🌀विक्रम सम्वत्~2075(विरोधाकृत)
🌀शकसम्वत्~1940 (विलंबी)
🌀द्रिक अयन~दक्षिणायण
🌊द्रिक ऋतु~शरद।
☀️सूर्योदय~06:49
☀️सूर्यास्त~17:23.
🌚चन्द्रोदय~ 14:03.
🌙चन्द्रास्त~ 25:46+.
⛅मास~कार्तिक
🌀पक्ष~शुक्ल पक्ष
🙏तिथि ~ 🌿नवमी 11:54.
🌙चंद्रराशि~ कुम्भ♓
❇️चंद्र नक्षत्र ~ शतभिषा 14:27.
🏵योग ~व्याघात 19:01.
🏵सूर्य ~ वृश्चिक
🏵सूर्य नक्षत्र~ विशाखा
🏵मंगल ~ कुम्भ♐
🏵बुध(वक्री)~ वृश्चिक♏
🏵बृहस्पति(अस्त)~↘️वृश्चि.♏
🏵शुक्र ~ तुला♎
🏵शनि ~धनु♐
🏵राहु ~ कर्क♋
🏵केतु ~ मकर♒
🏵करण~कौलव ~11:54.,तैतिल~ 24:49+.
👹राहुकाल~09:28 - 10:47.
🏵अभिजीत मुहुर्त~11:45 - 12:27
🏵गंडमूल ~
19-11-18 # 05:57 से, 21-11-18 # 06:33 .
28-11-18 # 08:11 से, 30-11-18 # 05:23 .
🏵पंचक ~
15-11-18 # 22:17 से 20-11-18 # 18:34 तक
13-12-18 # 06:11 से 18-12-18 # 04:17 तक
🏵होमहुति~ शुक्र 14:27.
🔥अग्निवास~ आकाश 11:54.
💧दिशा शूल ~ पूर्व
🚖यात्रा ~
*शनिवार*
तिल या उससे बने पदार्थ, खिचड़ी या उड़द से तैयार पदार्थ खाकर यात्रा करने से अनुकूलता आती है।
🏵17 नवंबर- आंवला नवमी
🏵19 नवंबर- देवउठनी एकादशी
🏵22 नवंबर- वैकुंठ चतुर्दशी
🏵23 नवंबर- कार्तिक पूर्णिमा
🏵🏵🏵🏵🏵🏵🏵
*आंवला नवमी व्रत-कथा*
🏵आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की परंपरा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी को माना जाता है।
🏵इस संदर्भ में एक कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेल पत्र भगवान शिव को।
🏵इस संदर्भ में एक कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेल पत्र भगवान शिव को।
🏵आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए।
🏵लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया।
🏵जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।
🏵आंवला नवमी के दिन महिलाएं सुबह स्नानकर अपने आस-पास स्थित किसी आंवले के पेड़ के पास जाकर उस जगह पर साफ-सफाई करें।
🏵इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा में खड़े होकर जल और दूध अर्पित करें।
🏵इसके बाद पूजा आदि करने के बाद पेड़ के चारों तरफ सूत लपेटकर परिक्रमा करें।
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