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Acharya Mukesh

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

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“कुछ अलग करना है, तो भीड़ से हट कर चलो, भीड़ साहस तो देती है, पर पहचान छिन लेती है।”

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Wednesday, 31 July 2019

वास्तुशास्त्र नियम: ईषान कोण से जुड़ी खास बातें, इन्हें नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी



शास्त्रों की मानें तो मनुष्य जीवन को दो चीजें प्रभावित करती हैं, एक उसकी किस्मत , जो उसकी कुंडली में व्यवस्थित ग्रहों पर आधारित है और दूसरी है वास्तु। वास्तुशास्त्र एक समृद्धि विज्ञान है जो मुख्यतौर पर हमारे आसपास मौजूद ऊर्जा पर केन्द्रित है।


आपका भाग्य

प्राचीन ऋषि-मुनियों का यही मानना था कि अगर आपका भाग्य उज्जवल है और आसपास का वास्तु खराब.. हो तो किए गए प्रयासों का संपूर्ण फल नहीं प्राप्त हो पाता। इसलिए अगर वाकई आप अपने भविष्य को लेकर गंभीर हैं तो आपको इस बात का ध्यान भी रखना चाहिए कि आपके आसपास का वातावरण शुद्ध हों, किसी भी तरह के वास्तुदोष से मुक्त हो।


नकारात्मक फल

वास्तुशास्त्र में ऊर्जा के साथ-साथ दिशाओं की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हर दिशा का अपना-अपना महत्व है और जरा सी भी छेड़छाड़ नकारात्मक फल प्रदान करती है।


दिशाएं

उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।

ईषान

ईषान का सीधा संबंध सीधे ईश्वर से है, ईश आन। कहने का अर्थ यह है कि इस स्थान पर ईश्वर की पवित्रता और उसकी मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।

गंदगी

ईषान कोण में गंदगी बिल्कुल ना करें, यहां अपवित्र वस्तुएं और कबाड़ का समान भी बिल्कुल ना रखें।

भारी वस्तुएं

ईषान कोण में भारी वस्तुएं या झाड़ू कदापि ना रखें। एक बात पर ध्यान अवश्य रखें, घर का नक्शा बनाते समय ईषान कोण में बाथरूम बिल्कुल नहीं होना चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं तो वंश वृद्धि और ग्रह कलेह जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है।

चरित्र

जिन घरों में ईषान कोण दूषित होता है वहां रहने वाले लोगों का चरित्र अच्छा नहीं रहता, उन्हें लंबी बीमारियों जैसे हालातों का सामना करना पड़ता है।

गड्ढा या दरार

अगर ईषान कोण में गड्ढा या दरार होती है या फिर रसोई बनाई गई होती है तो घर में दरिद्र्ता का वास होता है।


मंदिर

सबसे उत्तम तो ये है कि इस कोण को खाली और स्वच्छ रखें, लेकिन अगर कुछ बनवाना ही है तो यहां मंदिर स्थापित करवाएं।

ईषान कोण

यदि किसी मकान के ईषान कोण में बहता पानी, नदी, कुआं आदि है तो उस घर की जमीन सोना उगलने वाली होती है।


स्कूल

अगर इस स्थान पर स्कूल बना हुआ है तो वहां पढ़ने वाले विद्यार्थी उत्तम शिक्षा प्राप्त करते हैं। अगर अस्पताल है तो निश्चित तौर पर वहां मरीज अच्छी सेहत लेकर जाते हैं। ईषान में दुकान या ऑफिस हो तो व्यापार फलता-फूलता है।

ईश्वर का वास

ईषान कोण स्वयं ईश्वर का वास होता है। घर, मकान, ऑफिस.. चाहे कुछ भी बनवाएं सफलता प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए ईषान कोण का ध्यान अवश्य रखें।

Acharya Mukesh

भगवान शिव से जुड़ी 12 गुप्त बातें, जानिए आचार्य मुकेश के द्वारा


आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि ‘कल्पना’ ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम जैसी कल्पना और विचार करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। शिव ने इस आधार पर ध्यान की कई विधियों का विकास किया। भगवान शिव  दुनिया के सभी धर्मों का मूल हैं। शिव के दर्शन और जीवन की कहानी दुनिया के हर धर्म और उनके ग्रंथों में अलग-अलग रूपों में विद्यमान है।

आज से 15 से 20 हजार वर्ष पूर्व वराह काल की शुरुआत में जब देवी-देवताओं ने धरती पर कदम रखे थे, तब उस काल में धरती हिमयुग की चपेट में थी। इस दौरान भगवान शंकर ने धरती के केंद्र कैलाश को अपना निवास स्थान बनाया।

भगवान विष्णु  ने समुद्र को और ब्रह्मा ने नदी के किनारे को अपना स्थान बनाया था। पुराण कहते हैं कि जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है, जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है, जबकि धरती पर कुछ भी नहीं था। इन तीनों से सब कुछ हो गया।

वैज्ञानिकों  के अनुसार तिब्बत धरती की सबसे प्राचीन भूमि है और पुरातन-काल में इसके चारों ओर समुद्र हुआ करता था। फिर जब समुद्र हटा तो अन्य धरती का प्रकटन हुआ और इस तरह धीरे-धीरे जीवन भी फैलता गया।

सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें आदि देव भी कहा जाता है। आदि का अर्थ प्रारंभ। शिव को ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस ‘आदिश’ शब्द से ही ‘आदेश’ शब्द बना है। नाथ साधु जब एक–दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं- आदेश।

भगवान शिव के अलावा ब्रह्मा और विष्णु ने संपूर्ण धरती पर जीवन की उत्पत्ति और पालन का कार्य किया। सभी ने मिलकर धरती को रहने लायक बनाया और यहां देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष और मनुष्य की आबादी को बढ़ाया।

महाभारत काल : ऐसी मान्यता है कि महाभारत  काल तक देवता धरती पर रहते थे। महाभारत के बाद सभी अपने-अपने धाम चले गए। कलयुग के प्रारंभ होने के बाद देवता बस विग्रह रूप में ही रह गए अत: उनके विग्रहों की पूजा की जाती है।

पहले भगवान शिव थे रुद्र : वैदिक काल के रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन को पुराणों में विस्तार मिला। वेद जिन्हें रुद्र कहते हैं, पुराण उन्हें शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व के कालों में भी शिव थे। उन कालों की शिव की गाथा अलग है।

देवों के देव महादेव : देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं।

भगवान शिव ने क्यों मार दिए थे विशालकाय मानव…

ब्रह्मा ने बनाए विशालकाय मानव : सन् 2007 में नेशनल जिओग्राफी की टीम ने भारत और अन्य जगह पर 20 से 22 फिट मानव के कंकाल ढूंढ निकाले हैं। भारत में मिले कंकाल को कुछ लोग भीम पुत्र घटोत्कच और कुछ लोग बकासुर का कंकाल  मानते हैं।

हिन्दू धर्म के अनुसार सतयुग में इस तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे। बाद में त्रेतायुग में इनकी प्रजाति नष्ट हो गई। पुराणों के अनुसार भारत में दैत्य, दानव, राक्षस और असुरों की जाति का अस्तित्व था, जो इतनी ही विशालकाय हुआ करती थी।

भारत में मिले इस कंकाल के साथ एक शिलालेख भी मिला है। यह उस काल की ब्राह्मी लिपि का शिलालेख है। इसमें लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शांति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली होते थे और पेड़ तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अंत में भगवान शंकर ने सभी को मार डाला और उसके बाद ऐसे लोगों की रचना फिर नहीं की गई।

भगवान शिव का धनुष पिनाक : 



शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल (clouds) फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त (finish) कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था।

उल्लेखनीय है कि राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने सभी देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया।

देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवरात थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। इस धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।



भगवान शिव का चक्र : चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।

यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुराम से मिला।

त्रिशूल : इस तरह भगवान शिव के पास कई अस्त्र-शस्त्र  थे लेकिन उन्होंने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र देवताओं को सौंप दिए। उनके पास सिर्फ एक त्रिशूल ही होता था। यह बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन। इसके अलावा पाशुपतास्त्र भी शिव का अस्त्र है।

भगवान शिव के गले में जो सांप है उसका नाम जानिए.


भगवान शिव का सेवक वासुकी : शिव को नागवंशियों से घनिष्ठ लगाव था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में ही रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग इन नागवंशियों का गढ़ था। नागकुल के सभी लोग शैव धर्म का पालन करते थे। नागों के प्रारंभ में 5 कुल थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक। ये शोध के विषय हैं कि ये लोग सर्प थे या मानव या आधे सर्प और आधे मानव? हालांकि इन सभी को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है तो निश्‍चित ही ये मनुष्य नहीं होंगे।

नाग वंशावलियों में ‘शेषनाग’ को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेषनाग को ही ‘अनंत’ नाम से भी जाना जाता है। ये भगवान विष्णु के सेवक थे। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए, जो शिव के सेवक बने। फिर तक्षक और पिंगला ने राज्य संभाला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से ‘तक्षक’ कुल चलाया था। उक्त पांचों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।

उनके बाद ही कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना इत्यादि नाम से नागों के वंश हुए जिनके भारत के भिन्न-भिन्न इलाकों में इनका राज्य था।

जानिए अमरनाथ के अमृत वचन किस नाम से सुरक्षित…

अमरनाथ के अमृत वचन : शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती  को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया, उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

अमरनाथ के अमृत वचन : शिव द्वारा मां पार्वती को जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत ही गूढ़-गंभीर तथा रहस्य से भरा ज्ञान था। उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के ‘‍विज्ञान भैरव तंत्र’ और ‘शिव संहिता’ में उनकी संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है। भगवान शिव कहते हैं- ‘वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए भी अगम्य है। -मेरुतंत्र

भगवान शिव ने अपना ज्ञान सबसे पहले किसे दिया…

भगवान शिव के शिष्य : शिव तो जगत के गुरु हैं। मान्यता अनुसार सबसे पहले उन्होंने अपना ज्ञान सप्त ऋषियों को दिया था। सप्त ऋषियों ने शिव से ज्ञान लेकर अलग-अलग दिशाओं में फैलाया और दुनिया के कोने-कोने में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। इन सातों ऋषियों ने ऐसा कोई व्यक्ति नहीं छोड़ा जिसको शिव कर्म, परंपरा आदि का ज्ञान नहीं सिखाया गया हो। आज सभी धर्मों में इसकी झलक देखने को मिल जाएगी। परशुराम और रावण भी शिव के शिष्य थे।

शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा  की शुरुआत ‍की थी जिसके चलते आज भी नाथ, शैव, शाक्त आदि सभी संतों में उसी परंपरा का निर्वाह होता आ रहा है। आदि गुरु शंकराचार्य और गुरु गोरखनाथ ने इसी परंपरा और आगे बढ़ाया।

सप्त ऋषि ही शिव के मूल शिष्य : भगवान शिव ही पहले योगी हैं और मानव स्वभाव की सबसे गहरी समझ उन्हीं को है। उन्होंने अपने ज्ञान के विस्तार के लिए 7 ऋषियों को चुना और उनको योग के अलग-अलग पहलुओं का ज्ञान दिया, जो योग के 7 बुनियादी पहलू बन गए। वक्त के साथ इन 7 रूपों से सैकड़ों शाखाएं निकल आईं। बाद में योग में आई जटिलता को देखकर पतंजलि ने 300 ईसा पूर्व मात्र 200 सूत्रों में पूरे योग शास्त्र को समेट दिया। योग का 8वां अंग मोक्ष है। 7 अंग तो उस मोक्ष तक पहुंचने के लिए है।

भगवान शिव के गणों के नाम…

भगवान शिव गण : भगवान शिव की सुरक्षा और उनके आदेश को मानने के लिए उनके गण सदैव तत्पर रहते हैं। उनके गणों में भैरव को सबसे प्रमुख माना जाता है। उसके बाद नंदी का नंबर आता और फिर वीरभ्रद्र। जहां भी शिव मंदिर स्थापित होता है, वहां रक्षक (कोतवाल) के रूप में भैरवजी की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है। भैरव दो हैं- काल भैरव और बटुक भैरव। दूसरी ओर वीरभद्र शिव का एक बहादुर गण था जिसने शिव के आदेश पर दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया। देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ नामक गण उत्पन्न किया।

इस तरह उनके ये प्रमुख गण थे- भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। ये सभी गण धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं और प्रत्येक मनुष्य, आत्मा आदि की खैर-खबर रखते हैं।

भगवान शिव के द्वारपाल…

भगवान शिव के द्वारपाल : कैलाश पर्वत के क्षेत्र में उस काल में कोई भी देवी या देवता, दैत्य या दानव शिव के द्वारपाल की आज्ञा के बगैर अंदर नहीं जा सकता था। ये द्वारपाल संपूर्ण दिशाओं में तैनात थे।

इन द्वारपालों के नाम हैं- नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल। उल्लेखनीय है कि शिव के गण और द्वारपाल नंदी ने ही कामशास्त्र की रचना की थी। कामशास्त्र के आधार पर ही कामसूत्र लिखा गया था।

भगवान शिव पंचायत को जानिए…



भगवान शिव पंचायत : पंचायत का फैसला अंतिम माना जाता है। देवताओं और दैत्यों के झगड़े आदि के बीच जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय  लेना होता था तो शिव की पंचायत का फैसला अंतिम होता था। शिव की पंचायत में 5 देवता शामिल थे।

ये 5 देवता थे:- 1. सूर्य, 2. गणपति, 3. देवी, 4. रुद्र और 5. विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

भगवान शिव के पार्षद…

भगवान शिव पार्षद : जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं ‍उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि ‍शिव के पार्षद हैं। यहां देखा गया है कि नंदी और भृंगी गण भी है, द्वारपाल भी है और पार्षद भी।

भगवान शिव के प्रतीक चिह्न


भगवान शिव चिह्न : वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्ध चंद्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं। हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

भगवान शिव की जटाएं हैं। उन जटाओं में एक चंद्र चिह्न होता है। उनके मस्तष्क पर तीसरी आंख है। वे गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला लपेटे रहते हैं। उनके एक हाथ में डमरू तो दूसरे में त्रिशूल है। वे संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं। वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं। माना जाता है कि केदारनाथ और अमरनाथ में वे विश्राम करते हैं।

भस्मासुर से बचकर यहां छिप गए थे शिव…


भगवान शिव की गुफा : शिव ने एक असुर को वरदान दिया था कि तू जिसके भी सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा। इस वरदान के कारण ही उस असुर का नाम भस्मासुर हो गया। उसने सबसे पहले शिव को ही भस्म करने की सोची।

भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी एक पहाड़ी के पास रुके और फिर उन्होंने इस पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई।

माना जाता है कि वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है। इस गुफा में हर दिन सैकड़ों की तादाद में शिवभक्त शिव की अराधना करते हैं।

भगवान राम ने किया था भगवान शिव से युद्ध : सभी जानते हैं कि राम के आराध्यदेव शिव हैं, तब फिर राम कैसे शिव से युद्ध कर सकते हैं? पुराणों में विदित दृष्टांत के अनुसार यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लड़ा गया।

यज्ञ का अश्व कई राज्यों को श्रीराम की सत्ता के अधीन किए जा रहा था। इसी बीच यज्ञ का अश्व देवपुर पहुंचा, जहां राजा वीरमणि का राज्य था। वीरमणि ने भगवान शंकर की तपस्या कर उनसे उनकी और उनके पूरे राज्य की रक्षा का वरदान मांगा था। महादेव के द्वारा रक्षित होने के कारण कोई भी उनके राज्य पर आक्रमण करने का साहस नहीं करता था। जब यज्ञ का घोड़ा उनके राज्य में पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने उसे बंदी बना लिया। ऐसे में अयोध्या और देवपुर में युद्ध होना तय था।

महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में जानकर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित अपने सारे गणों को भेज दिया। एक और राम की सेना तो दूसरी ओर शिव की सेना थी। वीरभद्र ने एक त्रिशूल से राम की सेना के पुष्कल का मस्तक काट दिया। उधर भृंगी आदि गणों ने भी राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। बाद में हनुमान भी जब नंदी के शिवास्त्र से पराभूत होने लगे तब सभी ने राम को याद किया। अपने भक्तों की पुकार सुनकर श्रीराम तत्काल ही लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए। श्रीराम ने सबसे पहले शत्रुघ्न को मुक्त कराया और उधर लक्ष्मण ने हनुमान को मुक्त करा दिया। फिर श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिव गणों पर धावा बोल दिया। जब नंदी और अन्य शिव के गण परास्त होने लगे तब महादेव ने देखा कि उनकी सेना बड़े कष्ट में है तो वे स्वयं युद्ध क्षेत्र में प्रकट हुए, तब श्रीराम और शिव में युद्ध छिड़ गया।

भयंकर युद्ध के बाद अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर शिव से कहा, ‘हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता इसलिए हे महादेव, आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूं’, ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया।

वो अस्त्र सीधा महादेव के ह्वदयस्थल में समा गया और भगवान रुद्र इससे संतुष्ट हो गए। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें। इस पर श्रीराम ने कहा कि ‘हे भगवन्, यहां मेरे भाई भरत के पुत्र पुष्कल सहित असंख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए है, कृपया कर उन्हें जीवनदान दीजिए।’ महादेव ने कहा कि ‘तथास्तु।’ इसके बाद शिव की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व श्रीराम को लौटा दिया और श्रीराम भी वीरमणि को उनका राज्य सौंपकर शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर चल दिए।

ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म एक रहस्य है। तीनों के जन्म की कथाएं वेद और पुराणों में अलग-अलग हैं, लेकिन उनके जन्म की पुराण कथाओं में कितनी सच्चाई है और उनके जन्म की वेदों में लिखी कथाएं कितनी सच हैं, इस पर शोधपूर्ण दृष्टि की जरूरत है।

यहां यह बात ध्यान रखने की है कि ईश्वर अजन्मा है।

अलग-अलग पुराणों में भगवान शिव और विष्णु के जन्म के विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू माना गया है जबकि विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु स्वयंभू हैं।

शिव पुराण के अनुसार एक बार जब भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं।

भगवान शिव के जन्म की कहानी हर कोई जानना चाहता है। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे, तब एक जलते हुए खंभे से जिसका कोई भी ओर-छोर ब्रह्मा या विष्णु नहीं समझ पाए, भगवान शिव प्रकट हुए।

यदि किसी का बचपन है तो निश्चत ही जन्म भी होगा और अंत भी। विष्णु पुराण में शिव के बाल रूप का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या की। तब अचानक उनकी गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तो उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम ‘ब्रह्मा’ नहीं है इसलिए वह रो रहा है।

तब ब्रह्मा ने शिव का नाम ‘रुद्र’ रखा जिसका अर्थ होता है ‘रोने वाला’। शिव तब भी चुप नहीं हुए इसलिए ब्रह्मा ने उन्हें दूसरा नाम दिया, पर शिव को नाम पसंद नहीं आया और वे फिर भी चुप नहीं हुए। इस तरह शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने 8 नाम दिए और शिव 8 नामों (रुद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव) से जाने गए। शिव पुराण के अनुसार ये नाम पृथ्वी पर लिखे गए थे।
आचार्य मुकेश के द्वारा 
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Tuesday, 23 July 2019

पितृ दोष का भयानक असर,सफलता रोक देता है पितृदोष, जानें इससे कैसे पाएं छुटकारा#Pitra Dosha#Acharya Mukesh#Astronaklshatra27.com#Home Remedies for Pitra Dosh


नवम भाव  पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। 

When the combination of Sun and Rahu at the ninth house, it is believed that pitra dosha defect is being created.

Pitra Dosh refers to the set of misfortunes resulting in people’s lives due to the curse given by the departed ancestors. Pitru dosh can bring about several crisis situations in the family and cause severe restlessness.

शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है. 

ज्योतिष के अनुसार पितृ दोष और पितृ ऋण से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है। ऐसी स्थिति में जातक के सांसारिक जीवन और आध्यात्मिक उन्नति में अनेक बाधाएं उत्पन्न होती हैं।

Absence of progeny in the family or repeated miscarriages - Immature and sudden deaths of children due to accidents or deadly diseases - Incurable illnesses or physical or mental disability of the children in the family - Poverty and scarcity of resources in the family even for basic loving - Restlessness, quarrels and frequent disagreements within the family -Appearance of snakes in dreams of family members -Highly bothering debts and the inability to clear them despite best efforts.

पितृ दोष के कारण व्यक्ति को बहुत से कष्ट होते हैं। विवाह न हो पाना, विवाहित जीवन में कलह, परीक्षा में बार-बार असफलता, नशे की लत, नौकरी स्थाई नहीं हो पाना, गर्भपात या गर्भधारण की समस्या, बच्चे की अकाल मृत्यु हो जाना या फिर मंदबुद्धि बच्चे का जन्म होना, निर्णय न ले पाना, अत्याधिक क्रोधी होना पितृ दोष के कारण होता है। यदि आपके साथ भी ऐसी ही स्थिति बनती है, तो किसी जानकार ज्योतिषी को दिखाकर सलाह ले सकते हैं।

कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है, यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं, लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, वह जीविका के लिये तरसता रहता है, वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।

अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आ जाता है।

"पितृ दोष के लिये उपाय" 

सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये, उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये, पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये, और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये, हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है।

एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है, वे देखी रहते है, उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।

प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ना। भृकुटी पर शुद्ध जल का तिलक लगाना। प्रत्येक चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा तथा पितृपक्ष में तर्पण और श्राद्ध करना।

शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को शाम के समय पानी वाला नारियल अपने ऊपर से सात बार वारकर बहते जल में प्रवाहित कर दें और अपने पूर्वजों से मांफी मांगकर उनसे आशीर्वाद मांगे।

बृहस्पतिवार के दिन शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में जल चढ़ाने और फिर सात बार उसकी परिक्रमा करने से जातक को पितृदोष से राहत मिलती है।

अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित है और उसे अप्रत्याशित बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है तो उसे अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। वे भले ही अपने जीवन में कितना ही व्यस्त क्यों ना हो लेकिन उसे अश्विन कृष्ण अमावस्या को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।

अपने भोजन की थाली में से प्रतिदिन गाय और कुत्ते के लिए भोजन अवश्य निकालें और अपने कुलदेवी या देवता की पूजा अवश्य करते रहें। रविवार के दिन विशेषतौर पर गाय को गुड़ खिलाएं और जब स्वयं घर से बाहर निकलें तो गुड़ खाकर ही निकलें। संभव हो तो घर में भागवत का पाठ करवाएं।

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Dr. Mukesh (Astrologer)
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आइए जानते हैं शिव को कौन सा पुष्प अर्पित करने से आपको किस सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होगी#शिव पूजा और पुष्प#SRAWAN MAS


अभी श्रावण मास चल रहा है. इस माह में देवों के देव महादेव अर्थात भगवान शिव की पूजा की जाती है. शिव की पूजा में फूलों का विशेष महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि एक तपस्या में लीन, सर्वगुणों से सम्पन्न और चारों वेदों में निष्णात किसी ब्राह्मण को सौ स्वर्ण मुद्राएं दान करने पर जो फल प्राप्त होता है, वही फल भगवान शिव पर सौ फूल चढ़ा देने से ही प्राप्त हो जाता है.

शास्त्रों में जो नियम और विधान बताए गए हैं, उसके मुताबिक भगवान को पुष्प अर्पित करने से मिलने वाले फल का महत्व इस प्रकार है-

1- ‘दस स्वर्ण पुष्प‘ दान का फल एक श्वेतार्क पुष्प को चढ़ाने से प्राप्त हो जाता है.

2- वही पुण्य एक हजार श्वेतार्क पुष्पों की अपेक्षा एक कनेर का पुष्प अर्पित करने से प्राप्त हो जाता है.

3- एक हजार कनेर के पुष्प चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्वपत्र अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.
4- एक हजार बिल्वपत्रों की अपेक्षा एक गूमाफूल (द्रोण-पुष्प) अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.

5- एक हजार गूमा से बढ़कर एक चिचिड़ा अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.
6- एक हजार चिचिड़ों से बढ़कर एक कुश का फूल अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.
7- एक हजार कुश-पुष्पों से बढ़कर एक शमी की टहनी अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.
8- हजार शमी के पत्तों से बढ़कर एक नीलकमल अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.
9- एक हजार नीलकमलों से बढ़कर एक धतूरा अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.
10- एक हजार धतूरों की अपेक्षा एक शमी का पुष्प अर्पित करने से वही पुण्य प्राप्त होता है.

आइए जानते हैं शिव को कौन सा पुष्प अर्पित करने से आपको किस सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होगी.

1- विल्वपत्र चढ़ाने से जन्म-जन्मांतर के पापों व रोग से मुक्ति मिलती है.

2- कमल पुष्प चढ़ाने से शान्ति व धन की प्राप्ति होती है.

3- कुशा चढ़ाने से मुक्ति की प्राप्ति होती है.
4- दूर्वा चढ़ाने से आयु में वृद्धि होती है.


5- धतूरा अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति व पुत्र का सुख मिलता है.
6- कनेर का पुष्प चढ़ाने से परिवार में कलह व रोग से निवृत्ति मिलती हैं.

7- शमी पत्र चढ़ाने से पापों का नाश होता, शत्रुओं का शमन व भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है.


ACHARYA MUKESH
ASTRO NAKSHATRA 27

Sunday, 21 July 2019

भगवान शिव के 108 नाम (अर्थ सहित)#पूरे श्रावण मास जपें भगवान शिव के यह 108 नाम#Astrologer Mukesh, Astro Nakshatra 27.



1-शिव - कल्याण स्वरूप
2-महेश्वर - माया के अधीश्वर
3-शम्भू - आनंद स्वरूप वाले
4-पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले
5-शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले
6-वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
7-विरूपाक्ष - ‍विचित्र आंख वाले( शिव के तीन नेत्र हैं) 
8-कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले
9-नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले
10-शंकर - सबका कल्याण करने वाले

11-शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
12-खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले
13-विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अति प्रिय 
14-शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले
15-अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति
16-श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले
17-भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
18-भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले
19-शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले
20-त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी

21-शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले
22-शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय
23-उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले
24-कपाली - कपाल धारण करने वाले
25-कामारी - कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले 
26-सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले
27-गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले
28-ललाटाक्ष - ललाट में आंख वाले
29-महाकाल - कालों के भी काल
30-कृपानिधि - करूणा की खान

31-भीम - भयंकर रूप वाले
32-परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले
33-मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले
34-जटाधर - जटा रखने वाले
35-कैलाशवासी - कैलाश के निवासी
36-कवची - कवच धारण करने वाले
37-कठोर - अत्यंत मजबूत देह वाले
38-त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
39-वृषांक - बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले
40-वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले

41-भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
42-सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले
43-स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
44-त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले
45-अनीश्वर - जो स्वयं ही सबके स्वामी है 
46-सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
47-परमात्मा - सब आत्माओं में सर्वोच्च 
48-सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
49-हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
50-यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले

51-सोम - उमा के सहित रूप वाले
52-पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
53-सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाल
54-विश्वेश्वर- सारे विश्व के ईश्वर
55-वीरभद्र - वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले
56-गणनाथ - गणों के स्वामी
57-प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले
58-हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
59-दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले
60-गिरीश - पर्वतों के स्वामी 

61-गिरिश्वर - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
62-अनघ - पापरहित
63-भुजंगभूषण - सांपों के आभूषण वाले
64-भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
65-गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
66-गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी
67-कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले
68-पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
69-भगवान् - सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
70-प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति

71-मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले
72-सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
73-जगद्व्यापी- जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
74-जगद्गुरू - जगत् के गुरू
75-व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
76-महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
77-चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले
78-रूद्र - भयानक
79-भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
80-स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले

81-अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले
82-दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
83-अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
84-अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले
85-सात्त्विक- सत्व गुण वाले
86-शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले
87-शाश्वत - नित्य रहने वाले
88-खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
89-अज - जन्म रहित
90-पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले

91-मृड - सुखस्वरूप वाले
92-पशुपति - पशुओं के स्वामी 
93-देव - स्वयं प्रकाश रूप
94-महादेव - देवों के भी देव
95-अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले
96-हरि - विष्णुस्वरूप
97-पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले
98-अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले
99-दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले 
100-हर - पापों व तापों को हरने वाले

101-भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले
102-अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
103-सहस्राक्ष - हजार आंखों वाले
104-सहस्रपाद - हजार पैरों वाले
105-अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले
106-अनंत - देशकालवस्तु रूपी परिछेद से रहित
107-तारक - सबको तारने वाले
108-परमेश्वर - सबसे परम ईश्वर

22 जुलाई 2019 सोमवार, श्रावण कृष्ण पक्ष, पञ्चमी, सोमवार का पंचांग#panchang#पंचाग#आज का पंचांग#aaj ka panchang#Somvar ka panchang#सोमवार का पंचांग#


हिन्दू धर्म में पंचाग को बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि नित्य पंचाग को पढ़ने वाले जातक को देवताओं का आशीर्वाद मिलता है उसको इस लोक में सभी सुख और कार्यो में सफलता प्राप्त होती है। पंचाग पाँच अंगो के मिलने से बनता है, ये पाँच अंग इस प्रकार हैं :-


1:- तिथि  2:- वार  3:- नक्षत्र  4:- योग  और  5:- करण .

शास्त्रों के अनुसार पंचाग को पढ़ना सुनना बहुत शुभ माना जाता है इसीलिए भगवान श्रीराम जी भी नित्य पंचाग को सुनते थे ।
शास्त्रों के अनुसार नित्य उस दिन की तिथि का नाम लेने उसका नाम सुनने से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है।
वार का नाम लेने सुनने से आयु में वृद्धि, नक्षत्र का नाम लेने सुनने से पापो का नाश होता है।

योग का नाम लेने सुनने से प्रियजनों का प्रेम मिलता है और करण का नाम लेने सुनने से समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती है। इसलिए निरंतर शुभ समय के लिए प्रत्येक मनुष्य को नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
                                                   
                                  22 जुलाई 2019  सोमवार
🌞↗️सूर्योदय -  05:41
🌞↘️सूर्यास्त - 19:14
🌕↗️चन्द्रोदय - 22:49
🌘↘️चन्द्रास्त - 10:08

पञ्चाङ्ग
🔘वार- सोमवार  💠तिथि - कृष्ण पक्ष (श्रावण)
पञ्चमी - 14:04 तक
षष्ठी

     नक्षत्र
पूर्व भाद्रपद - 10:25 तक
उत्तर भाद्रपद
योग
शोभन - 07:19 तक
अतिगण्ड

करण
तैतिल - 14:04 तक
गर - 27:12+ तक
वणिज
विक्रम संवत् 2075 संवत्सर (विरोधाकृत)

शक संवत - 1940 (विलंबी)

अयन - दक्षिणायण

वैदिक ऋतु:-वर्षा

द्रिक ऋतु:-वर्षा

मास - श्रावण  माह

सूर्य राशि 

कर्क

चन्द्र राशि 
मीन
Meena

सूर्य नक्षत्र
पुष्य

🌅दिनमान
13 घण्टे 33 मिनट्स 18 सेकण्ड्स
🌌रात्रिमान
10 घण्टे 27 मिनट्स 13 सेकण्ड्स


🙏शुभ समय🙏

अभिजित मुहूर्त
12:00 से 12:55
विजय मुहूर्त
14:43 से 15:37
⛔अशुभ समय⛔
पञ्चक

पूरे दिन
🚫गुलिक काल
14:09 से 15:51
👹राहुकाल
07:22 से 09:04
ऊपर दिए गए राहुकाल का आकलन दिल्ली के सूर्योदय को ध्यान में रखते हुए किया गया है !

राहुकाल सप्ताह के सातों दिन में निश्चित समय पर लगभग 90 मिनट तक रहता है। इसे अशुभ समय के रूप मे देखा जाता है और इसी कारण राहु काल की अवधि में शुभ कर्मो को यथा संभव टालने की सलाह दी जाती है। राहु काल अलग-अलग स्थानों के लिये अलग-अलग होता है। इसका कारण यह है की सूर्य के उदय होने का समय विभिन्न स्थानों के अनुसार अलग होता है। इस सूर्य के उदय के समय व अस्त के समय के काल को निश्चित आठ भागों में बांटने से ज्ञात किया जाता है। सप्ताह के प्रथम दिवस अर्थात सोमवार के प्रथम भाग में कोई राहु काल नहीं होता है। यह सोमवार को दूसरे भाग में, शनिवार को तीसरे भाग, शुक्रवार को चौथे भाग, बुधवार को पांचवे भाग, गुरुवार को छठे भाग, मंगलवार को सातवे तथा रविवार को आठवे भाग में होता है। यह प्रत्येक सप्ताह के लिये निश्चित रहता है।

इस गणना में सूर्योदय के समय को प्रात: 06:00 (भा.स्टै.टा) बजे का मानकर एवं अस्त का समय भी सांयकाल 06:00 बजे का माना जाता है। इस प्रकार मिले 12 घंटों को बराबर आठ भागों में बांटा जाता है। इन बारह भागों में प्रत्येक भाग डेढ घण्टे का होता है। हां इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वास्तव में सूर्य के उदय के समय में प्रतिदिन कुछ परिवर्तन होता रहता है और इसी कारण से ये समय कुछ खिसक भी सकता है। अतः इस बारे में एकदम सही गणना करने हेतु सूर्योदय व अस्त के समय को पंचांग से देख आठ भागों में बांट कर समय निकाल लेते हैं जिससे समय निर्धारण में ग़लती होने की संभावना भी नहीं रहती है।

रविवार -सायं -4.30 से 6.00 तक।
सोमवार -प्रातः -7.30 से9.00 तक।
मंगलवार -दिन -3.00 से 4.30तक।
बुधवार -दिवा -12.00 से 1.30तक।
गुरूवार -दिन -1.30 से 3.00तक।
शुक्रवार -प्रातः -10.30 से12.00तक।
शनिवार -प्रातः -9.00 से 10.30तक।

⚓निवास और शूल
होमाहुति-मंगल - 10:25 तक
गुरु
🔥अग्निवास :पृथ्वी
दिशाशूल (Dishashool) - पूर्व





ग्रह-स्थिति:
🌞सूर्य-राशि ~कर्क
🌙चंद्र-राशि~मीन ♓
🔺मंगल (अस्त⬇️)कर्क
🔘बुध(अस्त⬇️)~कर्क
R🔶बृहस्पति(वक्री)~वृश्चिक
◽शुक्र (अस्त⬇️)मिथुन ♊
◾शनि~धनु♐ 
R👹राहु ~ मिथुन 
R👺केतु ~ धनु♐ 

नोट :- पंचांग  को नित्य पढ़ने से जीवन से विघ्न दूर होते है, कुंडली के ग्रह भी शुभ फल देने लगते है। अत: सभी जातको को नित्य पंचाग को अनिवार्य रूप से पढ़ना ही चाहिए और अपने इष्ट मित्रो को भी इससे अवगत कराना चाहिए ।
                                       
                  
 💛ACHARYA MUKESH,