💮दिन~ बुधवार ।
💮विक्रम सम्वत्~2075(विरोधाकृत)
💮शकसम्वत्~1940 (विलंबी)
💮द्रिक अयन- दक्षिणायण।
💮द्रिक ऋतु~शरद।
🌞सूर्योदय~06:36.
🌞सूर्यास्त~17:33.
🌗चन्द्रोदय~ 23:46.
🌘चन्द्रास्त~ 12:48.
🌟मास~कार्तिक।
⚫पक्ष~कृष्ण पक्ष ।
💮तिथि ~ सप्तमी 11:10.
🌘♋चंद्रराशि~ कर्क
✴️चंद्र नक्षत्र ~ पुष्य 26:35+.
🌟योग ~ साध्य 14:31.
🌞सूर्य राशि~ तुला♎
🌞सूर्य नक्षत्र~ स्वाति
🔺मंगल ~ मकर ♒
💮बुध ~ वृश्चिक♏
💮बृहस्पति~वृश्चिक ♏
💮शुक्र (वक्री)~ तुला♎
⚫शनि ~धनु♐
❕राहु ~ कर्क
‼केतु ~ मकर।
💮करण~ बव~11:10.बालव ~ 22:10+.
👹राहुकाल~ 12:04 - 13:27.
🏵🌊❄️अभिजीत मुहुर्त~❎
⚡गंडमूल ~
31-10-18# 26:34 से,
02-11-18# 23:59 तक।
🌀पंचक ~ ❎
🏵होमहुति~ गुरु 26:35.
🔥अग्निवास~ पृथ्वी
⚓दिशा शूल ~उत्तर
🚗यात्रा ~बुधवार
तिल या उससे निर्मित पदार्थ या राई डाले हुए पदार्थ का सेवन करें।
👉अहोई अष्टमी व्रत~ 31-10-18(बुधवार)👈🏼
👉विशेष रुप से उत्तर भारत में मनाया जाने वाला यह पर्व माताएं अपने पुत्र के जीवन में होने वाली किसी भी प्रकार की अनहोनी से बचाने के लिए अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं। 🏵यह व्रत कार्तिक माह में करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से अाठ दिन पहले किया जाता है, जो कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी को अाता है।
👉पुत्रों की भलाई के लिए माताएं अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से लेकर गोधूलि बेला (शाम) तक उपवास करती हैं। शाम के वक्त आकाश में तारों को देखने के बाद व्रत तोड़ने का विधान है। हालांकि कुछ महिलाएं चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद व्रत को तोड़ती हैं। चंद्र दर्शन में थोड़ी परेशानी होती है, क्योंकि अहोई अष्टमी की रात चन्द्रोदय देर से होता है।
👉नि:संतान महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना से भी अहोई अष्टमी का व्रत करती हैं।
👉अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है।
❄️अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवार पर अहोई माता के चित्र के साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों की तस्वीर भी बनाई जाती है। माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़ा अादि रखकर कहानी कही और सुनी जाती है। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं। इसमें उपयोग किया जाने वाला करना वही होना चाहिए, जिसे करवा चौथ में इस्तेमाल किया गया हो। दिवाली के दिन इस करवे का पानी पूरे घर में भी छिड़का जाता है। शाम में इन चित्रों की पूजा की जाती है।
🌠लोटे के पानी से शाम को चावल के साथ तारों को अर्घ्य दिया जाता है। अहोई पूजा में चांदी की अहोई बनाने का विधान है, जिसे स्याहु कहते हैं। स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।
👉अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त – शाम 5.32 से 6.51
👉तारों को देखने के लिये शाम का समय – 06.01
0 comments:
Post a Comment