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Acharya Mukesh

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥

Acharya Mukesh...Astro Nakshatra 27

“कुछ अलग करना है, तो भीड़ से हट कर चलो, भीड़ साहस तो देती है, पर पहचान छिन लेती है।”

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Friday, 28 September 2018

नवरात्रि 2018 : मां दुर्गा नौका पर सवार होकर आएंगी और हाथी पर सवार हो कैलाश विदाई लेंगी




                               नवरात्रि 2018 : मां दुर्गा नौका पर सवार होकर आएंगी
                            बुधवार को कलश स्थापना होने पर माता का वाहन नौका










१० अक्टूबर से १९ अक्टूबर २०१८ तक शारदीय नवरात्रि का व्रत त्यौहार इस बार अभीष्ट-फलदाई होगा क्योंकि आचार्य मुकेश के अनुसार इस वर्ष माता का आगमन बुधवार को नौका से हो रहा है तथा माता की हाथी सवार हो कैलाश विदाई लेंगी और दे जाएँगी साधक को अखंड सौभाग्य का वरदान ! अतः इस बार तन,मन और धन से देवी की आराधना करें, इतनी दूर से माता देने ही तो आती हैं, बस उन्हें तलाश है आपकी श्रद्धा की ! जय माता दी !


                               

Monday, 24 September 2018

पितृ-पक्ष 2018 pitra paksh 2018


🦅पितृ पक्ष कैलेंडर 2018 एवं जानें क्यों करें श्राद्ध👍
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क्या आपके जीवन में बार-बार परेशानी आ रही है?
कहीं आपके सपने में बार बार पितृ दर्शन तो नहीं दे रहे?

पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों का तर्पण कराते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो लोग पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं कराते, उन्हें पितृदोष लगता है. इससे मुक्ति पाने का सबसे आसान उपाय पितरों का श्राद्ध कराना है. श्राद्ध करने के बाद ही पितृदोष से मुक्ति मिलती है!

साल 2018 में पितृ-पक्ष 24 सितंबर 2018 सोमवार से शुरू हो रहा है. यह 8 अक्टूबर 2018 सोमवार तक रहेगा.
यहां देखें तिथियों की पूरी सूची और जानें, किस दिन कौन सा श्राद्ध है-

पितृ पक्ष कैलेंडर 2018

24 सितंबर 2018 सोमवार पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 मंगलवार प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 बुधवार द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 गुरुवार तृतीय श्राद्ध
28 सितंबर 2018 शुक्रवार चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 शनिवार पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 रविवार षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सोमवार सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 मंगलवार अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 बुधवार नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 गुरुवार दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 शुक्रवार एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 शनिवार द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 रविवार त्रयोदशी श्राद्ध,चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सोमवार सर्वपितृ अमावस्या,
                                      महालय अमावस्या !

क्या है श्राद्ध:

श्रद्धापूर्वक जो किया जाता है, उसे श्राद्ध कहते हैं। श्रद्धा शब्द में ‘श्रत्' अर्थात् सत्य और ‘धा' यानी धारण करना शामिल है। श्राद्ध का सरलतम अर्थ सत्य को धारण करना है, और जीवन का सबसे बड़ा सत्य ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे' है। तैतरीय उपनिषद् के अनुसार मिट्टी से निर्मित इस शरीर के विविध तत्वों का मृत्यु उपरांत ब्रह्मांड में विलय हो जाता है, पर मोह के धागे नहीं छूटते हैं। मरणोपरान्त भी आत्मा में मोह, माया का अतिरेक होता है और यह प्रेम ही उन्हें पितृ पक्ष में धरती पर वंशजों के पास खींचता है।

1.ऐसी मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष के 15 दिनों में (प्रतिपदा से लेकर अमावस्या) तक यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
पितर का अर्थ पितृ या श्रेष्ठजन होता है और बृहदारण्यक उपनिषद् के अनुसार ‘पुत्र' वह है, जो न किए गए कार्यों से अपने पिता की रक्षा करता है। ‘पुत्' का अर्थ पूरा करना है और ‘त्र' का अर्थ रक्षा करना है। इसीलिएपुत्रया पुत्री, जिसे वृहद अर्थों में समझें तो प्रत्येक मनुष्य पर तीन ऋण होते हैं- पितृ ऋण, दैव ऋण और गुरु ऋण। मनुष्य लोक में पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। हम सभी को श्राद्ध पक्ष एक अवसर देता है कि हम अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित कर सकें।
3.श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का पिंडदान किया जाता है। ‘पिंड' एक प्रतीक है, जीवन की शुरुआत का। ‘पिंड' का अर्थ शरीर है, जिसमें समग्र ब्रह्मांड की छवि आलोकित है और उस सत्य की अभिव्यक्ति छान्दोग्य उपनिषद् में वर्णित ‘तत्-त्वम्-असि' शब्दों के द्वारा होती है। इसका अर्थ है कि ‘तुम' में वह ब्रह्म आलोकित है, जैसे नमक जल में विलीन हो जाता है, पर उसका अस्तित्व नष्ट नहीं होता है, वैसे ही ब्रह्म शरीर में व्याप्त है, वह दिखाई नहीं देता है। उसकी अभिव्यक्ति प्राण में है और जीवों की प्रियता ‘प्राण' द्वारा प्रकट होती है। इसलिए जो मन को अति प्रिय होता है, उसके हेतु ‘प्राण-प्रिय' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
4.श्राद्ध पक्ष में जल और अन्न से तर्पण करना चाहिए। वस्तुत: पितर सूक्ष्म शरीर हैं अर्थात् ब्रह्म की ज्योति हैं, पर अभी मुक्त नहीं हुए हैंं। उनका प्राण ‘प्रिय' में यानी कि वंशजों में, उत्तराधिकारियों में उलझा हुआ है।
5.श्राद्ध पक्ष में जल का अर्घ्य दिया जाता है। जल से ही विश्व जन्म लेता है, उसके द्वारा सिंचित होता है और फिर उसमें लीन हो जाता है। तर्पण में जल में अन्न मिलाकर अर्पित करने का प्रावधान है, क्योंकि यह शरीर अन्न से अनुप्राणित होता है। भक्ति भाव से पितरों को जब जल और अन्न द्वारा श्राद्ध पक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है।

विशेष*
जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्य़ु होने पर भी अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है।
जिसने आत्महत्या की हो, या जिनकी हत्या हुई हो ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि के किया जाता है।
पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो नवमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
वहीं एकादशी में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिन लोगों ने संन्यास लिया हो।

इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना भी जरूरी है।🔴
1. श्राद्ध करने के लिए ब्रह्मवैवर्त पुराण जैसे शास्त्रों में बताया गया है कि दिवंगत पितरों के परिवार में या तो ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र और अगर पुत्र न हो तो नाती, भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं।
2. पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाये कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
3. कई ऐसे पितर भी होते है जिनके पुत्र संतान नहीं होती है या फिर जो संतान हीन होते हैं। ऐसे पितरों के प्रति आदर पूर्वक अगर उनके भाई भतीजे, भांजे या अन्य चाचा ताउ के परिवार के पुरूष सदस्य पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते है तो पितर की आत्मा को मोक्ष मिलता है।
4. श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए। जिसमें उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।
5. श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरो पर पड़ने लग जाए यानी दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।

शास्त्रों के अनुसार, अपने पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए एक साल में 96 अवसर मिलते हैं. इनमें साल के बारह महीनों की 12 अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है. साल की 14 मन्वादि तिथियां, 12 व्यतिपात योग, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग और 15 महालय शामिल हैं. इनमें पितृ पक्ष का श्राद्ध कर्म उत्तम माना गया है।

श्राद्ध के नियम

- पितृपक्ष में हर दिन तर्पण करना चाहिए. पानी में दूध, जौ, चावल और गंगाजल डालकर तर्पण किया जाता है।

- इस दौरान पिंड दान करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलकर पिंड बनाए जाते हैं. पिंड को शरीर का प्रतीक माना जाता है।

- इस दौरान कोई भी शुभ कार्य, विशेष पूजा-पाठ और अनुष्‍ठान नहीं करना चाहिए. हालांकि देवताओं की नित्‍य पूजा को बंद नहीं करना चाहिए।

- श्राद्ध के दौरान पान खाने, तेल लगाने और संभोग की मनाही है।

- इस दौरान रंगीन फूलों का इस्‍तेमाल भी वर्जित है।

- पितृ पक्ष में चना, मसूर, बैंगन, हींग, शलजम, मांस, लहसुन, प्‍याज और काला नमक भी नहीं खाया जाता है।

- इस दौरान कई लोग नए वस्‍त्र, नया भवन, गहने या अन्‍य कीमती सामान नहीं खरीदते हैं।

श्राद्ध कैसे करें?

- श्राद्ध की तिथि का चयन ऊपर दी गई जानकारी के मुताबिक करें.
- श्राद्ध करने के लिए आप किसी विद्वान पुरोहित को बुला सकते हैं.
- श्राद्ध के दिन अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार अच्‍छा खाना बनाएं.
- खासतौर से आप जिस व्‍यक्ति का श्राद्ध कर रहे हैं उसकी पसंद के मुताबिक खाना बनाएं.
- खाने में लहसुन-प्‍याज का इस्‍तेमाल न करें.
- मान्‍यता है कि श्राद्ध के दिन स्‍मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्‍त हो जाते हैं. 

- इस दौरान पंचबलि भी दी जाती है:


- शास्‍त्रों में पांच तरह की बलि बताई गई हैं: गौ (गाय) बलि, श्वान (कुत्ता) बलि, काक (कौवा) बलि, देवादि बलि, पिपीलिका (चींटी) बलि. 

- यहां पर बलि का मतलब किसी पशु या जीव की हत्‍या से नहीं बल्‍कि श्राद्ध के दौरान इन सभी को खाना खिलाया जाता है. 

- तर्पण और पिंड दान करने के बाद पुरोहित या ब्राह्मण को भोजन कराएं और दक्षिणा दें. 

- ब्राह्मण को सीधा या सीदा भी दिया जाता है. सीधा में चावल, दाल, चीनी, नमक, मसाले, कच्‍ची सब्जियां, तेल और मौसमी फल शामिल हैं. 

- ब्राह्मण भोज के बाद पितरों को धन्‍यवाद दें और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगे. 

- इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें.

(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)

आचार्य मुकेश👤

Thursday, 13 September 2018

चंद्र दोष कलंक चतुर्थी 2018 | गणेश चतुर्थी की रात चांद देखना होता है अशुभ, देख भी लिया तो करें ये उपाय| Ganesha Chaturthi | Chandra Dosha Kalanka Chaturthi



13 सितंबर को गणेश चतुर्थी है। इसी तिथि पर सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता भगवान गणेश का जन्म हुआ था। गणेश चतुर्थी को कलंकी चतुर्थी भी कहते है। रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान गणेश की इस दिन घर पर स्थापना की जाती है। पुराणों और शास्त्रों में कहा गया है कि गणेश चतुर्थी पर भूल कर भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है जो व्यक्ति इस दिन चांद के दर्शन कर लेता है उस पर झूठे आरोप लग सकते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी चांद के दर्शन कर लिया था जिसके कारण उनको चोरी के झूठे आरोप का सामना करना पड़ा था। इस आरोप से मुक्ति के लिए भगवान कृष्ण ने भगवान गणेश की पूजा कर आरोप से मुक्ति मिली थी।

                                           क्‍या है मान्‍यता

ऐसी मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद बेहद खूबसूरत नजर आता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश भगवान ने चांद को यह श्राप दिया कि जो भी इस दिन चांद का दीदार करेगा उसे कलंक लगेगा। 

गणेश पुराण के अनुसार एक बार भगवान श्री कृष्ण ने भी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन आसमान में नज़र आ रहे खूबसूरत चांद को देख लिया और फिर कुछ ही दिनों बाद उन पर हत्या का झूठा आरोप लगा। श्रीकृष्ण को बाद में नारद मुनि ने ये बताया कि ये कलंक उन पर इसलिए लगा है क्योंकि उन्होंने चतुर्थी के दिन चाँद देख लिया।

पौराणिक कथा के अनुसार भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी पर भगवान गणेश ने चंद्रमा को श्राप दिया था जिसके कारण से इस दिन जो व्यक्ति चांद के दर्शन कर लेता है उसके ऊपर चोरी का झूठा आरोप लग जाता है।

ये है पूरी कथा

एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का मुख देखकर उनका मजाक उड़ाया था। जिससे क्रोधित होकर गणपति ने चंद्रमा को श्राप दिया कि आज से जो भी तुम्हें देखेगा उसे झूठे अपमान का भागीदार बनना पडे़गा। इसके बाद जब चंद्रमा को अपनी गलती का अहसास हुआ तो तुरंत उन्होंने गणेश जी से माफी मांगी। तब गणपति ने उन्हें श्राप मुक्त करते हुए कहते हैं कि ऐसा जरूर होगा लेकिन साल में एक बार ही इसका प्रभाव होगा। तभी से भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन से कलंक लगने की मान्यता चली आ रही है।


                                      यदि भूल से हो जाए दर्शन तो करें ये उपाय:-


जाने-अनजाने यदि कोई व्यक्ति गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख ले तो उसे इससे लगने वाले मिथ्या दोष से बचने के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए 

        सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
        सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥

Acharya Mukesh

Sunday, 2 September 2018

💐जन्माष्टमी पूजा विधि # सरल रूप से मंत्रों के साथ👍


💐जन्माष्टमी पूजा विधि # सरल रूप से मंत्रों के साथ👍

कहते हैं देवता मंत्रों के अधीन होते हैं। पूजा में मंत्र का होना बहुत जरूरी है। जन्माष्टमी में लोग मनोकामना पूर्ति हेतु उपवास रखते हैं और पूजा करते हैं, परंतु कुछ लोग मंत्रों के अभाव में यूं ही पूजा करते हैं जो पूर्ण फल नही दे पाती।
जन्माष्टमी पर कृष्ण जी की पूजा में यदि षोडशोपचार यानि पूजा के सोलह चरणों का समावेश हो तो उसे षोडशोपचार जन्माष्टमी पूजा विधि के कहा जाता है। आचार्य मुकेश के अनुसार  पंचोपचार पूजन द्वारा जन्माष्टमी का पूजन करें। आप सभी भक्त जनों के लिए सामान्य पूजा विधि प्रस्तुत है!
इसके लिए सर्वप्रथम बाल कृष्ण की मूर्ति को एक पात्र में रख कर दुग्ध, दही, शहद, पंचमेवा आैर सुंगध युक्त शुद्घ जल आैर गंगा जल से स्नान करायें, फिर उन्हें पालने में स्थापित करें, आैर  वस्त्र धारण करायें। इसके बाद भगवान की विधि विधान से आरती करें। अंत में उन्हें नैवैद्य अर्पित करें। नैवैद्य में फल आैर मिष्ठान के साथ अपनी परंपरा के अनुसार धनिया, आटे, चावल या पंच मेवा की पंजीरी भोग लगाने के लिए शामिल करें। भगवान को इत्र अवश्य लगायें। पंचामृत स्नान के बाद षोडषोपचार पूजन किया जाता है ये पूजन विशेष रूप से मंदिरों में श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मानाते हुए आयोजित होता है। इसके लिए भगवान को वस्त्र, अलंकार इत्यादि से सुसज्जित करके फूल,धूप, दीप समर्पित करते हैं, फिर अन्न रहित भोग एवं प्रसूति के समय का मिष्ठान्न जैसे, सेठौरा, ओछवानी नारियल, छुहारा, पंजीरी, नारियल के मिष्ठान, मेवे आदि भगवान को अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद रात्रि जागरण करते हुए सामूहिक रूप से भगवान की स्तुति होती है। इन सभी 16 चरणों के सोलह मंत्र होते हैं, सोलहवां मंत्र भगवान की आरती को कहा जाता है। 

          षोडषोपचार जन्‍माष्‍टमी पूजा एवम् मंत्र

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के दिन षोडशोपचार के 16 चरणों के मंत्र इस प्रकार है:

✅पहला चरण है ध्‍यान-
सबसे पहले भगवान श्री कृष्‍ण की प्रतिमा के आगे उनका ध्‍यान करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
ॐ तमअद्भुतं बालकम् अम्‍बुजेक्षणम्, चतुर्भुज शंख गदाद्युधायुदम्। श्री वत्‍स लक्ष्‍मम् गल शोभि कौस्‍तुभं, पीताम्‍बरम् सान्‍द्र पयोद सौभंग। महार्ह वैढूर्य किरीटकुंडल त्विशा परिष्‍वक्‍त सहस्रकुंडलम्। उद्धम कांचनगदा कङ्गणादिभिर् विरोचमानं वसुदेव ऐक्षत। ध्यायेत् चतुर्भुजं कृष्णं,शंख चक्र गदाधरम्। पीताम्बरधरं देवं माला कौस्तुभभूषितम्।

ॐ श्री कृष्णाय नम:।  ध्‍यानात् ध्‍यानम् समर्पयामि।

✅दूसरा चरण है आवाह्न-
इसके बाद हाथ जोड़कर इस मंत्र से श्रीकृष्‍ण का आवाह्न करें:
ॐ सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात्। स-भूमिं विश्‍वतो वृत्‍वा अत्‍यतिष्ठद्यशाङ्गुलम्। आगच्छ श्री कृष्ण देवः स्थाने-चात्र सिथरो भव।
ॐ श्री क्लीं कृष्णाय नम:। बंधु-बांधव सहित श्री बालकृष्ण आवाहयामि।

✅तीसरा चरण है आसन-
अब श्रीकृष्‍ण को आसन देते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
ॐ विचित्र रत्न-खचितं दिव्या-स्तरण-सन्युक्तम्। स्वर्ण-सिन्हासन चारू गृहिश्व भगवन् कृष्ण पूजितः।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आसनम् समर्पयामि।

✅चौथा चरण है पाद्य-
आसन देने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण के पांव धोने के लिए उन्‍हें पंचपात्र से जल समर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें,
एतावानस्य महिमा अतो ज्यायागंश्र्च पुरुष:। पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि। अच्युतानन्द गोविंद प्रणतार्ति विनाशन। पाहि मां पुण्डरीकाक्ष प्रसीद पुरुषोत्तम्।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। पादोयो पाद्यम् समर्पयामि।

✅पांचवा चरण है अर्घ्‍य-
श्रीकृष्‍ण को इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए अर्घ्‍य दें:
ॐ पालनकर्ता नमस्ते-स्तु गृहाण करूणाकरः। अर्घ्य च फ़लं संयुक्तं गन्धमाल्या-क्षतैयुतम्।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। अर्घ्यम् समर्पयामि।

✅छठवां चरण है आचमन-
इसके बाद श्रीकृष्‍ण को आचमन के लिए जल देते हुए इस मंत्र का उच्‍चारण करें:
तस्माद्विराडजायत विराजो अधि पुरुष:। स जातो अत्यरिच्यत पश्र्चाद्भूमिनथो पुर:। नम: सत्याय शुद्धाय नित्याय ज्ञान रूपिणे। गृहाणाचमनं कृष्ण सर्व लोकैक नायक।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। आचमनीयं समर्पयामि।

✅सातवां चरण है स्‍नान- भगवान श्रीकृष्‍ण की मूर्ति को कटोरे या किसी अन्‍य पात्र में रखकर स्‍नान कराएं। सबसे पहले पानी उसके बाद दूध, दही, मक्‍खन, घी और शहद आैर अंत में एक बार फिर साफ पानी से एक बार और स्‍नान कराएं। साथ में मंत्र का उच्‍चारण करें:
गंगा गोदावरी रेवा पयोष्णी यमुना तथा। सरस्वत्यादि तिर्थानि स्नानार्थं प्रतिगृहृताम्।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। स्नानं समर्पयामि।

✅आठवां चरण वस्‍त्र-
भगवान की मूर्ति को किसी साफ और सूखे कपड़े से पोंछकर नए वस्‍त्र पहनाएं, फिर उन्‍हें पालने में रखें और इस मंत्र का जाप करें:
शति-वातोष्ण-सन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहा-लंकारणं वस्त्रमतः शान्ति प्रयच्छ में।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। वस्त्रयुग्मं समर्पयामि।

✅नवां चरण यज्ञोपवीत-
इस मंत्र का उच्‍चारण करते हुए भगवान श्रीकृष्‍ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें:
नव-भिस्तन्तु-भिर्यक्तं त्रिगुणं देवता मयम्। उपवीतं मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। यज्ञोपवीतम् समर्पयामि।

✅दसवां चरण चंदन-
श्रीकृष्‍ण को चंदन अर्पित करते हुए यह मंत्र पढ़ें:
ॐ श्रीखण्ड-चन्दनं दिव्यं गंधाढ़्यं सुमनोहरम्। विलेपन श्री कृष्ण चन्दनं प्रतिगृहयन्ताम्।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। चंदनम् समर्पयामि।

✅ग्यारहवां चरण गंध-
इस मंत्र का जाप करते हुए श्रीकृष्‍ण को धूप, अगरबत्ती दिखाएं, वनस्पति रसोद भूतो गन्धाढ़्यो गन्ध उत्तमः। आघ्रेयः सर्व देवानां धूपोढ़्यं प्रतिगृहयन्ताम्।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। गंधम् समर्पयामि।

✅बाहरवां चरण दीपक-
तत्पश्चात श्रीकृष्‍ण की मूर्ति के समझ घी का दीपक प्रज्जवलित करें आैर ये मंत्र पढ़ें:
साज्यं त्रिवर्ति सम्युकतं वह्निना योजितुम् मया। गृहाण मंगल दीपं,त्रैलोक्य तिमिरापहम्। भक्तया दीपं प्रयश्र्चामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां नरकात् घोरात् दीपं ज्योतिर्नमोस्तुते। ब्राह्मणोस्य मुखमासीत् बाहू राजन्य: कृत:। उरू तदस्य यद्वैश्य: पद्भ्यां शूद्रो अजायत।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दीपं समर्पयामि।

✅तेहरवां चरण नैवैद्य- ब श्रीकृष्‍ण को भोग लगायें आैर ये मंत्र पढ़ें:
शर्करा-खण्ड-खाद्यानि दधि-क्षीर-घृतानि च, आहारो भक्ष्य- भोज्यं च नैवैद्यं प्रति- गृहृताम।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। नैवद्यं समर्पयामि।

✅चौदहवां चरण ताम्‍बूल- अब पान के पत्ते को पलट कर उस पर लौंग-इलायची, सुपारी और कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनाकर श्रीकृष्‍ण को समर्पित करें, साथ ही इस मंत्र का जाप करें:
ॐ पूंगीफ़लं महादिव्यं नागवल्ली दलैर्युतम्। एला-चूर्णादि संयुक्तं ताम्बुलं प्रतिगृहृताम।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। ताम्बुलं समर्पयामि।

✅पंद्रहवां चरण दक्षिणा-
अब अपनी सामर्थ्‍य के अनुसार दक्षिणा या भेंट अर्पित करते हुए इस मंत्र का जाप करें:
हिरण्य गर्भ गर्भस्थ हेमबीज विभावसो:। अनन्त पुण्य फलदा अथ: शान्तिं प्रयच्छ मे।
ॐ श्री कृष्णाय नम:। दक्षिणां समर्पयामि।

✅सोहलवां चरण आरती-
षोडषोपचार का आखिरी चरण है आरती इसके लिए घी के दीपक से बाल कृष्‍ण की आरती उतारें। साथ ही अपनी प्रिय कृष्‍ण आरती गायें।  
और अंत में छमा प्रार्थना करें और आपकी पूजा सम्पन्न हुई!

जय  बांके बिहारी लाल की!
आचार्य मुकेश!😊

Saturday, 1 September 2018

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत 2018 मुहूर्त एवं पूजा-विधि BY आचार्य मुकेश krishna janmashtami 2018


             
             श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत
 5245th Birth Anniversary of Lord Krishna
                2nd,3rd September 2018
        Sunday/रविवार Monday/सोमवार


इस बार २०१८ में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत दो दिनों का है ! व्रत करने वाले लोगों में ये चर्चा का विषय है की वो व्रत किस दिन करें ! तो आइये आचार्य मुकेश आपको इस संशय से दूर कर दें !

                              श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मुहूर्त

2 सितंबर- अष्टमी रात्रि 8.47 से प्रारमभ होकर 3 सितंबर को 19.20 तक, उसके बाद नवमी।

रोहिणी नक्षत्र- दो सितंबर को 8.49 बजे से प्रारम्भ होकर 3 सितंबर को  रात्रि 8.06तक।

निशीथ काल- दो सितंबर को रात्रि 11.57 से 12.48 तक

जब भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में अर्ध रात्रि 12 बजे रोहिणी नक्षत्र हो और सूर्य सिंह राशि में तथा चंद्रमा वृष राशि में हो, तब श्री कृष्ण जयंती योग बनता है। द्वापर युग में घटित यह काल चक्र 2 सितंबर 2018, रविवार को भी घटित होगा। 2 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 49 मिनट के बाद अष्टमी तिथि लग रही है और इस तिथि में रोहिणी नक्षत्र व्याप्त होगा।

आचार्य मुकेश के अनुसार दो सितंबर को अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का रात्रिकालीन मिलन हो रहा है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रात्रि बारह बजे माना गया है। इसलिए, दो सितंबर को जन्माष्टमी करना श्रेष्ठ है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। स्मार्त/गृहस्थ के लिए दो सितंबर को ही व्रत व्रत करना शुभ-फलदायक होगा !

अर्थात व्रत २ को करें या ३ को पारण व्रतीगण को ३ सितम्बर को रात्रि 8.20 के उपरांत ही करना है अथवा व्रत सम्पूर्ण नहीं माना जायेगा !
जो भक्त ये सोचते हैं की उदयातिथि अनुसार ३ सितम्बर को व्रत करके ४ सितम्बर की सुबह व्रत खोलें तो यह भी संभव है क्योंकि मथुरा और वृन्दावन में ३ सितम्बर को ही उत्सव मनाया जा रहा है !

वैश्णव जन्माष्टमी के दिन ३ सितम्बर को व्रत रखनेवालों के लिए पारण समय ये रहा
                                        : - After 06:04 AM, Sep ०4

पर याद रहे की यह रात्रि व्रत है। .. 

श्रीकृष्ण का जन्म रात्रि के १२ बजे हुआ था,
अष्टमी तिथि थी
तथा रोहिणी नक्षत्र था !
 

अतः सिर्फ ३ सितम्बर को व्रत करने पर उदय तिथि का पालन होता है पर उपरोक्त बातों के अभाव में ही आपको व्रत करना होगा !
Ashtami Tithi Begins - 20:47 on Sep 02, 2018
Ashtami Tithi Ends - 19:20 on Sep 03, 2018
Rohini Nakshatra Begins - 20:49 on Sep 02, 2018
Rohini Nakshatra Ends - 20:06 on Sep 03, 2018

पारण-समय धर्मशास्त्र के अनुसार 

Parana Time - After 08:06 PM, Sep 03
On Parana Day Ashtami Tithi End Time - 07:20 PM
On Parana Day Rohini Nakshatra End Time - 08:06 PM

कहा जाता है कि जो श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करते हैं, उनके 3 जन्मों का पाप का नाश होता है और कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने वाले उपासक के लिए मोक्ष का मार्ग सुगम होता है। इस दिन भगवान का स्मरण और राधा-कृष्ण का नाम लेना भी अतिफलदायक होता है। 



दोनों ही बातों का तथा पौराणिक मान्यताओं एवं उदयातिथि के अनुसार आचार्य मुकेश आपको यह सलाह देते हैं की ऐसा कभी कभी होता है और कई बार पहले भी पंचांग भेद अथवा तिथि की संशय रही है पर इस बार २ सितम्बर २०१८ की सुबह श्रीकृष्ण के जन्म उत्सव व्रत का मन से संकल्प लें , रात्रि में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में धूम धाम से अभिषेक और उत्सव मनाएं परन्तु  पारण अगले दिन अष्टमी समाप्त होने के बाद रात्रि को ०८.२० के बाद ही करें ! इससे आपको पूर्ण फल की प्राप्ति होगी !



संशय मुक्त पूजा अर्चना करें ! आपके सफल शुभ पूजा अर्चना और आपकी सुख शांति और सफलता के लिए एस्ट्रो नक्षत्र २७  से आचार्य मुकेश आपको तथा आपके पुरे परिवार को शुभकामनाएं देते हैं !





आपको बताते हैं कि किस प्रकार जन्माष्टमी का पूजन करें...
              
     

व्रत वाले दिन, स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद, पूरे दिन उपवास रखकर रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि पर व्रत का पारण किया जाता है। व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र में श्री कृष्ण के जन्म के बाद किया जाता है। 

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा में पान का पत्ता अवश्य शामिल करें। पान के पत्ते पर कुमकुम से 'ऊं वासुदेवाय नमः' लिखें और भगवान की मूर्ति के समक्ष रखकर पूजा करें। भगवान श्रीकृष्ण के प्रसाद में तुलसी के पत्ते मिलाए जाते हैं। जन्माष्टमी की शाम तुलसी पूजन अवश्य करें। 


1- जन्माष्टमी पूजन का पहले संकल्प लें। थोड़ा कीर्तन करें। फिर ऊं कृं कृष्णाय नम:, ऊं कृष्णाय नम: या श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी.... का जाप करते रहें 


2- जन्माष्टमी पूजन के समय सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण या लड्डू गोपाल का जल से अभिषेक करें 


3- जल के बाद गंगाजल से अभिषेक करें। 


4- इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और बूरे से अभिषेक करें। इसके बाद फिर गंगाजल से स्नान कराएं। 


5- गंगाजल और दूध से स्नान के बाद पुन: पंचामृत से और फिर गंगाजल से स्नान कराएं ( याद रहे, दूध और गंगाजल से स्नान तीन बार होना है) 


6- स्नान के बाद भगवान श्रीकृष्ण या लड्डू गोपाल का श्रृंगार करें। 


7- श्रृंगार के बाद गोपाल जी को झूले पर प्रतिष्ठापित कराएं। भगवान की छठी तक झूले पर ही विराजमान रखें। 


8- ठाकुर जी का स्नान कराने के बाद भगवान को इत्र लगाएं। उमंग के साथ कीर्तन करें। विष्णु सहस्त्रनाम या गोविंद सहस्त्रनाम का पाठ करें 


9- ऊं कृं कृष्णाय नम: मंत्र की एक माला करें। 


10- ठाकुर जी को वस्त्राभूषण भेंट करें। उनको मिष्ठान आदि का भोग लगाएं। मिश्री और मक्खन अवश्य रखें 


11- इसके बाद ठाकुर जी की आरती करें। 


12- यथासंभव, ठाकुर जी का प्रसाद दो हिस्सों में करें। एक मंदिर के लिए और एक भोग के लिए। किसी गरीब को प्रसाद देना सार्थक है।


निःसंतान दंपतियों के लिए श्री कृष्ण जयंती का महत्व


इस वर्ष श्री कृष्ण जयंती योग बनना निःसंतान दंपतियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है। ऐसे तमाम लोग जिन्हें अभी तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई है। वे इस जन्माष्टमी पर पूरे विधि विधान से भगवान श्री कृष्ण का पूजन करें और व्रत रखें। साथ ही संतान गोपाल मंत्र का जाप करें और हो सके तो संतान गोपाल यंत्र की स्थापना भी करें।


“ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्णं त्वामहं शरणं गत:।।”


श्री कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व


शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी के व्रत एवं पूजन का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार थे। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से मनुष्य के समस्त दुःख दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में जन्माष्टमी के व्रत को व्रतराज कहा गया है। जो भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ इस व्रत का पालन करते हैं उन्हें महापुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि और पितृ दोष से मुक्ति के लिए जन्माष्टमी का व्रत एक वरदान है।

             
                                              :- एस्ट्रो नक्षत्र २७  से आचार्य मुकेश