हमारे सनातन धर्म के किसी भी प्रक्रिया के साथ कोई न कोई वैज्ञानिक कारण जुड़ा होता है ! बात करतें हैं माता की खेत्री की जो नवरात्रे में हर घर में बोई जाती है ! लेकिन बहुत कम ही लोग इसका सही उपयोग जानते हैं, ज्यादातर लोग इसे हवन के बाद विसर्जित कर देते हैं !
आइये जानें क्या है इसका सही उपयोग:
१. कुछ ज्वारे माता के चरणों में अर्पित करने के बाद आशीर्वाद रूप में सभी के मस्तक पे लगाएं तथा कुछ अपनी तिजोरी,पर्श,गल्ले इत्यादि में भी रखें !
२. हवन एवं पूजा के बाद ज्वार का रस निकाल कर घर के सदस्यों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित कर देना चाहिए! इसका रस हमारे शरीर को डिटॉक्सिफाई तो करता ही है साथ में इसे प्रसाद रूप में पीने से माता की असीम शक्ति भी मिलती है और हमारे शरीर में उपस्थित नकरात्मक ऊर्जा को खत्म करने की ताकत भी रखती है ! अगर आपके घर में ज्यादा ज्वारे न भी निकली हो तो निराश न हों , उसे शुद्ध जल में मिला कर पीस लें और उसका रस सभी परिवारजनों में वितरित कर दें !
* नवरात्र के प्रथम दिन कलश की स्थापना की जाती है। कलश पूजन के बाद उसके नीचे खेत्री बोई जाती है। वैसे तो 2 या 3 दिन में ही जौ से अंकुर निकल आते हैं लेकिन खेत्री देर से निकले तो इसका अर्थ होता है कि देवी संकेत दे रही है कि आने वाले वर्ष में अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। मेहनत करने पर उसका फल देर से प्राप्त होगा।
* खेत्री का रंग नीचे से पीला अौर ऊपर से हरा हो तो इसका अर्थ होता है कि वर्ष के 6 महीने व्यक्ति के लिए ठीक नहीं है परंतु बाद में सब कुशल मंगल होगा।
* खेत्री का रंग नीचे से हरा अौर ऊपर से पीला होने पर संकेत होता है कि वर्ष की शुरुआत अच्छी होगी लेकिन बाद में उलझन अौर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
* खेत्री का श्वेत या हरे रंग में उगना बहुत ही शुभ संकेत होता है। ऐसा होने पर माना जाता है कि पूजा सफल हो गई है। आने वाला पूरा वर्ष खुशहाल अौर सुख-समृद्धि वाला होगा।
संकट से मुक्ति के उपाय
* खेत्री के अशुभ संकेत होने पर मां दुर्गा से कष्टों को दूर करने के लिए प्रार्थना करें अौर दसवीं तिथि को नवग्रह के नाम से 108 बार हवन में आहुती दें। उसके पश्चात मां के बीज मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः स्वाहाका 1008 बार जाप करते हुए हवन करें। हवन के बाद मां की आरती करें अौर हवन की भभूत से प्रतिदिन तिलक करें।
* रोग की भविष्यवाणी होने पर प्रतिदिन नीचे लिखे मंत्र का जप करें।
"रोगान शेषान पहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान्सकलान भीष्टान्॥
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयांति॥
यदि इन सबके के लिए समय न हो तो नित्य कवच, कीलक, अर्गला और सिद्कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से भी नवग्रहों की कृपा बनी रहती है अौर व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है।
ASTRO NAKSHATRA 27
ACHARYA MUKESH
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