भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।
संकष्टी चतुर्थी का उपवास कठोर होता है जिसमे केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली श्रद्धालुओं का मुख्य आहार होते हैं। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं। मान्यता है कि ये व्रत सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक होता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन का बेहद महत्व होता है। इस व्रत को चंद्र दर्शन के साथ पूर्ण करना अत्यंत शुभ होता है। इसके बाद ही व्रत पूरा माना जाता है। कहते हैं संकष्टी के दिन व्रत रखने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। सालभर में संकष्टी चतुर्थी के 13 व्रत रखे जाते हैं और हर व्रत के लिये एक अलग व्रत कथा भी होती है।
आइए, जानें कैसे करें यह व्रत : व्रत का प्रभाव (आचार्य मुकेश के द्वारा)
जब किसी जातक की जन्मकुंडली में बुध ग्रह ठीक न हो, जैसे अशुभ भावो का स्वामी हो.....अशुभ ग्रहों से द्वारा द्रष्ट हो......या शुभ भाव में होकर भी निर्बल हो........क्रूर ग्रहों के साथ युति हो रही हो.....जिसके प्रभाव से उसके जीवन में धनाभाव (आर्थिक समस्या) स्वास्थ्य की समस्या, व्यापार में निरंतर हानि जैसे परिणाम मिल रहे हो तो शास्त्र में बुधग्रह के जाप, दान व पूजा, श्री गणेश जी की पूजा, बुधवार व गणेश चतुर्थी के साथ व्रत का नियम है |
सभी गृहस्थों को जीवन में कम से कम एक बार संकट चतुर्थी व्रत अवश्य करना चाहिए। इससे जीवन में कोई बाधा नहीं आती। सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है।
जो चतुर्थी तिथि में उपवास कर श्रीगणपति अथर्वशीर्ष जप करता है, वह विद्यावान् हो जाता है।
किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए संकट चतुर्थी व्रत का संकल्प लेकर इसे पूर्ण करना चाहिए। इससे कामना अवश्य पूरी होती है।
भगवान श्री गणेश की कृपा से सिद्धि-बुद्धि, ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से मनुष्य में स्वाभाविक रूप से ज्ञान प्रवाहित होता है।
ज्योतिष की दृष्टि से देखा जाए तो संकट चतुर्थी व्रत करने से नवग्रहों की शांति होती है। जीवन में शुभता आती है।
जन्म कुंडली में यदि चंद्र बुरे प्रभाव दे रहा हो तो यह व्रत करने से चंद्र की अनुकूलता प्राप्त होती है।
जीवनसाथी की स्वस्थता और दीर्घायु प्राप्ति के लिए पुरुष या स्त्री समान रूप से इस व्रत को कर सकते हैं।
उच्च कोटि की संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत करना चाहिए।
कैसे करें संकष्टी गणेश चतुर्थी :-
* चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
* इस दिन व्रतधारी लाल रंग के वस्त्र धारण करें।व्रत का संकल्प लें।
* श्रीगणेश की पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर रखें।
* तत्पश्चात स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें।
* फल, फूल, रौली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से श्रीगणेश को स्नान कराके विधिवत तरीके से पूजा करें।
* गणेश पूजन के दौरान धूप-दीप आदि से श्रीगणेश की आराधना करें।
* श्री गणेश को तिल से बनी वस्तुओं, लड्डू तथा मोदक का भोग लगाएं। 'ॐ सिद्ध बुद्धि सहित महागणपति आपको नमस्कार है। नैवेद्य के रूप में मोदक व ऋतु फल आदि अर्पित है।'
* सायंकाल में व्रतधारी संकष्टी गणेश चतुर्थी की कथा पढ़े अथवा सुनें .
*चतुर्थी को श्रीगणपति अथर्वशीर्ष पाठ जरूर करें। गणपति अथर्वशीर्ष संस्कृत में रचित एक लघु उपनिषद है। इस उपनिषद में गणेश को परम ब्रह्म बताया गया है। यह अथर्ववेद का भाग है।
* चतुर्थी के दिन व्रत-उपवास रख कर चन्द्र दर्शन करके गणेश पूजन करें।
* तत्पश्चात गणेशजी की आरती करें।
* विधिवत तरीके से गणेश पूजा करने के बाद गणेश मंत्र
'ॐ गणेशाय नम:' अथवा
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