वैसे तो हर महीने संकष्टी चतुर्थी आती है, लेकिन माघ महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी का महात्म्य सबसे ज्यादा माना गया है। इस दिन संकट हरण गणपति और चंद्रमा का पूजन किया जाता है।
निराहार रखा जाने वाला सकट चौथ का व्रत रात को चंद्रमा या तारों के दर्शन करके अर्ध्य देकर खोला जाता है। इस बार 48 वर्षों बाद अर्ध कुंभ पर्व के दौरान ये व्रत होगा और इस दिन गणेश चतुर्थी के साथ बृहस्पतिवार पड़ने से भगवान विष्णु का भी पूजन किया जाएगा। इसी दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकलकर आए थे। इसीलिए इसे संकट या सकट चौथ कहा जाता है। सकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ था।
इसे तिलकुटा चौथ भी कहा जाता है। सकट चौथ संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाता है। इस दिन 9 बजकर 31 मिनट में चंद्रमा उदय होगा। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही ये व्रत पूरा होगा। चंद्रमा को अर्घ्य देकर प्रसाद ग्रहण करने बाद ही व्रत खोला जाएगा। ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ के व्रत से संतान की सारी बाधाएं दूर होती हैं।
संकष्टी चतुर्थी की तिथि और शुभ मुहूर्त
माघ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी प्रारंभ:
23 जनवरी 2019 को रात 11 बजकर 59 मिनट से
माघ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी समाप्त:
24 जनवरी 2019 को रात 08 बजकर 54 मिनट तक
चंद्रोदय का समय:
24 जनवरी 2019 को रात 09 बजकर 31 मिनट
⌛संकष्टी चतुर्थी का महत्व⌛
संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी।इस दिन सभी दुखों को खत्म करने वाले गणेश जी का पूजन और व्रत किया जाता है। मान्यता है कि जो कोई भी पूरे विधि-विधान से पूजा-पाठ करता है उसके सभी दुख दूर हो जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
- संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें।
- अब उत्तर दिशा की ओर मुंह कर भगवान गणेश की पूजा करें और उन्हें
जल अर्पित करें।
- जल में तिल मिलाकर ही अर्घ्य दें।
- दिन भर व्रत रखें।
- शाम के समय विधिवत् गणेश जी की पूजा करें।
- गणेश जी को दुर्वा या दूब अर्पित करें। मान्यता है कि ऐसा करने से धन-
सम्मान में वृद्धि होती है।
- गणेश जी को तुलसी कदापि न चढ़ाएं। कहा जाता है कि ऐसा करने से
वह नाराज हो जाते हैं। मान्यता है कि तुलसी ने गणेश जी को शाप दिया
था।
- अब उन्हें शमी का पत्ता और बेलपत्र अर्पित करें।
- तिल के लड्डुओं का भोग लगाकर भगवान गणेश की आरती उतारें.
- अब पानी में गुड़ और तिल मिलाकर चांद को अर्घ्य दें।
- अब तिल के लड्डू या तिल खाकर अपना व्रत खोलें।
- इस दिन तिल का दान करना चाहिए।
- इस दिन जमीन के अंदर होने वाले कंद-मूल का सेवन नहीं करना
चाहिए यानी कि मूली, प्याज, गाजर और चुकंदर न खाएं।
-देर शाम चंद्रोदय के समय व्रती को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य चंद्रमा,
गणेश जी और चतुर्थी माता को अवश्य देना चाहिए। अर्घ्य देकर ही व्रत
खोला जाता है।
व्रत की कथा
सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र की सकट चौथ के दिन बलि दे दी।
उस लड़के की माता ने उस दिन गणेश पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला, तो मां ने भगवान गणेश से प्रार्थना की। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वृद्धा का पुत्र तो जीवित था। डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।
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