Contact:9999782755/ 7678689062

PAY NOW

Acharya Mukesh

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

Acharya Mukesh...Astro Nakshatra 27

“कुछ अलग करना है, तो भीड़ से हट कर चलो, भीड़ साहस तो देती है, पर पहचान छिन लेती है।”

True remedies by Dr.Mukesh

Contact e-mail: astronakshatra27@gmail.com

Contact e-mail: astronakshatra27@gmail.com

Kundli analysis, Vastu, Palmistry and effective Remedies.

Friday, 29 November 2019

*देव उठनी एकादशी* 8th नवम्बर 2019 #देवोत्थान एवं देवउठनी एकादशी व्रत कथा#तुलसी विवाह


एकादशी करते हों तो ध्यान रखें कुछ बातों का : 
(आचार्य मुकेश के अनुभवों के आधार पर कुछ सुझाव:) 

8th
नवम्बर 2019
(शुक्रवार)

देवोत्थान एवं देवउठनी एकादशी व्रत कथा 

एक बार भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने कहा कि आप दिन-रात जागा करते हैं और जब सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक सो जाते हैं और उस समय समस्त चराचर का नाश भी कर डालते हैं। ऐसे में आप प्रतिवर्ष नियम से निद्रा लिया करें तो मुझे भी विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्काराकर बोले कि मेरे जागने से सब देवों को और ख़ास कर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी सेवा से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। इसलिए, तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रति वर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी अल्पनिद्रा भक्तों के लिए परम मंगलकारी उत्सवप्रद तथा पुण्यवर्धक होगी। इस काल में जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे तथा शयन और उत्पादन के उत्सव आनन्दपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूंगा।  

तुलसी विवाह 

कुछ लोग इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का आयोजन भी करते हैं। तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है। देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। इसीलिए तुलसी विवाह को देव जागरण के पवित्र मुहूर्त के स्वागत का आयोजन माना जाता है। तुलसी विवाह का सीधा अर्थ तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि जिन दम्पतियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। 


देवोत्थान एकादशी तिथि और मुहूर्त 2019

9 th को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय = 06:43 से 08:51 


पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय =14:40 


एकादशी तिथि प्रारम्भ =7 नवम्बर/2019 को 9:54 AM बजे 


एकादशी तिथि समाप्त = 8 नवम्बर 2019 को 12:24 बजे 

🔶कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे देवोत्थान एकादशी, देव उठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी नामों से जानते हैं। 

🔶ऐसी मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के बाद भगवान श्री हरि यानि विष्णु जी चार मास के लिये सो जाते हैं। उसे देवशयनी कहा जाता है और जिस दिन निद्रा से जागते हैं वह कहलाती है देवोत्थान एकादशी। इसे देव उठनी और प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। वह शुभ दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का होता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णु जी के शयन काल के चार महीनों में विवाह/मांगलिक कार्यों का आयोजन करना वर्जित है। भगवान के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। इस साल देवोत्थान एकादशी 8 नवंबर को है। 

🔶इनके जागने के बाद से सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य फिर से आरंभ हो जाते हैं। 

🔶देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह किया जाता है। इस दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम से किया जाता है। 

🔶अगर किसी व्यक्ति को कन्या नहीं है और वह जीवन में कन्या दान का सुख प्राप्त करना चाहता है तो वह तुलसी विवाह कर प्राप्त कर सकता है। 

🔶जिनका दाम्पत्य जीवन बहुत अच्छा नहीं है वह लोग सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए तुलसी विवाह करते हैं। 

🔶युवा जो प्रेम में हैं लेकिन विवाह नहीं हो पा रहा है उन युवाओं को तुलसी विवाह करवाना चाहिए। 

🔶तुलसी विवाह करवाने से कई जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। 

🔶तुलसी पूजा करवाने से घर में संपन्नता आती है तथा संतान योग्य होती है। 


🚫1. एकादशी के दिन सुबह दातुन या ब्रश न करें! 

🚫2. एकादशी के दिन झाड़ू पोछा इत्यादि बिलकुल न करें! 

🚫3. एकादशी के दिन तुलसीदल न तोड़ें, भगवन को भोग लगाने हेतु एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लें। 

🚫4. अगर घर में दक्षिणावर्ती शंख हो तो उसमे जल लेकर भगवान शालिग्राम को स्नान करवाएं, या पंचामृत से स्नान करवाएं!इस से सारे पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं तथा माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रशन्न होते हैं। 

🚫5.एकादशी के दिन भगवान् श्री हरि को पीली जनेऊ अर्पित करें। पान के पत्ते पर एक सुपारी, लौंग, इलायची, द्रव्य, कपूर, किसमिस तुलसीदल के साथ इत्यादि अर्पित करें, साथ ही ऋतुफल भी अर्पित करें! एक तुलसीदल भगवान् पर भी चढ़ाएं पर रात्रि में उसे हटाना न भूले। 

🚫6.एकादशी के दिन सुबह संकल्प लें, मन में मनोकामना करते हुए श्री हरि से व्रत में रहने का संकल्प करें! 

🚫7. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है, कोशिश करें की इस एकादशी जरूर जागरण करें, इस से व्रत फल 100 गुणा बढ़ जाता है! 

🚫8. एकादशी के दिन चावल भूल से भी न छुएं, न ही घर में चावल बनें, इस दिन चावल खाने से बेहद नकरात्मक फल प्राप्त होते हैं, भाग्य खंडित होता है! 


🚫9. एकादशी के दिन कम से कम बोलें, पापी लोगों से बात न करें, जिनके मन में लालच, पाप या कोई भी अनैतिक तत्व दिखे कम से कम इस दिन उन सभी से दूर रहने का प्रयत्न करें! परनिंदा से बचें! 

🚫10.श्री हरि की विशेष कृपा हेतु ॐ नमो भगवते वासुदेवाय की 11 माला सुबह और 11 माला शाम में करें, साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करें! एकादशी व्रत कथा कहे या सुनें। 

🚫11. शाम में केले के पेड़ के नीचे एवं तुलसी में दीपक जलाना न भूले, इसे दीप-दान कहते हैं! 

🚫12. माता लक्षमी के बिना विष्णु अधूरे हैं इसलिए माता की भी आरती अवश्य करें, सुबह और शाम शंखनाद एवं घंटियों की ध्वनि में ॐ जय जगदीश हरे की आरती करना न भूले! 

🚫13. एकादशी के दिन केले के पेड़ की 7 परिक्रमा करने से धन में बढ़ोतरी होती है! 

🚫14 व्रत पंचांग के समयानुसार ही खोलें अन्यथा लाभ की जगह नुक्सान भी हो सकता है, व्रत एवं पूजा के नियमों में करने से ज्यादा कुछ बातें जो हमे नहीं करनी चाहिए वो ही ज्यादा महत्व रखती है. अतः सावधानी से की गई पूजा सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करती है. 

🚫15 .आज के दिन किसका त्याग करें- 



🍁मधुर स्वर के लिए गुड़ का। 



🍁दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। 



🍁शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का। 



🍁सौभाग्य के लिए मीठे तेल का। 



🍁स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का। 


प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए। 


🚫16. दोनों ही दिन शाम में संध्या आरती कर दीपदान करें। अखंड लक्षमी प्राप्त होगी। पैसा घर में रुकेगा। 



🚫17. शंख ध्वनि से भी माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रशन्न होते हैं। अतः पूजा के समय जरूर शंख का उपयोग करें । पूजा के पहले शुद्धिकरण मंत्र तथा आचमन करना न भूलें क्योंकि इसके बिना पूजा का फल प्राप्त नहीं हो पाता। 

🚫18. तुलसी की विधिवत पूजा करके उसकी 7
परिक्रमा करें।


Wednesday, 27 November 2019

दीवाली 2019 पूजन मुहूर्त। स्थिर लग्न वृषभ एवं अन्य शुभ मुहूर्त समय


दिवाली के दिन भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दिवाली पूजन के लिए शुभ मुहूर्त का जानना भी अति आवश्यक है। अगर आप दिवाली के दिन शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं तो आपको धन लाभ के साथ-साथ सुख और समृद्धि भी प्राप्त होगी, इसलिए दिवाली पूजन के सही मुहूर्त का ही चुनाव करें। अगर आप दिवाली का शुभ मुहूर्त नहीं जानते तो हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं दिवाली के शुभ संयोगों के बारे में-

दिवाली 2019 में 27 अक्टूबर मनाई जाएगी, दिवाली के शुभ संयोगों में इस बार प्रदोष काल मुहूर्त, वृषभ काल मुहूर्त और महानिशीथ काल मूहूर्त अत्याधिक उत्तम है, इसके अलावा स्थिर लग्नों में कि गई पूजा भी आपको विशेष लाभ दे सकती है।

दिल्ली में दिवाली 2019 पूजन का मुहूर्त (Delhi Diwali 2019 Pujan Muhurat)


लक्ष्मी पूजन महूर्त- शाम 6 बजकर 43 मिनट से रात 8 बजकर 14 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

प्रदोष काल महूर्त- शाम 5 बजकर 40 मिनट से रात 8 बजकर 14 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

स्थिर लग्न वृषभ काल महूर्त - शाम 6 बजकर 43 मिनट से रात 8 बजकर 39 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019 )

दिवाली 2019 महानिशीथ काल मुहूर्त (Diwali 2019 Mahanisith Kaal Muhurat)


लक्ष्मी पूजन मूहूर्त- रात 11 बजकर 39 मिनट से रात 12 बजकर 30 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

महानिशीथ काल मूहूर्त- रात 11 बजकर 39 मिनट से रात 12 बजकर 30 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

सिंह काल मुहूर्त - रात 1 बजकर 15 मिनट से सुबह 3 बजकर 33 मिनट तक (28 अक्टूबर 2019)



दिवाली 2019 शुभ चौघड़िया मुहूर्त (Diwali 2019 Subh Coghariya Muhurat)


प्रात: मुहूर्त्त(लाभ, अमृत ) - सुबह 9 बजकर 19 मिनट से 12 बजकर 5 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

अपराह्न मुहूर्त्त (शुभ) - दोपहर 1 बजकर 28 मिनट से 2 बजकर 52 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

सांयकाल मुहूर्त (शुभ, अमृत) - शाम 5 बजकर 36 मिनट से शाम 8 बजकर 51 मिनट तक (27 अक्टूबर 2019)

उषाकाल मुहूर्त्त (शुभ)- सुबह 4 बजकर 53 मिनट से 6 बजकर 29 मिनट तक (28 अक्टूबर 2019)



दिवाली 2019 का पंचांग (Diwali 2019 Ka Panchang)


तिथि- अमावस्या तिथि

चंद्र राशि - तुला

सूर्य राशि - तुला

नक्षत्र- चित्रा

योग-प्रीति

करण- नाग



किस मुहूर्त में करें पूजा (Kis Muhurat Mai Kare Puja)


दिवाली 2019 के अनुसार इस बार का शुभ मुहूर्त प्रदोष काल और महालनिशीथ काल में बन रहा है। इस साल सूर्योस्त के बाद तीन मूहूर्त दिवाली पूजन के लिए अति उत्तम है। जिनमें प्रदोष काल, वृषभ काल और सांयकाल मुहूर्त अति उत्तम है। अगर आप इस दिन स्थिर लग्न में पूजा करते हैं तो आपको दिवाली पूजन का अत्याधिक लाभ प्राप्त होगा। स्थिर लग्न वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ को कहा जाता है। दिवाली के दिन मां काली की भी पूजा की जाती है। इसके लिए महानिशीथ काल का मुहूर्त सर्वाधिक उत्तम है। यह समय तांत्रिक पूजा और सिद्धि प्राप्ति के लिए विशेष माना जाता है।

Friday, 15 November 2019

तुलसी-शालिग्राम विवाह । 8 नवम्बर 2 0 1 9 । देवउठनी एकादशी। तुलसी विवाह विधि। तुलसी व्रत कथा । तुलसी की कहानी।

                        


💢       🌿  8.11.2019 🍃     💢
💢💢💢"तुलसी -शालिग्राम विवाह"💢💢💢

      ⭕  तुलसी विवाह जीवन में एक बार अवश्य करना चाहिए, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है । इस दिन व्रत रखने का भी बहुत महत्व है। इससे पूर्व जन्म के पाप समाप्त  हो जाते हैं, और पुण्य की प्राप्ति होती है।
🌿 तुलसी विवाह में तुलसी जी का विवाह 🕳️शालिग्राम जी से किया जाता है। शालिग्राम जी  भगवान विष्णु के प्रतिरूप ही है। तुलसी को विष्णु प्रिया कहते है। तुलसी और विष्णु को पति पत्नी के रूप में माना जाता है। तुलसी  के बिना विष्णु भगवान की पूजा अधूरी मानी  जाती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कार्तिक स्नान करके तुलसी जी व शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है। इसी को तुलसी विवाह कहते हैं। इसका व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से शुरू हो जाता है। नवमी से ग्यारस तक अखण्ड दिए जलाये जाते है। तुलसी विवाह आप स्वयं भी कर सकते हैं या पंडित जी को बुलवाकर भी तुलसी विवाह करवाया जा सकता है। भक्ति भाव के साथ की गई पूजा कभी व्यर्थ नहीं जाती है।

                      💢  "तुलसी विवाह विधि" 💢

         तुलसी का गमला साफ सुथरा करके गेरू और चूने से रंगकर सजायें। साड़ी आदि से सुन्दर मंडप बनाकर गन्ने व फूलों से सजाना चाहिए। परिवार के सभी सदस्य शाम के समय तुलसी विवाह में शामिल होने के लिए नए कपड़े आदि पहन कर तैयार हो जाये। तुलसी के साथ शादी के लिए शालिग्राम जी यानि विष्णु जी की काली मूर्ति चाहिए होती है। ये नहीं मिले तो आप अपनी श्रद्धानुसार सोने, पीतल या मिश्रित धातु की मूर्ति ले सकते हैं या फिर विष्णु जी की तस्वीर भी ले सकते हैं। यदि कोई व्यवस्था ना हो पाए तो पंडित जी से आग्रह करने पर वे मंदिर से शालिग्राम जी की मूर्ति अपने साथ ला सकते है। सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें, फिर मंत्रो का उच्चारण करते हुए गाजे बाजे के साथ भगवान विष्णु की प्रतिमा को तुलसी जी के निकट लाकर रखे। भगवान विष्णु का आवाहन इस मन्त्र के साथ करें:-

            आगच्छ भगवन देव अर्चयिष्यामि केशव। 
            तुभ्यं दास्यामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव।।

          (हे भगवान केशव, आइये देव मैं आपकी पूजा करूँगा, आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा, आप मेरे सभी मनोरथ पूर्ण करना )

        तुलसी जी व भगवान विष्णु  की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा करके स्तुति, शंख, घंटे की मंगल नाद आदि के द्वारा भगवान को निद्रा से जगाये। 
विष्णु जी को पीले वस्त्र धारण करवाये, पीला रंग विष्णु जी का प्रिय है। कांसे के पात्र में दही, घी, शहद रखकर भगवान् को अर्पित करें। 🙏फिर पुरुष सूक्त से व षोडशोपचार से पूजा करें। तुलसी माता को 🔴लाल रंग की ओढ़नी ओढ़ानी चाहिए। 🕳️शालीग्राम जी को चावल नहीं चढ़ाये जाते हैं, इसीलिए उन्हें तिल चढ़ाये। दूध व हल्दी का लेप बनाकर शालिग्राम जी व तुलसी जी को चढ़ाये। गन्ने से बनाये गए मंडप की भी दूध हल्दी से पूजा करें। विवाह के समय निभाये जाने वाली सभी रस्मे करें।

 तुलसीजी और शालिग्राम जी के फेरे भी करवाने चाहिए।साथ ही “ओम तुलस्यै नमः” मन्त्र  का उच्चारण करना चाहिए। 
तुलसी माता की शादी के लिए साड़ी, ब्लाउज, मेहंदी, काजल, बिंदी, सिंदूर, चूड़ा आदि सुहाग का सामान तथा बर्तन चढ़ायें। जो भी भोजन बनाया हो वह एक थाली में दो जनो के लिए रखकर फेरों के समय भोग लगाने के लिए रखना चाहिए। 
कन्यादान का संकल्प करें और भगवान से प्रार्थना करें–"हे परमेश्वर ! इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण कीजिये। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है, वृन्दावन की भस्म में स्थित रही है। आपको तुलसी अत्यंत प्रिय है अतः इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने इसे पुत्री की तरह पाल पोस कर बड़ा किया है। और आपकी तुलसी आपको ही दे रहा हूँ। हे प्रभु ! इसे स्वीकार करने की कृपा करें।" इसके पश्चात् तुलसी और विष्णु दोनों की पूजा करें। तुलसी माता की कहानी सुने। कपूर से आरती करें तथा  तुलसी माता की आरती गाएं।

 भगवान को लगाए गए भोग का प्रसाद के रूप में वितरण करें।  सुबह हवन करके पूर्णाहुती करें। इसके लिए खीर, घी, शहद और तिल के मिश्रण की 108 आहुति देनी चाहिए। 

महिलायें तुलसी माता के गीत गाती है। उसी समय व्रत करने वाली के पीहर वाले कपड़े पहनाते है,  इसी समय शालीग्राम  व तुलसी माता को श्रद्धानुसार भोजन परोसकर भोग लगाना चाहिए, साथ में श्रद्धानुसार दक्षिणा अर्पित की जानी चाहिए। भगवान से प्रार्थना करें– "प्रभु ! आपकी प्रसन्नता के लिए किये गए इस व्रत में कोई कमी रह गई हो तो क्षमा करें। अब आप तुलसी को साथ लेकर बैकुंठ धाम पधारें। आप मेरे द्वारा की गई पूजा से सदा संतुष्ट रहकर मुझे कृतार्थ करें।" इस प्रकार तुलसी विवाह का परायण करके भोजन करें। भोजन में आँवला, गन्ना व बैर आदि अवश्य शामिल करें। भोजन के बाद तुलसी के अपने आप गिरे हुए पत्ते खाएँ, यह बहुत शुभ होता है। तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराना विष्णु भगवान की भक्ति का एक रूपक है। 




🚫नोट- विवाह उपरांत शालिग्राम को तुलसी के बगल किसी अलग गमले में किसी केले के पौधे में स्थापित कर दें। क्योंकि रात्रि में शालिग्राम और तुलसी को साथ रखना शास्त्रोक्त वर्जित है। कभी भी तुलसी को घर से विदा न करें क्योंकि माता वृंदा माता लक्ष्मी ही हैं। 
विवाहोपरांत माता लक्ष्मी और श्री हरि को अपने लोक में विदा करें तथा अपने घर की तुलसी और शालिग्राम में अंशात्मक रूप में रहकर सदा घर को धन - धान्य से परिपूर्ण रखें ऐसा निवेदन करें। 

📂इसके लिए जो कथा प्रचलित है वह इस प्रकार है:-

                   
                📙"तुलसी-शालिग्रामविवाह कथा"

         जलंधर नाम का एक दानव था। उसकी पत्नी वृंदा कठोर पतिव्रता धर्म का पालन करती थी। जलंधर की पत्नी की पतिव्रता शक्ति के कारण बड़े से बड़े देवता भी उसे परास्त नहीं कर पाये। वह अभिमान से ग्रस्त होकर अत्याचार करने लगा। देवता रक्षा के लिए विष्णु भगवान के पास पहुँचे। विष्णु भगवान ने छल से जलंधर का वेश धारण करके वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया। इस कारण जलंधर मारा गया। इस बात पर क्रोधित होकर वृंदा ने विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। विष्णु ने कहा– "हे वृंदा, तुम मुझे बहुत प्रिय हो। तुम्हारे सतीत्व के कारण तुम तुलसी  बन कर मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे बिना मै कोई भोग स्वीकार नहीं करूँगा। जो मनुष्य तुम्हारा और मेरा  विवाह करवाएगा वह परम धाम को प्राप्त होगा।" वृंदा सती हो गई और उसकी राख पर एक पौधे ने जन्म लिया। यही पौधा तुलसी है। पत्थर स्वरुप भगवान विष्णु जिन्हें शालिग्राम कहते हैं और तुलसी का विवाह इसी कारण से कराया जाता है। 

                     "तुलसी माता की कहानी"

        कार्तिक महीने में सब औरते तुलसी माता को सींचने जाती थी। सब तो सींच कर आती परन्तु एक बूढ़ी माई आती और कहती कि "हे तुलसी माता ! सत की दाता !, मैं बिलड़ा सींचूं तेरा, तू कर निस्तारा मेरा, तुलसी माता अड़ुआ दे लडुआ दे, पीताम्बर की धोती दे, मीठा मीठा गास दे, बैकुंठ का वास दे, चटके की चाल दे, पटके  की मौत दे, चन्दन की  काठ दे, झालर की झनकार दे, साई का राज दे, दाल भात का जीमन दे, ग्यारस की मौत दे, श्रीकृष्ण का कांधा दे।" यह बात सुनकर तुलसी माता सूखने लगीं तो भगवान ने पूछा, "हे तुलसी ! तुम क्यों सूख रही हो ? तुम्हारे पास इतनी औरतें रोज आती हैं, तुम्हे मीठा भोग लगाती हैं, गीत गाती है।" तुलसी माता ने कहा, "एक बूढ़ी माई रोज आती है और इस तरह की बात कह जाती है। मैं सब बात तो पूरी कर दूँगी पर कृष्ण का कन्धा कहाँ से दूँगी।" भगवान  बोले,  "वह मरेगी तो कन्धा मैं दे आऊँगा।" कुछ समय पश्चात बूढ़ी माई का देहांत हो गया। सारे गाँव वाले एकत्रित हो गए और बूढ़ी माई को ले जाने लगे तो वह इतनी भारी हो गयी की किसी से भी नहीं उठी सबने कहा इतना पूजा पाठ करती थी, पाप नष्ट होने की माला फेरती थी, फिर भी इतनी भारी कैसे हो गयी। बूढ़े ब्राह्मण के रूप में भगवान वहाँ आये और पूछा ये भीड़ कैसी है ? तब वहाँ खड़े लोग बोले ये बूढ़ी माई मर गयी है। पापिन थी इसीलिए भारी हो गयी है किसी से भी उठ नहीं रही है तो भगवान ने कहा मुझे इसके कान में एक बात कहने दो शायद उठ जाये। भगवान ने बूढ़ी माई के पास जाकर कान में कहा कि बूढ़ी माई मन की निकाल ले अड़ुआ ले गडुआ ले, पीताम्बर की धोती ले, मीठा मीठा ग्रास ले, बैकुण्ठ का वास ले, चटक की चाल ले, चन्दन की काठ ले, झालर की झंकार, दाल भात का जीमन ले और कृष्ण का कांधा ले। इतना सुनना था की बुढ़िया हल्की हो गयी भगवान अपने कंधे पर ले गए और बुढ़िया को मुक्ति मिल गयी।
           हे तुलसी माता ! जैसी मुक्ति बूढ़ी माई की करी वैसी ही हमारी भी करना और जैसे उसको कन्धा मिला वैसे सभी को देना।

                     "तुलसी माता की आरती"

जय जय तुलसी माता, सब जग की सुख दाता॥जय॥
सब योगों के ऊपर, सब लोगो के ऊपर।
                        रुज से रक्षा करके भव त्राता॥जय॥
बटु पुत्री हे श्यामा सुर बल्ली हे ग्राम्या।
    विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे सो नर तर जाता॥जय॥
हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।
       पतित जनों की तारिणी तुम हो विख्याता॥जय॥
लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में।
          मानवलोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता॥जय॥
हरि को तुम अति प्यारी श्याम वरुण कुमारी।
            प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता॥जय॥

                          "जय तुलसी माता"
आचार्य मुकेश एन. सुमन
ASTRO NAKSHATRA 27

Monday, 11 November 2019

देव दिवाली /Kartik Purnima 2019 Date Time DEV DIWALI : कार्तिक पूर्णिमा कब है, कार्तिक पूर्णिमा का महत्व, व्रत विधि, स्नान और कार्तिक पूर्णिमा की कहानी


दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के ही दिन देव दिवाली का त्योहार मानाया जाता है. हर त्योहार की तरह यह त्योहार भी कई राज्यों में मनाया जाता है. लेकिन इसका सबसे ज्यादा उत्साह बनारस में देखने को मिलता है. इस दिन मां गंगा की पूजा की जाती है. इस दिन गंगा के तटों का नजारा बहुत ही अद्भुत होता है, क्योंकि देव दिवाली के इस पर्व पर गंगा नदी के घाटों को दीए जलाकर रोशन किया जाता है.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व (Kartik Purnima Ka Mahatva)


कार्तिक पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से पूजा करना सबसे अधिक पवित्र और पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन पूजा करने से घर में समृद्धि आती है। इस दिन पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। कार्तिक पूर्णिमा पर पूजा करने से कुंडली में शनि दोष भी समाप्त हो जाते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासर राक्षस का अंत किया था। त्रिपुर ने एक लाख वर्ष तक प्रयाग में तपस्या की थी और ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया था और ये वरदान मांगा था कि वह किसी देवता या मनुष्य के हाथों न मारा जाए। जिसके बाद भगवान शिव ने उस राक्षस का वध करके संसार में धर्म की स्थापना की थी।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन चावलों के दान को बेहद शुभ माना जाता है। चावल को चंद्रदेव की वस्तुओं में गिना जाता है। इसलिए इस दिन चावल के दान को शुभ माना जाता है। कार्तिकपूर्णिमा के दिन घर के दरवाजे पर रंगोली बनाना भी शुभता का प्रतीक माना जाता है।


कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि (Kartik Purnima Puja Vidhi)


1.कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठें। इसके बाद जल और चावल मिलाकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।

2.कार्तिक पूर्णिमा के दिन घर के मुख्यद्वार पर आम के पत्तों को तोरण बनाकर लगाएं।

3.भगवान शिव की विधिवत पूजा करें। शाम के समय में तुलसी के नीचे दीपक प्रज्वलित करें।

4.कार्तिक पूर्णिमा के दिन बहन, भांजे, बुआ, बेटी को दान के रूप में कुछ दें।

5.कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरसों का तेल, तिल, काले वस्त्र किसी निर्धन व्यक्ति को अवश्य दान करें।


इन बातों का रखें ध्यान

- देव दिवाली के दिन गंगा स्नान का बहुत महत्व होता है.

- इस दिन घरों में तुलसी के पौधे के आगे दीपक जलाना भी बहुत शुभ माना जाता है.

- देव दिवाली के दिन दीये दान करना बहुत शुभ माना जाता है.

- माना जाता है कि जो लोग इस दिन पूरब की तरफ मुंह करके दीये दान करते हैं, उनपर ईश्वर की कृपा होती है. यह भी कहा जाता है कि इस दिन दीये दान करने वालों को ईश्वर लंबी आयु का वरदान देते हैं. साथ ही घर में सुख शांति का माहौल बना रहता है.



कार्तिक पूर्णिमा की कथा (Kartik Purnima Katha)


कार्तिक पूर्णिमा कथा के अनुसार एक बार त्रिपुर नाम के असुर ने कठोर तपस्या की। त्रिपुर की तपस्या को देखकर जड़-चेतन, जीव-जन्तु तथा देवता आदि सभी डर गए थे। उस समय सभी देवताओं ने त्रिपुर की तपस्या को भंग करने का निर्णय लिया और उन्होंने अत्यंत ही सुंदर अप्साराओं को उसके पास भेजा।

लेकिन त्रिपुर की तपस्या इतनी कठोर थी कि वह उसे भंग नहीं कर पाई। जिसके बाद ब्रह्मा जी स्वंय प्रकट हुए और उसे अपनी तपस्या का वरदान मांगने के लिए कहा। तब त्रिपुर ने वरदान स्वरुप मांगा की उसे न तो कोई देवता मार सके और न ही कोई मनुष्य। ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया।

इस वरदान के मिलते ही उसने लोगों पर अत्याचार करना शुरु कर दिया। जिसके बाद वह कैलाश की और चल पड़ा। कैलाश पर पहुंचने के बाद उसके और भगवान शिव के भंयकर युद्ध हुआ। यह युद्ध काफी लंबे समय तक चला। जिसके बाद भगवान शिव ने विष्णु और ब्रह्मा जी आह्वाहन किया और उस राक्षस को मार दिया।