एकादशी व्रत कथा व महत्व के बारे में तो सभी जानते हैं। हर मास की कृष्ण व शुक्ल पक्ष को मिलाकर दो एकादशियां आती हैं। यह भी सभी जानते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। जो एकादशी होलिका दहन और चैत्र नवरात्रि के मध्य में आती है उसे पापमोचिनी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। यह एकादशी इस बार 31 मार्च को है। यह सम्वत साल की आखिरी एकादशी है और युगादी से पहले पड़ती हैं।इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही आरोग्यता तथा सम्पन्नता आती है। इस दिन दान का बहुत महत्व है। इस महान दिवस का श्रद्धा पूर्वक व्रत रखने से कई जन्मों के पापों का नाश होता है।
इससे यह भी पता चलता है कि कामभावना मोक्ष प्राप्त करने के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है, जिसे जीतने में साधारण मनुष्य तो क्या, ऋषि मुनि भी असफल होते हैं।
पापमोचिनी एकादशी तिथि व मुहूर्त
पापमोचिनी एकादशी रविवार, मार्च 31, 2019 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ - मार्च 31, 2019 को 03:23 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - अप्रैल 01, 2019 को 06:04 बजे
पापमोचिनी एकादशी व्रत व पूजा विधि
नारदपुराण के अनुसार, जातक ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद घट स्थापना करें और उसके ऊपर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें और गंगाजल के छींटे दें। भगवान की तस्वीर या मूर्ति पर रोली और अक्षत से तिलक करें और सफेद फूल चढ़ाएं। इसके बाद घी का एक दीपक जलाएं और उनकी आरती उतारें। इसके बाद उनका भोग लगाएं। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान व दक्षिणा देते हैं। इस दिन किसी भी एक समय फलाहार किया जाता है।
एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है। उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से दातुन कुल्ला करना चाहिये ताकि अन्न का अंश मुंह में शेष न रहे। इसके बाद रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। अधिक बोलकर अपनी ऊर्जा को भी व्यर्थ न करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें। भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें। दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें। जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।
एकादशी करते हों तो ध्यान रखें कुछ बातों का :
🚫1. एकादशी के दिन सुबह दातुन या ब्रश न करें!नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। * यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें।
🚫2. एकादशी के दिन झाड़ू पोछा इत्यादि बिलकुल न करें! क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।
🚫3. एकादशी के दिन तुलसीदल न तोड़ें, भगवन को भोग लगाने हेतु एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लें।
🚫4. अगर घर में दक्षिणावर्ती शंख हो तो उसमे जल लेकर भगवान शालिग्राम को स्नान करवाएं, या पंचामृत से स्नान करवाएं!इस से सारे पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं तथा माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रशन्न होते हैं।
🚫5.एकादशी के दिन भगवान् श्री हरि को पीली जनेऊ अर्पित करें। पान के पत्ते पर एक सुपारी, लौंग, इलायची, द्रव्य, कपूर, किसमिस तुलसीदल के साथ इत्यादि अर्पित करें, साथ ही ऋतुफल भी अर्पित करें! एक तुलसीदल भगवान् पर भी चढ़ाएं पर रात्रि में उसे हटाना न भूले।
🚫6.एकादशी के दिन सुबह संकल्प लें, मन में मनोकामना करते हुए श्री हरि से व्रत में रहने का संकल्प करें!
🚫7. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है, कोशिश करें की इस एकादशी जरूर जागरण करें, इस से व्रत फल 100 गुणा बढ़ जाता है!
🚫8. एकादशी के दिन चावल भूल से भी न छुएं, न ही घर में चावल बनें, इस दिन चावल खाने से बेहद नकरात्मक फल प्राप्त होते हैं, भाग्य खंडित होता है! एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। * केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। * प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।
🚫9. एकादशी के दिन कम से कम बोलें, पापी लोगों से बात न करें, जिनके मन में लालच, पाप या कोई भी अनैतिक तत्व दिखे कम से कम इस दिन उन सभी से दूर रहने का प्रयत्न करें! परनिंदा से बचें!
🚫10.श्री हरि की विशेष कृपा हेतु ॐ नमो भगवते वासुदेवाय की 11 माला सुबह और 11 माला शाम में करें, साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करें! एकादशी व्रत कथा कहे या सुनें।
🚫11. शाम में केले के पेड़ के नीचे एवं तुलसी में दीपक जलाना न भूले, इसे दीप-दान कहते हैं!
🚫12. माता लक्षमी के बिना विष्णु अधूरे हैं इसलिए माता की भी आरती अवश्य करें, सुबह और शाम शंखनाद एवं घंटियों की ध्वनि में ॐ जय जगदीश हरे की आरती करना न भूले!
🚫13. एकादशी के दिन केले के पेड़ की 7 परिक्रमा करने से धन में बढ़ोतरी होती है!
🚫14. व्रत पंचांग के समयानुसार ही खोलें अन्यथा लाभ की जगह नुक्सान भी हो सकता है, व्रत एवं पूजा के नियमों में करने से ज्यादा कुछ बातें जो हमे नहीं करनी चाहिए वो ही ज्यादा महत्व रखती है. अतः सावधानी से की गई पूजा सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करती है.
🚫15 .आज के दिन किसका त्याग करें-
🍁मधुर स्वर के लिए गुड़ का।
🍁दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। 🍁शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का।
🍁सौभाग्य के लिए मीठे तेल का।
🍁स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का।
प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।
🚫16. दोनों ही दिन शाम में संध्या आरती कर दीपदान करें। अखंड लक्षमी प्राप्त होगी। पैसा घर में रुकेगा।
🚫17. शंख ध्वनि से भी माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रसन्न होते हैं। अतः पूजा के समय जरूर शंख का उपयोग करें । पूजा के पहले शुद्धिकरण मंत्र तथा आचमन करना न भूलें क्योंकि इसके बिना पूजा का फल प्राप्त नहीं हो पाता।
🚫18. तुलसी की विधिवत पूजा करके उसकी 7
परिक्रमा करें।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार
राजा मान्धाता और महर्षि लोमश से संबंधित कथा युधिष्ठिर को कृष्ण ने सुनाई थी। लोमश ऋषि ने मान्धाता से कहा- अप्सराओं द्वारा सेवित चैत्ररथ नामक सुंदर वन में मंजूघोषा नामक अप्सरा को स्वर्ग के राजा इन्द्र ने उसी स्थान में तपस्या कर रहे ऋषि मेधावी की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। शाप के भय से मंजूघोषा आश्रम से एक कोस दूर ही वीणा बजाते हुए मधुर गीत गाने लगी।
टहलते हुए मुनि वहां जा पहुंचे और उसी समय सहायक के रूप में पहुंचे कामदेव ने मुनि में मंजूघोषा के प्रति कामभावना भर दी। ऋषि काम के वशीभूत हो गए। बरसों बीत गए। मंजूघोषा ने देखा कि अब इनका तप पुण्य समाप्त हो गया है। तपस्या भंग हो गई है। वह देवलोक जाने को तैयार हुई और कहा, 'मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये।' मेधावी बोले, 'जब तक सवेरे की संध्या न हो जाए, तब तक तो मेरे ही पास ठहरो।' अप्सरा ने कहा, 'विप्रवर! बहुत-सी संध्या बीत चुकी हैं।' मुनि चौंके। देखा तो 57 बरस बीत चुके थे। क्रोध में वह बोले, 'मेरी तपस्या भंग की।
जा पिशाची हो जा।' मंजूघोषा ने डर कर कहा, 'मेरे शाप का उद्धार करें ऋषिवर। सात वाक्य बोलने या सात कदम साथ-साथ चलने मात्र से ही सत्पुरुषों में मैत्री हो जाती है। फिर मैं तो आपके साथ बरसों रही हूं।' मेधावी को मंजूघोषा की बात समझ में आ गई, उन्होंने कहा, 'चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करो, उसके करने से ही तुम्हारा कष्ट दूर होगा।' अप्सरा ने विधि-विधान से चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। मेधावी इस पूरे प्रकरण से बहुत लज्जित हो गए थे। वह अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम पहुंचे। च्यवन ने भी मेधावी से सब कुछ सुन कर उन्हें पापमोचनी एकादशी का ही व्रत करने को कहा। मेधावी ने भी व्रत कर तप बल पुन: प्राप्त किया।
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करना चाहिए। एकादशी तिथि में रात भर जागना अद्भुत फल प्रदान करता है।
राजा मान्धाता और महर्षि लोमश से संबंधित कथा युधिष्ठिर को कृष्ण ने सुनाई थी। लोमश ऋषि ने मान्धाता से कहा- अप्सराओं द्वारा सेवित चैत्ररथ नामक सुंदर वन में मंजूघोषा नामक अप्सरा को स्वर्ग के राजा इन्द्र ने उसी स्थान में तपस्या कर रहे ऋषि मेधावी की तपस्या को भंग करने के लिए भेजा। शाप के भय से मंजूघोषा आश्रम से एक कोस दूर ही वीणा बजाते हुए मधुर गीत गाने लगी।
टहलते हुए मुनि वहां जा पहुंचे और उसी समय सहायक के रूप में पहुंचे कामदेव ने मुनि में मंजूघोषा के प्रति कामभावना भर दी। ऋषि काम के वशीभूत हो गए। बरसों बीत गए। मंजूघोषा ने देखा कि अब इनका तप पुण्य समाप्त हो गया है। तपस्या भंग हो गई है। वह देवलोक जाने को तैयार हुई और कहा, 'मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये।' मेधावी बोले, 'जब तक सवेरे की संध्या न हो जाए, तब तक तो मेरे ही पास ठहरो।' अप्सरा ने कहा, 'विप्रवर! बहुत-सी संध्या बीत चुकी हैं।' मुनि चौंके। देखा तो 57 बरस बीत चुके थे। क्रोध में वह बोले, 'मेरी तपस्या भंग की।
जा पिशाची हो जा।' मंजूघोषा ने डर कर कहा, 'मेरे शाप का उद्धार करें ऋषिवर। सात वाक्य बोलने या सात कदम साथ-साथ चलने मात्र से ही सत्पुरुषों में मैत्री हो जाती है। फिर मैं तो आपके साथ बरसों रही हूं।' मेधावी को मंजूघोषा की बात समझ में आ गई, उन्होंने कहा, 'चैत्र कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी का व्रत करो, उसके करने से ही तुम्हारा कष्ट दूर होगा।' अप्सरा ने विधि-विधान से चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत किया, जिससे उसे पिशाच योनि से मुक्ति मिल गई। मेधावी इस पूरे प्रकरण से बहुत लज्जित हो गए थे। वह अपने पिता च्यवन ऋषि के आश्रम पहुंचे। च्यवन ने भी मेधावी से सब कुछ सुन कर उन्हें पापमोचनी एकादशी का ही व्रत करने को कहा। मेधावी ने भी व्रत कर तप बल पुन: प्राप्त किया।
एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस दिन श्रीमद्भागवत कथा का पाठ करना चाहिए। एकादशी तिथि में रात भर जागना अद्भुत फल प्रदान करता है।
पारण (व्रत तोड़ने का) समय एवं नियम
1वाँ अप्रैल को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 13:39 से 16:07
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 12:43पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 12:43
1वाँ अप्रैल को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 13:39 से 16:07
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 12:43पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय - 12:43
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं।
एकादशी - आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
ॐ जय एकादशी...॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
ॐ जय एकादशी...॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
ॐ जय एकादशी...॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
ॐ जय एकादशी...॥
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
ॐ जय एकादशी...॥
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
ॐ जय एकादशी...॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
ॐ जय एकादशी...॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
ॐ जय एकादशी...॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
ॐ जय एकादशी...॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
ॐ जय एकादशी...॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
ॐ जय एकादशी...॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
ॐ जय एकादशी...॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
ॐ जय एकादशी...॥
आरती श्री जगदीशजी
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
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