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Wednesday, 27 February 2019

विजया एकादशी शनिवार, मार्च 2, 2019 / विजया एकादशी पूजा विधि: विजय दिलाती है "विजया एकादशी"


इस वर्ष 2 मार्च 2019 शनिवार को विजया एकादशी का व्रत एवम् पूजन किया जायेगा। मान्‍यता है क‍ि विजया एकादशी के व्रत को करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि तथा अशुभता का नाश होता है।


नाम में ही छुपा है प्रभाव

विजया एकादशी अपने नाम के अनुसार विजय प्रादन करने वाली होती पद्म पुराण और स्कन्द पुराण के अनुसार भयंकर शत्रुओं से जब आप घिरे हों और पराजय सामने खड़ी हो उस विकट स्थिति में विजया नामक एकादशी आपको विजय दिलाने की क्षमता रखती है। जिसका अर्थ है क‍ि विजया एकादशी का व्रत करने से हर प्रकार की विषम परिस्थिति में भी विजय प्राप्त होती है। विजया एकादशी व्रत इस वर्ष 2 मार्च 2019, शनिवार को किया जाएगा। शास्‍त्रानुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकाद्शी को विजया एकादशी के रूप में मनाया जाता है। मान्‍यता है कि श्री राम ने भी इस व्रत को धारण करके रावण को पराजित कर अपने विजय मनोरथ को पूर्ण किया था। एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है। विजया एकादशी व्रत करने से साधक को व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है। सभी एकादशी अपने नाम के अनुरुप फल देती है।


                         विजया एकादशी एकादशी तिथि व मुहूर्त

विजया एकादशी शनिवार, मार्च 2, 2019 को
3 मार्च को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय - 06:48 से 09:06
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय - 13:45
एकादशी तिथि प्रारम्भ - मार्च 01, 2019 को 08:39 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - मार्च 02, 2019 को 11:04 बजे

विजया एकादशी पौराणिक महत्व

विजया एकादशी का पौराणिक महत्व श्री राम से जुडा़ हुआ है जिसके अनुसार विजया एकादशी के दिन भगवान श्री राम लंका पर चढाई करने के लिये समुद्र तट पर पहुंचे। समुद्र तट पर पहुंच कर भगवान श्री राम ने देखा की सामने विशाल समुद्र है और उनकी पत्नी देवी सीता रावण कैद में है। इस पर भगवान श्री राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की। परन्तु समुद्र ने जब श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तो भगवान श्री राम ने ऋषि गणों से इसका उपाय पूछा। ऋषियों में भगवान राम को बताया की प्रत्येक शुभ कार्य को शुरु करने से पहले व्रत और अनुष्ठान कार्य किये जाते है। व्रत और अनुष्ठान कार्य करने से कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है, और सभी कार्य सफल होते है। अत: आप भी फाल्गुण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक कीजिए। भगवान श्री राम ने ऋषियों के कहे अनुसार व्रत किया, जिसके प्रभाव से समुद्र ने उनको मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में मददगार बना। तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान किया जाता है जो आज भी सर्वमान्य है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है।

विजया एकादशी पूजा विधि

विजया एकादशी व्रत के विषय में मान्यता है कि इसको करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान और गौदान से अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है। एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है। व्रत पूजन में धूप, दीप, नैवेध, नारियल का प्रयोग किया जाता है। विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है। सात धान्यों में गेंहूं, उड्द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है। इसके ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए। व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए। एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है। व्रत का समापन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घडा ब्राह्माण को दिया जाता है। यह व्रत करने से दु:ख दूर हो कर जीवन की कठिन परिस्थितियों में विजय मिलती है। इस व्रत के एक दिन पहले वेदी बनाकर उस पर सप्तधान रखें फिर अपने सामर्थ्‍य के अनुसार सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी का कलश बनाकर उस पर स्थापित करें। एकदशी के दिन उस कलश में पंचपल्लव (पांच तरह के पेड़ के पत्ते) रखकर भगवान श्री विष्णु की मूर्ति स्थापित करें और विधि सहित धूप, दीप, चंदन, फूल, फल एवं तुलसी से प्रभु का पूजन करें। व्रती पूरे दिन भगवान की कथा का पाठ एवं श्रवण करें और रात्रि में कलश के सामने बैठकर जागरण करे। द्वादशी के दिन कलश को योग्य ब्राह्मण अथवा पंडित को दान कर दें।


आचार्य मुकेश के अनुभवों के आधार पर कुछ सुझाव:


एकादशी के व्रत की तैयारी दशमी तिथि को ही आरंभ हो जाती है। उपवास का आरंभ दशमी की रात्रि से ही आरंभ हो जाता है। इसमें दशमी तिथि को सायंकाल भोजन करने के पश्चात अच्छे से दातुन कुल्ला करना चाहिये ताकि अन्न का अंश मुंह में शेष न रहे। इसके बाद रात्रि को बिल्कुल भी भोजन न करें। अधिक बोलकर अपनी ऊर्जा को भी व्यर्थ न करें। रात्रि में ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन प्रात:काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। नित्य क्रियाओं से निपटने के बाद स्नानादि कर स्वच्छ हो लें। भगवान का पूजन करें, व्रत कथा सुनें। दिन भर व्रती को बुरे कर्म करने वाले पापी, दुष्ट व्यक्तियों की संगत से बचना चाहिये। रात्रि में भजन-कीर्तन करें। जाने-अंजाने हुई गलतियों के लिये भगवान श्री हरि से क्षमा मांगे। द्वादशी के दिन प्रात:काल ब्राह्मण या किसी गरीब को भोजन करवाकर उचित दान दक्षिणा देकर फिर अपने व्रत का पारण करना चाहिये। इस विधि से किया गया उपवास बहुत ही पुण्य फलदायी होता है।


एकादशी करते हों तो ध्यान रखें कुछ बातों का :


🚫1. एकादशी के दिन सुबह दातुन या ब्रश न करें!नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें, वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें। * यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें।

🚫2. एकादशी के दिन झाड़ू पोछा इत्यादि बिलकुल न करें! क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।

🚫3. एकादशी के दिन तुलसीदल न तोड़ें, भगवन को भोग लगाने हेतु एक दिन पहले ही तोड़ कर रख लें।

🚫4. अगर घर में दक्षिणावर्ती शंख हो तो उसमे जल लेकर भगवान शालिग्राम को स्नान करवाएं, या पंचामृत से स्नान करवाएं!इस से सारे पाप उसी समय नष्ट हो जाते हैं तथा माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रशन्न होते हैं।

🚫5.एकादशी के दिन भगवान् श्री हरि को पीली जनेऊ अर्पित करें। पान के पत्ते पर एक सुपारी, लौंग, इलायची, द्रव्य, कपूर, किसमिस तुलसीदल के साथ इत्यादि अर्पित करें, साथ ही ऋतुफल भी अर्पित करें! एक तुलसीदल भगवान् पर भी चढ़ाएं पर रात्रि में उसे हटाना न भूले।

🚫6.एकादशी के दिन सुबह संकल्प लें, मन में मनोकामना करते हुए श्री हरि से व्रत में रहने का संकल्प करें!

🚫7. एकादशी के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है, कोशिश करें की इस एकादशी जरूर जागरण करें, इस से व्रत फल 100 गुणा बढ़ जाता है!

🚫8. एकादशी के दिन चावल भूल से भी न छुएं, न ही घर में चावल बनें, इस दिन चावल खाने से बेहद नकरात्मक फल प्राप्त होते हैं, भाग्य खंडित होता है! एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए। * केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें। * प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।

🚫9. एकादशी के दिन कम से कम बोलें, पापी लोगों से बात न करें, जिनके मन में लालच, पाप या कोई भी अनैतिक तत्व दिखे कम से कम इस दिन उन सभी से दूर रहने का प्रयत्न करें! परनिंदा से बचें!

🚫10.श्री हरि की विशेष कृपा हेतु ॐ नमो भगवते वासुदेवाय की 11 माला सुबह और 11 माला शाम में करें, साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ जरूर करें! एकादशी व्रत कथा कहे या सुनें।

🚫11. शाम में केले के पेड़ के नीचे एवं तुलसी में दीपक जलाना न भूले, इसे दीप-दान कहते हैं!

🚫12. माता लक्षमी के बिना विष्णु अधूरे हैं इसलिए माता की भी आरती अवश्य करें, सुबह और शाम शंखनाद एवं घंटियों की ध्वनि में ॐ जय जगदीश हरे की आरती करना न भूले!

🚫13. एकादशी के दिन केले के पेड़ की 7 परिक्रमा करने से धन में बढ़ोतरी होती है!

🚫14. व्रत पंचांग के समयानुसार ही खोलें अन्यथा लाभ की जगह नुक्सान भी हो सकता है, व्रत एवं पूजा के नियमों में करने से ज्यादा कुछ बातें जो हमे नहीं करनी चाहिए वो ही ज्यादा महत्व रखती है. अतः सावधानी से की गई पूजा सर्वश्रेष्ठ फल प्रदान करती है.

🚫15 .आज के दिन किसका त्याग करें- 

🍁मधुर स्वर के लिए गुड़ का। 
🍁दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का। 🍁शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का। 
🍁सौभाग्य के लिए मीठे तेल का। 
🍁स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का। 

प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके न करें। पलंग पर सोना, भार्या का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि का भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए।


🚫16. दोनों ही दिन शाम में संध्या आरती कर दीपदान करें। अखंड लक्षमी प्राप्त होगी। पैसा घर में रुकेगा।

🚫17. शंख ध्वनि से भी माता लक्ष्मी के साथ भगवान् हरि भी अति प्रसन्न होते हैं। अतः पूजा के समय जरूर शंख का उपयोग करें । पूजा के पहले शुद्धिकरण मंत्र तथा आचमन करना न भूलें क्योंकि इसके बिना पूजा का फल प्राप्त नहीं हो पाता।

🚫18. तुलसी की विधिवत पूजा करके उसकी 7 
परिक्रमा करें।





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