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Saturday, 3 November 2018

गोवत्स द्वादसी । 4 नवंबर 2018। लक्ष्मी प्राप्ति हेतु करें गौ माता की पूजन



यह पर्व पुत्र की मंगल-कामना के लिए किया जाता है। इस पर्व पर गीली मिट्टी की गाय, बछड़ा, बाघ तथा बाघिन की मूर्तियां बनाकर पाट पर रखी जाती हैं तब उनकी विधिवत पूजा की जाती है। अगर आपके घर या कहीं और गाय माता है तो फिर वहां उनके समक्ष जाकर पूजा करें । आज के दिन गाय को साक्षात लक्ष्मी का रूप मानते हुए पूजा करनी चाहिए।

भारतीय धार्मिक पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है। पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है, जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ. गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।

ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है. गौ माता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है।

भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।



दिवाली से पहले आने वाली इस द्वादशी को गाय-बछड़ों की पूजा की जाती है। गोवत्स द्वादशी का महत्व देवों ने भी गाया है। शास्त्रों में बताया जाता है कि गाय माता पूजनीय है। उनमें हिन्दू धर्म के सभी देवी-देवता वास करते है। गाय पूजन और कार्तिक मास का महत्व दोनों के कारण ही कार्तिक मास की इस द्वादशी को विशेष माना गया है। इस साल गोवत्स द्वादशी 4 नवंबर, रविवार के दिन है। गाय माता की इस दिन सेवा-पूजन आदि करने वाले व्यक्ति के सारे पापों का नाश होता है साथ ही गौ माता के आशीर्वाद से जातक के जीवन में खुशियों का आगमन होता है। 

कैसे करें गोवत्स द्वादशी पूजा *

🐂 गोवत्स द्वादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 

🐂दूध देने वाली गाय को बछड़े सहित स्नान करवाकर दोनों को नया वस्त्र ओढ़ाया जाता है।🐂 

🐂दोनों को फूलों की माला पहनाकर माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। सींगों को सजाएं।।

🔆तांबे के पात्र में जल, अक्षत, तिल, सुगंधित पदार्थ तथा फूलों को मिला लें।


क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:।।

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उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करें। ↘️
अर्थात- समुद्र मंथन के समय क्षीरसागर से उत्पन्न सुर तथा असुरों द्वारा नमस्कार की गई गौ माता आपको बार-बार नमस्कार करता हूं। आप मेरे किए गए इस अर्घ्य को स्वीकार करें। इसके बाद गाय को उड़द की दाल से बने हुए भोज्य पदार्थ खिलाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करें।

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सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता। 

सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस।। 

तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते। 

मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी।।

अर्थात- हे जगदम्बे हे, स्वर्गवासिनी देवी, हे सर्वदेवमयी, मेरे किए गए इस अन्न को आप ग्रहण करें। समस्त देवताओं द्वारा अलंकृत गाय माता आप मेरी मनवांछित इच्छा पूर्ण करें। इस प्रकार गाय-बछड़े का पूजन करने के बाद गोवत्स द्वादशी की कथा पढ़ें और सुनें। गोवत्स द्वादशी के दिन गौमाता पूजन कर आरती करें।

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