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Friday, 16 November 2018

अक्षय - नवमी 2018 / आंवला - नवमी | 17 November 2018 | क्या है शुभ मुहूर्त और पूजा विधि ? Acharya Mukesh.


आंवला नवमी या कहें अक्षय नवमी. इस दिन की महिमा का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में भी किया गया है. कहा जाता है कि आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा से कई मनोकामनाएं पूरी होती हैं. अक्षय नवमी का संबंध श्रीहरि विष्णु और भगवान कृष्ण से भी है.

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अक्षत नवमी के दिन आंवले की पूजा करने से ब्रह्मा, विष्णु, शिव और मां लक्ष्मी प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं.कार्तिक का अमर फल आंवला है. आंवले का फल पौराणिक दृष्टिकोण से रत्नों के सामान मूल्यवान माना जाता है. कहते है कि शंकराचार्य ने इसी फल को स्वर्ण में परिवर्तित कर दिया था. इस फल का प्रयोग कार्तिक मास से आरम्भ करना अनुकूल माना जाता है. इस फल के सटीक प्रयोग से आयु, सौन्दर्य और अच्छे स्वस्थ्य की प्राप्ति होती है. 

पद्म पुराण के अनुसार के अनुसार इस दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। इस दिन विशेषकर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है, इसलिए इसे आंवला नवमी भी कहा जाता हैं। माना जाता है कि आंवले के वृक्ष पर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु का वास होता है। 



कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है. अक्षय नवमी इस बार 17 नवंबर, शनिवार को पड़ रही है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु वास आंवले में होता है. इस दिन लोग आंवले के पेड़ की पूजा करते हैं और उसके नीचे बैठकर खाना खाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और शरीर निरोग बनता है. 

माना जाता है कि अक्षय नवमी पर मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु एवं शिव जी की पूजा आंवले के रूप में की थी और इसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण किया था. यह भी कहा जाता है कि आंवले के पेड़ के नीचे श्री हरि विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है. यह भी मान्यता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी. इस वजह से अक्षय नवमी पर लाखों भक्त मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा भी करते हैं. 


नवमी तिथि पर महिलाएं शुभ मुहूर्त में आंवले के पेड़ की 108 परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेट कर परिवार के सुख, समृद्धि के लिए आशीर्वाद लेती हैं. ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं. अक्षय नवमी की पूजा की संतान प्राप्ति एवं सुख, समृद्धि एवं कई जन्मों तक पुण्य क्षय न होने की कामना से किया जाता है.


शुभ मुहूर्त

अक्षय नवमी पूजा -
 17 नवंबर सुबह 6.45 बजे से दोपहर 11.54 बजे तक 
यानि लगभग 5 घंटे 8 तक रहेगा.


अक्षय नवमी पूजा विधि (Akshya Navami Vrat Vidhi in Hindi)

अक्षय नवमी को प्रातः स्नान कर पूरे विधि-विधान के साथ संभवतः आंवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए। खुले में जाकर वृक्ष के नीचे बैठकर इन मंत्रों का जाप करते हुए दूध चढ़ाना चाहिए:

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

आंवले के पेड़ के 108 चक्कर लगाते हुए लाल सूत्र बांधना चाहिए। धूप, दीप,फूल,गंध आदि से वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। पूजा के अंत में वृक्ष के नीचे कुछ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। शक्ति अनुसार ब्राह्मणों को धन, वस्त्र, स्वर्ण, भूमि, फल, अनाज आदि दान करना चाहिए।



अक्षय नवमी व्रत फल (Benefits of Akshya Navami Vrat in Hindi)

मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन उपासना करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते है तथा उसे पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा इस व्रत के पुण्य से सुख-शान्ति, सद्भाव और वंश वृद्धि का फल प्राप्त होता है। 


आंवला नवमी व्रत कथा

काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।

इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।






Acharya Mukesh. Astro Nakshatra 27.



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