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Friday, 26 October 2018

वक्रतुंड संकष्टी चतुर्थी | 27 OCTOBER 2018| ASTRO NAKSHATRA 27| ACHARYA MUKESH


कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को “पिंग” स्वरूप गणपति की पूजा होती है। घी और उड़द मिलाकर हवन किया जाता है। पूजन के बाद ब्राह्मण को भोजन करायें तथा स्वयं मौन रहकर एक हे बार भोजन ग्रहण करें। पूजन के बाद वृत्रासुर दैत्य की कथा सुने अथवा सुनाये।सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस दिन अपने पति के लम्बी उम्र के लिये व्रत रखती है। गणेश जी को करवा अर्पित करती हैं। यह व्रत स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य प्रदान करती है। इस व्रत से मनुष्य को सर्वसिद्धि प्राप्त होती है।

27 अक्टूबर 2018 को वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत 2018 को है। इसी दिन करवा चौथ का व्रत भी रखा जाता है। हिन्दु कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती है। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते है।

भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश सबसे अधिक ज्ञानी माना जाता हैं। उनको विघ्नहर्ता भी कहा जाता हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से व्रती को सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।

संकष्टी चतुर्थी का उपवास कठोर होता है जिसमें केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली श्रद्धालुओं का मुख्य आहार होते हैं। व्रती चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को खोलते हैं



#सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर पवित्र हो।
#व्रती को लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए।
#पूजा के लिए पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
#दीप प्रज्जवलित कर भगवान गणेश का ध्यान करें।
#गणेश चालीसा, आरती और स्तुति करें।
#ॐ गणेशाय नमः का जाप करें।
#संध्या के समय संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा सुनें या पढ़े।
#चंद्रोदय होने पर चन्द्रमा के दर्शन कर जल चढ़ाएं और व्रत खोलें।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा



एक दिन माता पार्वती और भगवान शिव नदी किनारे बैठे हुए थे। अचानक ही माता पार्वती का मन चोपड़ खेलने का हुआ। लेकिन उस समय वहां पार्वती और शिव के अलावा और कोई तीसरा नहीं था, ऐसे में कोई तीसरा व्यक्ति चाहिए था। जो हार-जीत का फैसला कर सके। इस वजह से दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान फूंक दी।


उसे शिव व पार्वती के बीच हार जीत का फैसला करने को कहा। चोपड़ के खेल में माता पार्वती विजयी हुईं। यह खेल लगातार चलता रहा जिसमें तीन से चार बार माता पार्वती जीतीं लेकिन एक बार बालक ने गलती से पार्वती को हारा हुआ और शिव को विजयी घोषित कर दिया।


इस पर माता पार्वती क्रोधित हुईं। उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बच्चे ने अपनी गलती की माफी भी माता पार्वती से मांगी और कहा कि मुझसे गलती हो गई मुझे माफ कर दो। लेकिन माता पार्वती उस समय गुस्से में थीं और बालक की एक ना सुनी।


माता पार्वती ने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता। लेकिन एक उपाय है जो तुम्हें इससे मुक्ति दिला सकता है। और कहा कि इस जगह पर संकष्टी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं। तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को करना।


बालक ने वैसा ही किया जैसा माता पार्वती ने कहा था। बालक की पूजा से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और बालक की मनोकामानाएं पूरी करते हैं। इस कथा से यह मालूम होता है कि भगवान गणेश की पूजा यदि पूरी श्रद्धा से की जाए तो सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

संकष्टी चतुर्थी व्रत चंद्रोदय का समय- शाम 08:30 मिनट

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