🦅पितृ पक्ष कैलेंडर 2018 एवं जानें क्यों करें श्राद्ध👍
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क्या आपके जीवन में बार-बार परेशानी आ रही है?
कहीं आपके सपने में बार बार पितृ दर्शन तो नहीं दे रहे?
पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों का तर्पण कराते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है. इससे मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय पितरों का श्राद्ध कराना है. श्राद्ध करने के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है!
साल 2018 में पितृ-पक्ष 24 सितंबर 2018 सोमवार से शुरू हो रहा है. यह 8 अक्टूबर 2018 सोमवार तक रहेगा.
यहां देखें तिथियों की पूरी सूची और जानें, किस दिन कौन सा श्राद्ध है-
पितृ पक्ष कैलेंडर 2018
24 सितंबर 2018 सोमवार पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 मंगलवार प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 बुधवार द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 गुरुवार तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर 2018 शुक्रवार चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 शनिवार पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 रविवार षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सोमवार सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 बुधवार नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 शनिवार द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 रविवार त्रयोदशी श्राद्ध,चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सोमवार सर्वपितृ अमावस्या,
महालय अमावस्या !
क्या है श्राद्ध:
श्रद्धापूर्वक जो किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्रद्धा शब्द में ‘श्रत्' अर्थात् सत्य और ‘धा' यानी धारण करना शामिल है। श्राद्ध का सरलतम अर्थ सत्य को धारण करना है, और जीवन का सबसे बड़ा सत्य ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' है। तैतरीय उपनिषद् के अनुसार मिट्टी से निर्मित इस शरीर के विविध तत्वों का मृत्यु उपरांत ब्रह्मांड में विलय हो जाता है, पर मोह के धागे नहीं छूटते हैं। मरणोपरान्त भी आत्मा में मोह, माया का अतिरेक होता है और यह प्रेम ही उन्हें पितृ पक्ष में धरती पर वंशजों के पास खींचता है।
1.ऐसी मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या) तक यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
पितर का अर्थ पितृ या श्रेष्ठजन होता है और बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार ‘पुत्र' वह है, जो न किए गए कार्यों से अपने पिता की रक्षा करता है। ‘पुत्' का अर्थ पूरा करना है और ‘त्र' का अर्थ रक्षा करना है। इसीलिएपुत्रया पुत्री, जिसे वृहद अर्थों में समझें तो प्रत्येक मनुष्य पर तीन ऋण होते हैं- पितृ ऋण, दैव ऋण और गुरु ऋण। मनुष्य लोक में पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। हम सभी को श्राद्ध पक्ष एक अवसर देता है कि हम अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें।
3.श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। ‘पिंड' एक प्रतीक है, जीवन की शुरुआत का। ‘पिंड' का अर्थ शरीर है, जिसमें समग्र ब्रह्मांड की छवि आलोकित है और उस सत्य की अभिव्यक्ति छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित ‘तत्-त्वम्-असि' शब्दों के द्वारा होती है। इसका अर्थ है कि ‘तुम' में वह ब्रह्म आलोकित है, जैसे नमक जल में विलीन हो जाता है, पर उसका अस्तित्व नष्ट नहीं होता है, वैसे ही ब्रह्म शरीर में व्याप्त है, वह दिखाई नहीं देता है। उसकी अभिव्यक्ति प्राण में है और जीवों की प्रियता ‘प्राण' द्वारा प्रकट होती है। इसलिए जो मन को अति प्रिय होता है, उसके हेतु ‘प्राण-प्रिय' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
4.श्राद्ध पक्ष में जल और अन्न से तर्पण करना चाहिए। वस्तुत: पितर सूक्ष्म शरीर हैं अर्थात् ब्रह्म की ज्योति हैं, पर अभी मुक्त नहीं हुए हैंं। उनका प्राण ‘प्रिय' में यानी कि वंशजों में, उत्तराधिकारियों में उलझा हुआ है।
5.श्राद्ध पक्ष में जल का अर्घ्य दिया जाता है। जल से ही विश्व जन्म लेता है, उसके द्वारा सिंचित होता है और फिर उसमें लीन हो जाता है। तर्पण में जल में अन्न मिलाकर अर्पित करने का प्रावधान है, क्योंकि यह शरीर अन्न से अनुप्राणित होता है। भक्ति भाव से पितरों को जब जल और अन्न द्वारा श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है।
विशेष*
जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्य़ु होने पर भी अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है।
जिसने आत्महत्या की हो, या जिनकी हत्या हुई हो ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि के किया जाता है।
पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो नवमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
वहीं एकादशी में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगों ने संन्यास लिया हो।
इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।🔴
1. श्राद्ध करने के लिए ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं।
2. पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
3. कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पितर की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
4. श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए। जिसमें उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।
5. श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरो पर पड़ने लग जाए यानी दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।
शास्त्रों के अनुसार, अपने पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए एक साल में 96 अवसर मिलते हैं. इनमें साल के बारह महीनों की 12 अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है. साल की 14 मन्वादि तिथियां, 12 व्यतिपात योग, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग और 15 महालय शामिल हैं. इनमें पितृ पक्ष का श्राद्ध कर्म उत्तम माना गया है।
श्राद्ध के नियम
- पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है।
- इस दौरान पिंड दान करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है।
- इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान नहीं करना चाहिए. हालांकि देवताओं की नित्य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए।
- श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने और संभोग की मनाही है।
- इस दौरान रंगीन फूलों का इस्तेमाल भी वर्जित है।
- पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है।
- इस दौरान कई लोग नए वस्त्र, नया भवन, गहने या अन्य कीमती सामान नहीं खरीदते हैं।
श्राद्ध कैसे करें?
- श्राद्ध की तिथि का चयन ऊपर दी गई जानकारी के मुताबिक करें.
- श्राद्ध करने के लिए आप किसी विद्वान पुरोहित को बुला सकते हैं.
- श्राद्ध के दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार अच्छा खाना बनाएं.
- खासतौर से आप जिस व्यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं.
- खाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल न करें.
- मान्यता है कि श्राद्ध के दिन स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं.
- इस दौरान पंचबलि भी दी जाती है:
- शास्त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि.
- यहां पर बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्या से नहीं बल्कि श्राद्ध के दौरान इन सभी को खाना खिलाया जाता है.
- तर्पण और पिंड दान करने के बाद पुरोहित या ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें.
- ब्राह्मण को सीधा या सीदा भी दिया जाता है. सीधा में चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल शामिल हैं.
- ब्राह्मण भोज के बाद पितरों को धन्यवाद दें और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगे.
- इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें.
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
आचार्य मुकेश👤