरायण होता है तो मकर संक्रांति मनायी जाती है। 

इस   वर्ष 14 जनवरी रात  8 बजकर 05 मिनट पर सूर्य का यह राशि परिवर्तन होगा।  परन्तु उदया-तिथि के अनुसार 15 की सुबह ही सूर्य पहली बार मकर में उदित होगा अतः इस वर्ष की मकर-संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी। 

सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि को होगा, तो इस स्थिति में पुण्यकाल अगले दिन स्थानांतरित हो जाता है। शास्त्रों में उदय काल (सूर्योदय) को ही महत्व दिया गया है। ऐसे में उदयकालीन तिथि की मान्यता के अनुसार 15 जनवरी को ही सूर्योदय से लेकर दोपहर 12.36 बजे तक मकर संक्रांति पर्व का पुण्य काल रहेगा। इस दिन गंगा स्नान के लिए तीर्थ स्थल और संगम तटों पर श्रद्धालुओं का भारी सैलाब उमड़कर स्नान-दान का पुण्य लाभ अर्जित करता है।


मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त- 

पुण्य काल मुहूर्त - 07:14 से 12:36 तक 

(15 जनवरी 2019)

महापुण्य काल मुहूर्त - 07:14 से 09:01 तक

(15 जनवरी 2019 को)


1. पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है।

हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।


2 . इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।


3. एक अन्य पुराण के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी।

राजा भगीरथ सूर्यवंशी थे, जिन्होंने भगीरथ तप साधना के परिणामस्वरूप पापनाशिनी गंगा को पृथ्वी पर लाकर अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करवाया था। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है।

4. सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश, आद्यशक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है, जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है।


5. संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है। संकल्प शक्ति बढ़ती है। ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। मकर संक्रांति इसी चेतना को विकसित करने वाला पर्व है। यह संपूर्ण भारत वर्ष में किसी न किसी रूप में आयोजित होता है।


6. विष्णु धर्मसूत्र में कहा गया है कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याण के लिए तिल के छः प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं- तिल जल से स्नान करना, तिल दान करना, तिल से बना भोजन, जल में तिल अर्पण, तिल से आहुति, तिल का उबटन लगाना।


7. सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है। इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।


8. रामायण काल से भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। राम कथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है।


9. कपिल मुनि के आश्रम पर जिस दिन मातु गंगे का पदार्पण हुआ था, वह मकर संक्रांति का दिन था। पावन गंगा जल के स्पर्श मात्र से राजा भगीरथ के पूर्वजों को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी। कपिल मुनि ने वरदान देते हुए कहा था, 'मातु गंगे त्रिकाल तक जन-जन का पापहरण करेंगी और भक्तजनों की सात पीढ़ियों को मुक्ति एवं मोक्ष प्रदान करेंगी। गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करेगा।'


10. महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।


11. सूर्य की सातवीं किरण भारत वर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।

मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले किसी नदी, तालाब शुद्ध जलाशय में स्नान करें। न हो पाए तो घर में पानी में गंगा-जल तिल या तिल का तेल मिला कर नहाना चाहिए। 11 गायत्री मन्त्र, 11 सूर्य गायत्री मन्त्र और 5 महामृत्युंजय मन्त्र से तिल और गुड़ की आहुति यज्ञ में दें।  इसके बाद नए या साफ वस्त्र पहनकर सूर्य देवता की पूजा करें। चाहें तो पास के मंदिर भी जा सकते हैं। 

इस दिन यदि सम्भव हो तो सुबह गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर कमर तक जल के बीच में खड़े हो सूर्यदेव को जल में तिल-गुड़ अर्घ्य देना चाहिए। ध्यान रखें कि अर्घ्य तांबे के लोटे में दें। पात्र को दोनों हाथों से पकड़ कर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य के समय सूर्य गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।

सूर्य गायत्री मन्त्र जपते हुए सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं। मकर संक्रांति के दिन पीला या श्वेत वस्त्र पहनें। आहार में पहला नाश्ता दिन में तिल और गुड़ का प्रसाद लें। घर में इस दिन खिचड़ी चावल और उड़द की दाल की बना के खाना शुभ होता है।

इसके बाद ब्राह्मणों, गरीबों को दान करें। इस दिन दान में आटा, दाल, चावल, खिचड़ी और तिल के लड्डू विशेष रूप से लोगों को दिए जाते हैं। इसके बाद घर में प्रसाद ग्रहण करने से पहले आग में थोड़ी सा गुड़ और तिल डालें और अग्नि देवता को प्रणाम करें।

मकर संक्रांति पूजा मंत्र

मकर संक्रांति पर गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) के अलावा भगवान सूर्य की पूजा इन मंत्रों से भी पूजा की जा सकती है: 

1- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:

2- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम: 

सूर्य गायत्री मन्त्र- ऊं भाष्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात

गायत्री मन्त्र- ॐ भूर्भूवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्


महामृत्युंजय मन्त्र- ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

इस दिन सूर्य शनि की राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए अगर इस दिन शनिदेव की भी पूजा की जाएगी तो लाभकारी होता है। इस दिन आप काले तिल के साथ ही शनिदेव के आगे सरसों के तेल का दिया जलाएंगे तो आपको दोगुना फल मिलेगा। 

दान के साथ ही गंगा स्नान और भगवान सूर्य की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। उन्हें जल देकर अर्घ्य देकर निकालें। साथ ही किसी गरीब या पंडित को उस लोटे का दान कर दें। ध्यान रहे शुभ मुहूर्त में आप दान करेंगे तो अधिक फलदायी होगा।

कहा जाता है कि इस दिन तिल, गुड़ दान तो दिया ही जाता है, लेकिन अगर इस दिन घर में गुड़ या शक्कर के साथ तिल को पीसकर तिलकुट बनाया जाए तो वह शुभ होता है। वहीं कई जगह पर इस दिन पतंग उड़ाना भी शुभ माना जाता है।

इस साल मकर संक्रांति 14 नहीं 15 जनवरी को मनाई जाएगी। दरअसल, 15 जनवरी को सूर्योदय काल में सूर्य देव मकर राशि में स्थित होंगे, जिससे शास्त्रानुसार उदयकालीन तिथि की मान्यता अनुसार 15 जनवरी को सूर्योदय से से दोपहर 12.36 बजे तक मकर संक्रांति के पुण्य काल में स्नान दान किया जाना लाभदायक है।

इस बार मकर संक्रांति अमृतसिद्धि, सर्वार्थसिद्धि और रवि योग में मनेगी। वहीं इस दिन अश्विनी नक्षत्र भी रहेगा, जो बेहद मंगलकारी है।

मकर संक्रांति पर कुछ काम करने से रोका गया है। ये इस प्रकार हैं-

- इस दिन बाल धोने से बचना चाहिए।

- बाल न कटवाएं।

- दाढ़ी न बनवाएं।

- किसी से उधार न लें।

- अन्न का अपमान न करें।

- इस दिन फसल नहीं काटनी चाहिए।

- गाय या भैंस का दूध निकालने जैसा काम नहीं करना चाहिए।

- इस दौरान किसी से भी कड़वे बोल न बोलें।

- किसी भी वृक्ष को नहीं काटें।

- मांस और शराब के सेवन से इस दिन बचना चाहिए।

- घर के बड़ों का निरादर न करें।

- भिखारी को न भगाएं।

- ईश्वर निंदा से बचें।

- जानवर-पंछियों को न दुत्कारें।


आचार्य मुकेश 


0 comments:

Post a Comment