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Acharya Mukesh

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

Acharya Mukesh...Astro Nakshatra 27

“कुछ अलग करना है, तो भीड़ से हट कर चलो, भीड़ साहस तो देती है, पर पहचान छिन लेती है।”

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Sunday, 30 December 2018

1 जनवरी 2019 (मंगलवार) सफला एकादशी : वर्ष २०१९ में हर सफलता के लिए करें यह व्रत | व्रत कथा | पूजा विधि, मुहूर्त , पारण विधि एवं समय |


नये साल 2019 की शुरुआत पावन तिथि एकादशी से हो रही है। भगवान विष्णु की साधना-आराधना के लिए समर्पित एकादशी का सनातन परंपरा में विशेष महत्व है। पौष मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाने वाला यह व्रत जीवन में सफलता पाने और मनोकामना को पूरा करने के लिए विशेष रूप से किया जाता है।

                            एकादशी व्रत कथा

पद्म पुराण में सफला एकादशी के महात्म्य का वर्णन मिलता है। भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया है कि सफला एकादशी व्रत के देवता श्री नारायण हैं। जो व्यक्ति सफला एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करता है। रात्रि में जागरण करते हैं ईश्वर का ध्यान और श्री हरि के अवतार एवं उनकी लीला कथाओं का पाठ करता है उनका व्रत सफल होता है। इस प्रकार से सफला एकादशी का व्रत करने वाले पर भगवान प्रसन्न होते हैं। व्यक्ति के जीवन में आने वाले दुःखों को पार करने में भगवान सहयोग करते हैं। जीवन का सुख प्राप्त कर व्यक्ति मृत्यु के पश्चात सद्गति को प्राप्त होता है। 

पद्म पुराण में सफला एकादशी की जो कथा मिलती है उसके अनुसार महिष्मान नाम का एक राजा था। इनका ज्येष्ठ पुत्र लुम्पक पाप कर्मों में लिप्त रहता था। इससे नाराज होकर राजा ने अपने पुत्र को देश से बाहर निकाल दिया। लुम्पक जंगल में रहने लगा। पौष कृष्ण दशमी की रात में ठंड के कारण वह सो न सका। सुबह होते होते ठंड से लुम्पक बेहोश हो गया। आधा दिन गुजर जाने के बाद जब बेहोशी दूर हुई तब जंगल से फल इकट्ठा करने लगा। शाम में सूर्यास्त के बाद यह अपनी किस्मत को कोसते हुए भगवान को याद करने लगा। एकादशी की रात भी अपने दुःखों पर विचार करते हुए लुम्पक सो न सका। 

इस तरह अनजाने में ही लुम्पक से सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया। इस व्रत के प्रभाव से लुम्पक सुधर गया और इनके पिता ने अपना सारा राज्य लुम्पक को सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गये। काफी समय तक धर्म पूर्वक शासन करने के बाद लुम्पक भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात इसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। 

जो लोग यह व्रत नहीं कर पाते हैं उनके लिए शास्त्रों में यह विधान है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करें। दैनिक जीवन के कार्य करते हुए भगवान का स्मरण करें। संध्या के समय पुनः भगवान की पूजा और आरती के बाद भगवान की कथा का पाठ करें। एकादशी के दिन चावल से बना भोजन, लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा का सावन न करें।
सफला एकादशी के लिए...
२nd को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय = 07:38 से 09:21
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय = 07:38
एकादशी तिथि प्रारम्भ = 1/जनवरी/2019 को 01:16 बजे
एकादशी तिथि समाप्त = 2/जनवरी/2019 को 01:28 बजे


पारण-विधि :-

द्वादशी को सेवा पूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए । ‘मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए’ - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए ।

राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। 
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।

एकादशी के दिन ये मंत्र के जप से विष्णु सहस्त्रनाम जप का फल मिलता है।


श्री हरि के कृपा से सफल होगी साधना


सफला एकादशी व्रत के पूजनीय देवता श्रीहरि हैं। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति विधि-विधान से भगवान विष्णु की साधना करते हुए एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करता है, उसे वर्षों की तपस्या का पुण्य प्राप्त होता है। पूर्ण श्रद्धा भाव से पूजन करने वाले साधक के व्रत से प्रसन्न होकर देवाधिदेव भगवान विष्णु उसकी सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं। उसके दु:खों को दूर करते हुए उसे प्रत्येक क्षेत्र में सफलता दिलाते हैं। भगवान विष्णु की कृपा पाकर साधक सभी सुखों को भोगता हुआ मोक्ष प्राप्त करता है।



हिन्दु कैलेण्डर में हर ११वीं तिथि को एकादशी उपवास किया जाता है। एक माह में दो एकादशी व्रत होते हैं जिसमे से एक शुक्ल पक्ष के समय और दूसरा कृष्ण पक्ष के समय होता है। भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके भक्त एकादशी व्रत रखते हैं।

एकादशी उपवास तीन दिनों तक चलता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अगले दिन पेट में भोजन का कोई अवशेष न रहे श्रद्धालु उपवास के एक दिन पहले केवल दोपहर में भोजन करते हैं। एकादशी के दिन श्रद्धालु कठोर उपवास रखते हैं और अगले दिन सूर्योदय के बाद ही उपवास समाप्त करते हैं। एकादशी उपवास के समय सभी तरह के अन्न का भोजन करना वर्जित होता है।

श्रद्धालु अपनी मनोशक्ति और शरीर की सामर्थ के अनुसार पानी के बिना, केवल पानी के साथ, केवल फलों के साथ अथवा एक समय सात्विक भोजन के साथ उपवास को करते हैं। उपवास के समय किस तरह का भोजन खाना है यह निर्णय उपवास शुरू करने से पहले लिया जाता है।


एकादशी व्रत व पूजा विधि

नारदपुराण के अनुसार, जातक ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घट स्थापना करें और उसके ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें और गंगाजल के छींटे दें। भगवान की तस्वीर या मूर्ति पर रोली और अक्षत से तिलक करें और सफेद फूल चढ़ाएं। इसके बाद घी का एक दीपक जलाएं और उनकी आरती उतारें। इसके बाद उनका भोग लगाएं। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान व दक्षिणा देते हैं। इस दिन किसी भी एक समय फलाहार किया जाता है।


आचार्य मुकेश के अनुभवों के आधार पर कुछ सुझाव:


एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है। उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से दातुन कुल्ला करना चाहिये ताकि अन्न का अंश मुंह में शेष न रहे। इसके बाद रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। अधिक बोलकर अपनी ऊर्जा को भी व्यर्थ न करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें। भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें। दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें। जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।


एकादशी करते हों तो ध्यान रखें कुछ बातों का :


🚫1. एकादशी के दिन सुबह दातुन या ब्रश न करें!नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। * यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें।

🚫2. एकादशी के दिन झाड़ू पोछा इत्यादि बिलकुल न करें! क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।

🚫3. एकादशी के दिन तुलसीदल न तोड़ें, भगवन को भोग लगाने हेतु एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लें।

🚫4. अगर घर में दक्षिणावर्ती शंख हो तो उसमे जल लेकर भगवान शालिग्राम को स्नान करवाएं, या पंचामृत से स्नान करवाएं!इस से सारे पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं तथा माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रशन्न होते हैं।

🚫5.एकादशी के दिन भगवान् श्री हरि को पीली जनेऊ अर्पित करें। पान के पत्ते पर एक सुपारी, लौंग, इलायची, द्रव्य, कपूर, किसमिस तुलसीदल के साथ इत्यादि अर्पित करें, साथ ही ऋतुफल भी अर्पित करें! एक तुलसीदल भगवान् पर भी चढ़ाएं पर रात्रि में उसे हटाना न भूले।

🚫6.एकादशी के दिन सुबह संकल्प लें, मन में मनोकामना करते हुए श्री हरि से व्रत में रहने का संकल्प करें!

🚫7. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है, कोशिश करें की इस एकादशी जरूर जागरण करें, इस से व्रत फल 100 गुणा बढ़ जाता है!

🚫8. एकादशी के दिन चावल भूल से भी न छुएं, न ही घर में चावल बनें, इस दिन चावल खाने से बेहद नकरात्मक फल प्राप्त होते हैं, भाग्य खंडित होता है! एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। * केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। * प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।

🚫9. एकादशी के दिन कम से कम बोलें, पापी लोगों से बात न करें, जिनके मन में लालच, पाप या कोई भी अनैतिक तत्व दिखे कम से कम इस दिन उन सभी से दूर रहने का प्रयत्न करें! परनिंदा से बचें!

🚫10.श्री हरि की विशेष कृपा हेतु ॐ नमो भगवते वासुदेवाय की 11 माला सुबह और 11 माला शाम में करें, साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करें! एकादशी व्रत कथा कहे या सुनें।

🚫11. शाम में केले के पेड़ के नीचे एवं तुलसी में दीपक जलाना न भूले, इसे दीप-दान कहते हैं!

🚫12. माता लक्षमी के बिना विष्णु अधूरे हैं इसलिए माता की भी आरती अवश्य करें, सुबह और शाम शंखनाद एवं घंटियों की ध्वनि में ॐ जय जगदीश हरे की आरती करना न भूले!

🚫13. एकादशी के दिन केले के पेड़ की 7 परिक्रमा करने से धन में बढ़ोतरी होती है!

🚫14. व्रत पंचांग के समयानुसार ही खोलें अन्यथा लाभ की जगह नुक्सान भी हो सकता है, व्रत एवं पूजा के नियमों में करने से ज्यादा कुछ बातें जो हमे नहीं करनी चाहिए वो ही ज्यादा महत्व रखती है. अतः सावधानी से की गई पूजा सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करती है.

🚫15 .आज के दिन किसका त्याग करें- 

🍁मधुर स्वर के लिए गुड़ का। 
🍁दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। 🍁शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का। 
🍁सौभाग्य के लिए मीठे तेल का। 
🍁स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का। 

प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।


🚫16. दोनों ही दिन शाम में संध्या आरती कर दीपदान करें। अखंड लक्षमी प्राप्त होगी। पैसा घर में रुकेगा।

🚫17. शंख ध्वनि से भी माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रसन्न होते हैं। अतः पूजा के समय जरूर शंख का उपयोग करें । पूजा के पहले शुद्धिकरण मंत्र तथा आचमन करना न भूलें क्योंकि इसके बिना पूजा का फल प्राप्त नहीं हो पाता।

🚫18. तुलसी की विधिवत पूजा करके उसकी 7 
परिक्रमा करें। श्री हरि की तुलसी की मंजरी से पूजा करें |


ASTRO NAKSHATRA 27
ACHARYA MUKESH

31 दिसम्बर 2018 सोमवार, पौष कृष्ण पक्ष, दशमी, आज का पंचांग (Aaj Ka Panchang)


हिन्दू धर्म में पंचाग को बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि नित्य पंचाग को पढ़ने वाले जातक को देवताओं का आशीर्वाद मिलता है उसको इस लोक में सभी सुख और कार्यो में सफलता प्राप्त होती है। पंचाग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-



1:- तिथि  2:- वार  3:- नक्षत्र  4:- योग  और  5:- करण .


शास्त्रों के अनुसार पंचाग को पढ़ना सुनना बहुत शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम जी भी नित्य पंचाग को सुनते थे ।

शास्त्रों के अनुसार नित्य उस दिन की तिथि का नाम लेने उसका नाम सुनने से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
वार का नाम लेने सुनने से आयु में वृद्धिनक्षत्र का नाम लेने सुनने से पापो का नाश होता है।
योग का नाम लेने सुनने से प्रियजनों का प्रेम मिलता है और करण का नाम लेने सुनने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती है। इसलिए निरंतर शुभ समय के लिए प्रत्येक मनुष्य को नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।


31` दिसम्बर 2018 सोमवार का पंचांग

🌞↗️सूर्योदय - 07:18  🌞↘️सूर्यास्त - 17:30                        
🌕↗️चन्द्रोदय - 26:43+ 🌘↘️चन्द्रास्त - 13:38


पञ्चाङ्ग
🔘वार सोमवार   💠तिथि - कृष्ण पक्ष
दशमी - 25:16+ तक
एकादशी

तिथि का स्वामी - दशमी तिथि के स्वामी यमराज जी है तथा एकादशी तिथि के स्वामी विश्वदेव जी है ।

दशमी तिथि के देवता यमराज जी हैं। यह दक्षिण दिशा के स्वामी है। इनका निवास स्थान यमलोक है। इस दिन इनकी पूजा करने, इनसे अपने पापो के लिए क्षमा माँगने से जीवन की समस्त बाधाएं दूर होती हैं, निश्चित ही सभी रोगों से छुटकारा मिलता है, नरक के दर्शन नहीं होते है अकाल मृत्यु के योग भी समाप्त हो जाते है।
इस तिथि को धर्मिणी भी कहा गया है। समान्यता यह तिथि धर्म और धन प्रदान करने वाली मानी गयी है । दशमी तिथि में नया वाहन खरीदना शुभ माना गया है। इस तिथि को सरकार से संबंधी कार्यों का आरम्भ किया जा सकता है।

सोमवार के दिन शिवलिंग पर मिश्री चढ़ाकर फिर जल चढ़ाएं। अथवा किसी भी शिव मंदिर में मिश्री का पैकेट अर्पित करें।
नक्षत्र
चित्रा - 08:19 तक
स्वाती

नक्षत्र के देवता  :- चित्रा नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा है एवं स्वाती नक्षत्र के देवता समीर है ।

योग
सुकर्मा - 27:43+ तक
धृति

करण
वणिज - 13:22 तक
विष्टि - 25:16+ तक
बव

विक्रम संवत् 2075 संवत्सर (विरोधाकृत)
शक संवत - 1940 (विलंबी)
अयन - दक्षिणायण
वैदिक ऋतु:- हेमन्त
द्रिक ऋतु:-शिशिर
मास - पौष माह

सूर्य राशि 

धनु

चन्द्र राशि

तुला

सूर्य नक्षत्र

पूर्वाषाढ़ा 

🌅दिनमान

10 घण्टे 12 मिनट्स 29 सेकण्ड्स


🌌रात्रिमान

13 घण्टे 47 मिनट्स 47 सेकण्ड्स


🙏शुभ समय🙏

अभिजित मुहूर्त
12:04 से 12:45
अमृत काल
23:47 से 25:25+

⛔अशुभ समय⛔

🚫गुलिक काल
13:41 से 14:57
🚷यमगण्ड
11:08 से 12:24
👹राहुकाल
08:34 से 09:51
ऊपर दिए गए राहुकाल का आकलन दिल्ली के सूर्योदय को ध्यान में रखते हुए किया गया है !

राहुकाल सप्ताह के सातों दिन में निश्चित समय पर लगभग 90 मिनट तक रहता है। इसे अशुभ समय के रूप मे देखा जाता है और इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है। राहु काल अलग-अलग स्थानों के लिये अलग-अलग होता है। इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है। इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है। सप्ताह के प्रथम दिवस अर्थात सोमवार के प्रथम भाग में कोई राहु काल नहीं होता है। यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनिवार को तीसरे भाग, शुक्रवार को चौथे भाग, बुधवार को पांचवे भाग, गुरुवार को छठे भाग, मंगलवार को सातवे तथा रविवार को आठवे भाग में होता है। यह प्रत्येक सप्ताह के लिये निश्चित रहता है।

इस गणना में सूर्योदय के समय को प्रात: 06:00 (भा.स्टै.टा) बजे का मानकर एवं अस्त का समय भी सांयकाल 06:00 बजे का माना जाता है। इस प्रकार मिले 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है। हां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है और इसी कारण से ये समय कुछ खिसक भी सकता है। अतः इस बारे में एकदम सही गणना करने हेतु सूर्योदय व अस्त के समय को पंचांग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाल लेते हैं जिससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना भी नहीं रहती है।
रविवार -सायं -4.30 से 6.00 तक।
सोमवार -प्रातः -7.30 से9.00 तक।
मंगलवार -दिन -3.00 से 4.30तक।
बुधवार -दिवा -12.00 से 1.30तक।
गुरूवार -दिन -1.30 से 3.00तक।
शुक्रवार -प्रातः -10.30 से12.00तक।
शनिवार -प्रातः -9.00 से 10.30तक।

⚠️पञ्चक:- समाप्त 

सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही खर मास या मलमास प्रारंभ हो जाएगा। खर मास में विवाह, नूतन गृह प्रवेश, नया वाहन, भवन क्रय करना, मुंडन जैसे शुभ कार्यों पर एक माह के लिए प्रतिबंध लग जाएगा।

⚓निवास और शूल

होमाहुति
राहु

⚓दिशा शूल⛵पूर्व

राहु वास
उत्तर-पश्चिम

🔥अग्निवास :-

पृथ्वी - 25:16+ तक
आकाश


दिशाशूल (Dishashool)- सोमवार को पूर्व दिशा का दिकशूल होता है । इस दिन कार्यो में श्रेष्ठ सफलता के लिए घर से दर्पण देखकर, दूध पीकर जाएँ ।

विशेष - दशमी को कलम्बी का सेवन नहीं करना चाहिए ।

पर्व त्यौहार- 

मुहूर्त (Muhurt) - दशमी तिथि को यात्रा , शिल्प , चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन व गृह प्रवेश शुभ है।


ग्रह-स्थिति:
🌞सूर्य-राशि ~धनु
🌙चंद्र-राशि~तुला
🔺मंगल ~ मीन
🔘बुध~ वृश्चिक
🔶बृहस्पति~वृश्चिक
◽शुक्र ~ तुला
◾शनि (⬇️अस्त )~धनु
👹राहु ~ कर्क
👺केतु ~ मकर

नोट :- पंचांग  को नित्य पढ़ने से जीवन से विघ्न दूर होते है, कुंडली के ग्रह भी शुभ फल देने लगते है। अत: सभी जातको को नित्य पंचाग को अनिवार्य रूप से पढ़ना ही चाहिए और अपने इष्ट मित्रो को भी इससे अवगत कराना चाहिए ।
                                       
                     

Saturday, 29 December 2018

घर में है लड्डू गोपाल की मूर्ति तो अवश्य बरतें ये सावधानियां: Acharya Mukesh



भगवान कृष्ण अपने हर रूप में भक्तों का मन मोह लेते हैं। चाहें वे रणछोर हों या माखनचोर, बृज के गोपाले हों या फिर गोपियों के वस्त्र हरण वाले शरारती बालक, उनका हर रूप लुभावना है। भगवान कृष्ण बेहतरीन नीतिकार थे, लेकिन इसके साथ ही साथ प्रेम की व्याख्या भी उनसे बेहतर कोई और नहीं समझा सकता। भगवान कृष्ण अन्य किसी भी देवी-देवता से अलग और अनोखे हैं, यही वजह है कि घर में उनकी मूर्ति रखकर पूजा-अर्चना करने के तरीके भी अलग हैं। लेकिन सच यह है कि इस बात से बहुत कम लोग अवगत हैं कि अगर हमने घर में भगवान कृष्ण(लड्डू गोपाल) की मूर्ति स्थापित की हुई है तो उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए।

1.ऐसा कहा जाता हैं जो लोग संतान की चाहत रखते हैं उन्हें अपने घर में लड्डू गोपाल को स्थापित करना चाहिए। आपको रोजाना उन्हें नहलाना और भोग लगाना चाहिए। दो दिन में कम से एक बार अवश्य लड्डू गोपाल को नहलाएं और उनके वस्त्र बदलें, जैसे कि आप अपने बच्चे के लिए करते हैं। लड्डू गोपाल को कदापि भूखा ना रहने दें।

2.अगर आप घर में भगवान कृष्ण और राधा रानी की मूर्ति स्थापित करने जा रहे हैं तो ध्यान दें कि आप अपने घर का हर कोना साफ रखें। मन, वचन और कर्म से जरा सी भी गंदगी आपको अपेक्षित परिणाम नहीं दिलवाएगी।


3.भगवान श्रीकृष्ण अपने गले और कलाई पर वैजयंती माला पहनते हैं। अगर आप भगवान कृष्ण को प्रसन्न कर उनसे कृपा पाना चाहते हैं तो अपने घर के मंदिर में अवश्य ही वैजयंती माला रखें।

4.भगवान श्रीकृष्ण को रोजाना प्रसाद चढ़ाएं, प्रसाद में घर का बना माखन और मिसरी का भोग लगाएं। यह भगवान कृष्ण को अत्यंत प्रिय है।


5.मोरपंख देखने में तो बहुत आकर्षक होता ही है, लेकिन इसके साथ ही साथ यह भगवान कृष्ण के चमत्कारी व्यक्तित्व की झलक भी देता है। ऐसा कहा जाता है कि घर में मंदिर में मोरपंख रखने से आपके परिवार पर खुशियां बरसती रहती है।


6.भगवान कृष्ण को गाय और उनके बछड़ों से अत्याधिक स्नेह हैं। वे दूध, माखन और अन्य दूध से बने पदार्थ खाते हैं। हर कृष्ण भक्त को अपने घर के मंदिर में गाय और बछड़े की जोड़ी रखनी चाहिए।


7.कृष्ण अपनी बांसूरी की धुन से सभी को मंत्रमुग्ध करते हैं, उनकी बांसूरी अलौकिक है। लेकिन क्या आप जानते हैं घर में बांसूरी रखकर आप सौभाग्य को अपने प्रति आकर्षित करते हैं। कृष्ण की मूर्ति के अलावा घर में लकड़ी की बांसूरी भी अवश्य रखें।


8.प्रतिदिन राधा रानी को तुलसी की पत्तियां अर्पित करें, राधा रानी स्वयं भगवान कृष्ण को उन पत्तियों का भोग लगा देंगी। ध्यान रखें कि ये काम आप स्वयं ना करें।

9.इन्हें ३ बार खाना खिलाएं / दूध पिलायें ! कोई  भी फल या मिठाई लाएं तो पहले इन्हे भोग लगा कर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करें !

Acharya Mukesh

इस वृक्ष की जड़ से भिखारी भी बन जाता है राजा Astro Nakshatra 27:- Acharya Mukesh



अधिकांश व्यक्ति धन समस्या से काफी परेशान रहते हैं या फिर रोग से परेशान रहते हैं कुछ व्यक्ति धन तो कमा पाते हैं लेकिन उनके घर में बिल्कुल उन्नति नहीं हो पाती जितना भी आप कमाते हैं फिजूल खर्च होने लगता है या फिर कई बार व्यापार इतना मंदा हो जाता है कि बिल्कुल भी कमाई नहीं हो पाती है ऐसे में व्यक्ति बहुत ज्यादा परेशान रहने लगता है।

लेकिन हमारे शास्त्रों में वर्णित कुछ वनस्पतियां ऐसी होती हैं यदि हम श्रद्धा एवं विश्वास के साथ उन्हें अपने पास रखते हैं तो वह हमारा भाग्य बिल्कुल प्रबल कर देती हैं और जब आपका भाग्य आपका साथ देता है तो आपको निश्चित ही सफलता मिलती है ऐसे में आप इस उपचार को अपना सकते हैं।

इससे आपको बहुत ही ज्यादा आश्चर्यजनक लाभ देखने को मिलेंगे आपको यह उपचार सिर्फ गुरुवार के दिन ही करना है कुछ वृक्षों की जड़ें इतनी चमत्कारिक होती हैं और इतनी दुर्लभ होती है कि उनको अगर आप अपने पास रखते हैं तो वह बहुत ही ज्यादा लाभ आपको देती है। धन प्राप्ति के नए-नए मार्ग खुलने लग जाते हैं और सुख समृद्धि बढ़ने लगती हैं।



गुरुवार के दिन ही इस उपचार को करना है सर्वप्रथम आपको इस दिन नहा धोकर पीले वस्त्र पहनने हैं। अर्थात् कि आप कोई भी पीले रंग के कपड़े पहन लीजिए और यदि आपके पास पीले कपड़े नहीं है तब आप किसी पीले रुमाल का या फिर किसी भी अन्य कपड़े का इस्तेमाल कर सकते हैं। उस पीले रुमाल को अपने सिर पर रख सकते हैं इस उपचार को करने के लिए आपको सबसे पहले केले का पेड़ देखना है कहीं पर भी आप को यह दिखाई देता है तो इसी प्रकार आप को पीला कपड़ा अपने सिर पर रख कर या कंधे पर रखकर वहां पर जाना हैं।

इस बात का विशेष ध्यान रखना है जब भी आप यह करेंगे तो आपको कोई भी टोके नहीं अगर यह पेड़ किसी के घर में है तो आप उसे पहले ही बता सकते हैं जिससे आप को उस कार्य को करते समय ना कोई देखे और ना ही कोई टोके बिल्कुल चुपचाप से ही आपको यह करना है गुरुवार के दिन करना है। यदि उस दिन गुरू पुष्य नक्षत्र का योग हो तो फिर कहना ही क्या है ?

उस केले के पेड़ के पास जाकर आपको उस केले के पेड़ की जड़ लेनी है थोड़ी सी भी अगर आप को मिलती है तो आपका काम हो जाएगा उसके बाद आपको चुपचाप उस जड़ को लाकर अपने पास में रखनी है उसके बाद उस जड़ को गंगाजल से धो लें एवं पीला धागा बांधकर उसे अपनी तिजोरी या पर्स में हमेशा रखें।अब इस केले की जड़ को पीले कपड़े में लपेटकर अपने पर्स में रखे | इस केले की जड़ को इसी प्रकार सदैव अपने पर्स में रखे और प्रत्येक गुरुवार को किसी न किसी रूप में पीला वस्त्र धारण करने का प्रयत्न करें | इससे आप देखेंगे कि आपके धन प्राप्ति के मार्ग जल्दी से जल्दी खुलेंगे और आपके जीवन में सुख समृद्धि एवं तरक्की से आपका जीवन खुशहाल हो जाएगा।

इस उपाय के करने से कुछ ही दिनों में परिणाम आपके सामने आने लगेंगे | आपके अनायास ही होने वाले खर्चे कम होने लगेंगे | आपका पर्स सैदव पैसे से भरा रहेगा | धन संचय करने में आसानी रहेगी | धन-प्राप्ति के द्वार खुलने लगेंगे | यह परीक्षित प्रयोग धन से जुडी छोटी-छोटी परेशानियों में बड़ा ही लाभकारी सिद्ध होता है |
Acharya Mukesh
Astro Nakshatra 27

30 दिसम्बर 2018 रविवार का पंचांग | पौष ,नवमी | Today Panchang | Acharya Mukesh |


हिन्दू धर्म में पंचाग को बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि नित्य पंचाग को पढ़ने वाले जातक को देवताओं का आशीर्वाद मिलता है उसको इस लोक में सभी सुख और कार्यो में सफलता प्राप्त होती है। पंचाग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-

1:- तिथि  2:- वार  3:- नक्षत्र  4:- योग  और  5:- करण .

शास्त्रों के अनुसार पंचाग को पढ़ना सुनना बहुत शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम जी भी नित्य पंचाग को सुनते थे ।

शास्त्रों के अनुसार नित्य उस दिन की तिथि का नाम लेने उसका नाम सुनने से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
वार का नाम लेने सुनने से आयु में वृद्धिनक्षत्र का नाम लेने सुनने से पापो का नाश होता है।
योग का नाम लेने सुनने से प्रियजनों का प्रेम मिलता है और करण का नाम लेने सुनने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती है। इसलिए निरंतर शुभ समय के लिए प्रत्येक मनुष्य को नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।


30 दिसम्बर 2018  रविवार का पंचांग

🌞↗️सूर्योदय - 07:18  🌞↘️सूर्यास्त - 17:30                        
🌕↗️चन्द्रोदय - 25:45+ 🌘↘️चन्द्रास्त - 13:02


पञ्चाङ्ग
🔘वार रविवार    💠तिथि - कृष्ण पक्ष
नवमी - 25:35+ तक
दशमी


तिथि का स्वामी - नवमी तिथि के स्वामी दुर्गा जी है तथा दशमी तिथि के स्वामी यमराज है ।

नवमी तिथि की स्वामिनी माँ दुर्गा हैं। नवमी तिथि को दुर्गा माता का पूजन किया जाना बहुत शुभ रहता है। नवमी तिथि में माँ दुर्गा को गुड़हल या लाल गुलाब अर्पित करते हुए दुर्गा जी के किसी भी सिद्द मन्त्र का जाप करने से जीवन के सभी मनोरथ पूर्ण होते है । नवमी तिथि को उग्रा कहा गया है और यह एक रिक्ता तिथि भी है इसलिए नए और मांगलिक कार्यों की शुरुआत इस तिथि में किए जाना शास्त्रों में शुभ नहीं माना जाता है। नवमी तिथि में लौकी और कद्दू का सेवन नहीं करें। नवमी तिथि में वाद विवाद करना, जुआ खेलना, शस्त्र निर्माण , मद्यपान आदि सभी प्रकार के क्रूर कर्म किए जाते हैं।

रविवार को अदरक और मसूर की दाल का सेवन नहीं करना चाहिए।

नक्षत्र
हस्त - 08:25 तक
चित्रा

नक्षत्र के देवता  :- हस्त नक्षत्र के देवता रवि है एवं चित्र नक्षत्र के देवता विश्वकर्मा है ।

योग
अतिगण्ड - 29:08+ तक
सुकर्मा

करण
तैतिल - 13:57 तक
गर - 25:35+ तक
वणिज


विक्रम संवत् 2075 संवत्सर (विरोधाकृत)
शक संवत - 1940 (विलंबी)
अयन - दक्षिणायण
वैदिक ऋतु:- हेमन्त
द्रिक ऋतु:-शिशिर
मास - पौष माह

सूर्य राशि 

धनु

चन्द्र राशि


कन्या- 20:18 तक

तुला

सूर्य नक्षत्र

पूर्वाषाढ़ा 

🌅दिनमान

10 घण्टे 12 मिनट्स 07 सेकण्ड्स


🌌रात्रिमान

13 घण्टे 48 मिनट्स 10 सेकण्ड्स


🙏शुभ समय🙏

अभिजित मुहूर्त
12:03 से 12:44
अमृत काल
25:57+ से 27:32+
सर्वार्थ सिद्धि योग
07:18 से 08:25
अमृत सिद्धि योग
07:18 से 08:25

⛔अशुभ समय⛔

🚫गुलिक काल
14:57 से 16:13
🚷यमगण्ड
12:24 से 13:40
👹राहुकाल
16:13 से 17:30
ऊपर दिए गए राहुकाल का आकलन दिल्ली के सूर्योदय को ध्यान में रखते हुए किया गया है !

राहुकाल सप्ताह के सातों दिन में निश्चित समय पर लगभग 90 मिनट तक रहता है। इसे अशुभ समय के रूप मे देखा जाता है और इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है। राहु काल अलग-अलग स्थानों के लिये अलग-अलग होता है। इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है। इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है। सप्ताह के प्रथम दिवस अर्थात सोमवार के प्रथम भाग में कोई राहु काल नहीं होता है। यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनिवार को तीसरे भाग, शुक्रवार को चौथे भाग, बुधवार को पांचवे भाग, गुरुवार को छठे भाग, मंगलवार को सातवे तथा रविवार को आठवे भाग में होता है। यह प्रत्येक सप्ताह के लिये निश्चित रहता है।

इस गणना में सूर्योदय के समय को प्रात: 06:00 (भा.स्टै.टा) बजे का मानकर एवं अस्त का समय भी सांयकाल 06:00 बजे का माना जाता है। इस प्रकार मिले 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है। हां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है और इसी कारण से ये समय कुछ खिसक भी सकता है। अतः इस बारे में एकदम सही गणना करने हेतु सूर्योदय व अस्त के समय को पंचांग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाल लेते हैं जिससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना भी नहीं रहती है।
रविवार -सायं -4.30 से 6.00 तक।
सोमवार -प्रातः -7.30 से9.00 तक।
मंगलवार -दिन -3.00 से 4.30तक।
बुधवार -दिवा -12.00 से 1.30तक।
गुरूवार -दिन -1.30 से 3.00तक।
शुक्रवार -प्रातः -10.30 से12.00तक।
शनिवार -प्रातः -9.00 से 10.30तक।

⚠️पञ्चक:- समाप्त 

सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करते ही खर मास या मलमास प्रारंभ हो जाएगा। खर मास में विवाह, नूतन गृह प्रवेश, नया वाहन, भवन क्रय करना, मुंडन जैसे शुभ कार्यों पर एक माह के लिए प्रतिबंध लग जाएगा।

⚓निवास और शूल

होमाहुति
गुरु - 08:25 तक
राहु

⚓दिशा शूल⛵पश्चिम

🔥अग्निवास :-
पाताल - 25:35+ तक
पृथ्वी


दिशाशूल - रविवार को पश्चिम दिशा का दिकशूल होता है । इस दिन यात्रा में सफलता के लिए घर से पान या घी खाकर जाएँ ।

विशेष - नवमी को लौकी नहीं खानी चाहिए ।

मुहूर्त - नवमी रिक्ता तिथि है इसलिए इस दिन कोई भी नया, मांगलिक कार्य वर्जित है ।


ग्रह-स्थिति:
🌞सूर्य-राशि ~धनु
🌙चंद्र-राशि~कन्या 20:18 तक,तुला
🔺मंगल ~ मीन
🔘बुध~ वृश्चिक
🔶बृहस्पति~वृश्चिक
◽शुक्र ~ तुला
◾शनि (⬇️अस्त )~धनु
👹राहु ~ कर्क
👺केतु ~ मकर

नोट :- पंचांग  को नित्य पढ़ने से जीवन से विघ्न दूर होते है, कुंडली के ग्रह भी शुभ फल देने लगते है। अत: सभी जातको को नित्य पंचाग को अनिवार्य रूप से पढ़ना ही चाहिए और अपने इष्ट मित्रो को भी इससे अवगत कराना चाहिए ।