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Saturday, 24 August 2019

2019 कृष्ण जन्माष्टमी, गोकुलाष्टमी पूजा/ जन्माष्टमी मुहूर्त्त #Janmashtami 2019/ कब मनाएं कृष्ण जन्माष्टमी ?


न्माष्टमी का त्यौहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मथुरा नगरी में असुरराज कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में  पौराणिक ग्रंथों के मतानुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी को पैदा हुए। उनके जन्म के समय अर्धरात्रि (आधी रात) थी, चन्द्रमा उदय हो रहा था और उस समय रोहिणी नक्षत्र भी था। इसलिए भाद्रपद मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र का भी संयोग हो तो वह और भी भाग्यशाली माना जाता है इसे जन्माष्टमी के साथ साथ जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

कब मनाएं जन्माष्टमी 23 / 24 August ?
जन्माष्टमी को लेकर पंचांग भेद 
इस साल भी जन्माष्टमी 23 और 24 अगस्त 2019 को लेकर काफी उलझन बनी हुई है। ज्योतिर्विदों की माने तो भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाना सर्वोत्तम माना गया है। पंचांग के मुताबिक, रोहिणी नक्षत्र 23 अगस्त 2019 रात 11:56 बजे से ही शुरु हो जाएगा। 23 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र 44 घड़ी का है इसलिए कृष्णजी का जन्मदिन इस घड़ी में मनाना ही शुभ माना गया है। लेकिन Astro Nakshatra 27 से ज्योतिषाचार्य मुकेश जी  के अनुसार, 24 अगस्त को ही सूर्योदय से लेकर 25 अगस्त सुबह 4 बजे तक रोहिणी नक्षत्र के साथ अमृतसिद्धि योग रहेगा, इसलिए शनिवार को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाए जाने की सलाह दी जा रही है। ऐसे में 24 अगस्त को पूजा का शुभ मुहुर्त 12:01 बजे से 12:46 बजे तक का है और पारण का समय सुबह 05:59 बजे का है।   

कृष्ण जन्माष्टमी का मुहूर्त
धर्मसिन्धु और निर्णयसिन्धु में, जन्माष्टमी के दिन को निर्धारित करने के लिये स्पष्ट नियम हैं।

1. अष्टमी पहले ही दिन आधी रात को विद्यमान हो तो जन्माष्टमी व्रत पहले दिन किया जाता है।

2. अष्टमी केवल दूसरे ही दिन आधी रात को व्याप्त हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

3. अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र का योग एक ही दिन हो तो जन्माष्टमी व्रत रोहिणी नक्षत्र से युक्त दिन में किया जाता है।

4. अष्टमी दोनों दिन आधी रात को विद्यमान हो और दोनों ही दिन अर्धरात्रि (आधी रात) में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त रहे तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

5. अष्टमी दोनों दिन आधी रात को व्याप्त हो और अर्धरात्रि (आधी रात) में दोनों दिन रोहिणी नक्षत्र का योग न हो तो जन्माष्टमी व्रत दूसरे दिन किया जाता है।

6. अगर दोनों दिन अष्टमी आधी रात को व्याप्त न करे तो प्रत्येक स्थिति में जन्माष्टमी व्रत दूसरे ही दिन होगा।


जन्माष्टमी व्रत व पूजन विधि

1.  इस व्रत में अष्टमी के उपवास से पूजन और नवमी के पारण से व्रत की पूर्ति होती है।
2.  इस व्रत को करने वाले को चाहिए कि व्रत से एक दिन पूर्व (सप्तमी को) हल्का तथा सात्विक भोजन करें। रात्रि को स्त्री संग से वंचित रहें और सभी ओर से मन और इंद्रियों को काबू में रखें।
3.  उपवास वाले दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर  सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठें। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें।
4.  हाथ में जल, फल और पुष्प लेकर संकल्प करके मध्यान्ह के समय काले तिलों के जल से स्नान (छिड़ककर) कर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएँ। अब इस सूतिका गृह में सुन्दर बिछौना बिछाकर उस पर शुभ कलश स्थापित करें।
5.  साथ ही भगवान श्रीकृष्ण जी को स्तनपान कराती माता देवकी जी की मूर्ति या सुन्दर चित्र की स्थापना करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी इन सबका नाम क्रमशः लेते हुए विधिवत पूजन करें।
6.  यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। फलहार के रूप में सिंघाड़े के आटे का हलवा बनाया जाता है या फिर सिर्फ फलाहार पर ही व्रत किया जाता है।

व्रत अगले दिन सूर्योदय के पश्चात ही तोड़ा जाना चाहिए। इसका ध्यान रखना चाहिए कि व्रत अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने के पश्चात ही तोड़ा जाएं। किन्तु यदि अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र सूर्यास्त से पहले समाप्त ना हो, तो किसी एक के समाप्त होने के पश्चात व्रत तोड़े। किन्तु यदि यह सूर्यास्त तक भी संभव ना हो, तो दिन में व्रत ना तोड़े और अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में से किसी भी एक के समाप्त होने की प्रतीक्षा करें या निशिता समय में व्रत तोड़े। ऐसी स्थिति में दो दिन तक व्रत न कर पाने में असमर्थ, सूर्योदय के पश्चात कभी भी व्रत तोड़ सकते हैं।


जन्माष्टमी कथा

द्वापर युग के अंत में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करते थे। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था। कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वयं राजा बन गया। कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निश्चित हो गया। जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई, हे कंस! जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से विदा कर रहा है उसका आठवाँ पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने के लिए तैयार हो गया। उसने सोचा - न देवकी होगी न उसका कोई पुत्र होगा।

वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हें देवकी से तो कोई भय नहीं है। देवकी की आठवीं संतान से भय है। इसलिए मैँ इसकी आठवीं संतान को तुम्हे सौंप दूँगा। कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बंद कर दिया। तत्काल नारद जी वहाँ आ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चलेगा कि आठवाँ गर्भ कौन-सा होगा। गिनती प्रथम से शुरू होगी या अंतिम गर्भ से। कंस ने नारद जी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालकों को एक-एक करके निर्दयतापूर्वक मार डाला।

भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण जी का जन्म हुआ। उनके जन्म लेते ही जेल की कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव-देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा एवं पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा, अब में बालक का रूप धारण करता हूँ। तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लेकर कंस को सौंप दो। वासुदेव जी ने वैसा ही किया और उस कन्या को लेकर कंस को सौंप दिया।

कंस ने जब उस कन्या को मारना चाहा तो वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और देवी का रूप धारण कर बोली कि मुझे मारने से क्या लाभ है? तेरा शत्रु तो गोकुल पहुँच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे। श्रीकृष्ण जी ने अपनी आलौकिक माया से सारे दैत्यों को मार डाला। बड़े होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया।

जन्माष्टमी का महत्व

1. इस दिन देश के समस्त मंदिरों का श्रृंगार किया जाता है।
2. श्री कृष्णावतार के उपलक्ष्य में झाकियाँ सजाई जाती हैं। 
3. भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार करके झूला सजा के उन्हें झूला झुलाया जाता है।

इस अत्यंत शुभावसर पर श्रीकृष्ण के भक्त, उनके उपासक व्रत करते हैं और और प्रभु का ध्यान करते हैं। कुछ उपासक रात्रि जागरण भी करते हैं और कृष्ण के नाम के भजन-कीर्तन करते हैं। कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और वृन्दावन में जन्माष्टमी भव्य रूप से मनाया जाता है। यहाँ की रासलीला केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी प्रसिद्ध है। इन रासलीला में कृष्ण के जीवन के मुख्य वृतांतों को दर्शाया जाता है और राधा के प्रति उनके प्रेम का अभिनन्दन किया जाता है।

कईं शहरों में झांकियां भी बनाई जाती हैं जिनमें ना केवल श्रीकृष्ण और राधा बल्कि अन्य देवी-देवताओं के रूप में उनके भक्त विराजमान रहते हैं और बाकी के उपासक उनके दर्शन करते हैं। महाराष्ट्र में विशेष रूप से इस दिन मटकी फोड़ने की प्रथा प्रचलित है। उपासकों द्वारा इंसानी मीनार बनाकर धरती से कईं फुट ऊंची मटकी को तोड़कर यह प्रथा पूर्ण होती है। बड़ी तादाद में भक्तजन एकत्रित होते है और गाना-बजाना, नृत्य आदि करते हैं।

कृष्ण भूमि द्वारका में इस विशेष अवसर पर बड़ी धूमधाम होती है। इस दिन यहाँ देश-विदेश से बहुत पर्यटक आते हैं। इस भव्य समारोह को कृष्ण जन्मोत्सव के नाम से भी जाना जाता है।

स्त्री-पुरुष व्रत रखते हैं। रात को बारह बजे शंख तथा घंटों की आवाज से श्रीकृष्ण के जन्म की खबर चारों दिशाओं में गूँज उठती है। भगवान कृष्ण जी की आरती उतारी जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है।

इस लेख के साथ हम आशा करते हैं कि जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आपको भगवन कृष्ण की असीम कृपा प्रदान हो।
Acharya Mukesh
Astro Nakshatra 27

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