ज्योतिषशास्त्र को रहस्यमय विद्या की श्रेणी में रखा गया है। वैसे तो यह विज्ञान की ही एक शाखा है लेकिन इसके चमत्कारों से प्रभावित लोग इस महान और प्राचीन विद्या को एक रहस्य ही मानते हैं। दरअसल ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों का आंकलन कर, उनकी सही जांच-पड़ताल और विश्लेषण करने के बाद जातक के जीवन से संबंधित एकदम सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है जो उसके वर्तमान और भविष्य पर सही बैठती है।
यूं तो भारतीय ज्योतिष विद्या के अनुसार हर व्यक्ति की कुंडली अलग होती है, कुंडली में बैठे ग्रह और उनकी स्थिति भी भिन्न-भिन्न होती है इसलिए जाहिर तौर पर उसका हर व्यक्ति का जीवन भी अलग होता है। एक ही दिन, एक ही जगह और बस कुछ मिनटों के फेर में जन्में लोग दो अलग तरीके की ज़िन्दगी जीते हैं हैं, यह सब उनके ग्रहों का ही कमाल है।
1. "मंगल और शुक्र की युति":-
मंगल और शुक्र की युति अगर 6 डिग्री तक की है और इसका संबंध द्वादश भाव से हो तो यह "अवैध-यौन" संबंधों की गारंटी होती है।
2. "लग्नेश शनि":-
जिस जातक का लग्नेश शनि होता है, उसका जीवन हमेशा संघर्षों के साये में रहता है। उसे अपनी आजीविका के लिए ताउम्र चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
3."कुंडली में चंद्रमा":-
कुंडली में चंद्रमा के साथ जब शनि-राहु या शनि-मंगल की युति होती है तो तनाव और चिंताएं हमेशा बनी रहती हैं।
4.कुंडली में राहु के साथ यदि चन्द्रमा या सूर्य "ग्रहण-योग" निर्मित करे :-
कुंडली में यदि राहु के साथ जब चंद्र -राहु,केतु-चंद्र या सूर्य -राहु की युति होती है तो ग्रहण योग का निर्माण होता है ! ऐसे में जीवन में किसी न किसी तरह की काली छाया जरूर पड़ती है ! तनाव और चिंताएं हमेशा बनी रहती हैं। ये योग कुंडली के जिस भाव में होती है उस भाव से सम्बंधित समस्या देती है! ये योग जातक को बेहद सँघर्षमय जीवन जीने पर मजबूर करती है !
अगर आपकी कुंडली में भी ये अशुभ योग है तो घबराएं नहीं, आप हमें मेल या कॉल करें और समाधान जानें ! आचार्य मुकेश के द्वारा इस योग पर 50 से भी ज्यादा कुंडलियों पर शोध की जा चुकी है !
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5."बृहस्पति और शुक्र" की युति:-
बृहस्पति और शुक्र ग्रहों की युति अप्राकृतिक और अस्वीकृत यौन संबंधों में रुचि को दर्शाती है।
6. कुंडली में विष-योग :-
किसी भी जातक की कुंडली में विष-योग का निर्माण शनि और चन्द्रमा के कारण बनता है। शनि और चन्द्र की जब युति (दो कारकों का जुड़ा होना) होती है तब विष-योग का निर्माण होता है। कुंडली में विष-योग उत्पन्न होने के कारण लग्न में अगर चन्द्रमा है और चन्द्रमा पर शनि की 3, 7 अथवा 10वें घर से दृष्टि होने पर भी इस योग का निर्माण होता है।
कर्क राशि में शनि पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राशि में श्रवण नक्षत्र का रहे अथवा चन्द्र और शनि विपरीत स्थिति में हों और दोनों अपने-अपने स्थान से एक-दूसरे को देख रहे हो तो तब भी विष-योग की स्थिति बन जाती है। यदि कुंडली में 8वें स्थान पर राहु मौजूद हो और शनि (मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक) लग्न में हो तब भी विष-योग की स्थिति बन जाती है।
यह योग मृत्यु, भय, दुख, अपमान, रोग, दरिद्रता, दासता, बदनामी, विपत्ति, आलस और कर्ज जैसे अशुभ योग उत्पन्न करता है तथा इस योग से जातक (व्यक्ति) नकारात्मक सोच से घिरने लगता है और उसके बने बनाए कार्य भी काम बिगड़ने लगते हैं।
7. मंगल -राहु युति निर्मित अमंगल अंगारक-योग
जब कुंडली में राहु अथवा केतु में से किसी एक के साथ अथवा दृष्टि से मंगल ग्रह का संबंध बन जाए तो उस कुंडली में अंगारक-योग का निर्माण होता है।
कुंडली में अंगारक-योग के अशुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब इस योग का निर्माण करने वाले मंगल, राहु या केतु दोनों ही अशुभ स्थान में हों। इसके अलावा यदि कुंडली में मंगल तथा राहु-केतु में से कोई भी शुभ स्थान में है तो जातक के जीवन पर अधिक नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
अंगारक योग के कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में जातक के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य संबंधियों से अनबन रहती है। अंगारक योग होने से धन की कमी रहती है। इसके प्रभाव में जातक की दुर्घटना की संभावना होती है। वह रोगों से ग्रस्त रहता है एवं उसके शत्रु उन पर काले जादू का प्रयोग करते हैं। व्यापार और वैवाहिक जीवन पर भी अंगारक योग का बुरा प्रभाव पड़ता है।
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8. केमद्रुम-योग अकेला चन्द्रमा (दरिद्र योग )
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार केमद्रुम योग, चंद्रमा द्वारा निर्मित एक बेहद अनिष्ट योग है। चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश स्थान में किसी भी ग्रह के न होने पर केमद्रुम योग बनता है। इसके अलावा यदि चंद्र किसी ग्रह के साथ युति में न हो या चंद्रमा पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न पड़ रही हो तो भी केमद्रुम योग का निर्माण होता है। ध्यान रहे इस योग के निर्माण में छाया ग्रह कहे जाने वाले राहु-केतु की गणना नहीं की जाती है।लोगो के बीच में इस योग को लेकर बहुत डर है क्योंकि ये सीधा-सीधा आपके निर्धनता को इंगित करनेवाला योग है !
केमद्रुम योग के बनने पर संघर्ष और अभाव से ग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग को दुर्भाग्य का सूचक कहा गया है। लेकिन यह तथ्य पूरी तरह सत्य नहीं है। केमद्रुम योग में जातक को अपने कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ मान-सम्मान भी प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि कुछ विशेष योगों के बनने पर केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है।
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9. गुरु-चांडाल योग (बृहस्पति -राहु युति)
ज्योतिष में कई ऐसे योग होते हैं जिनका मनुष्य पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन्हीं कुयोगों में से एक है गुरु-चांडाल योग। यहां हमें सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि गुरु चांडाल योग क्या होता है। राहु और केतु दोनों छाया ग्रह हैं और अशुभ भी। यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हों उस भाव सबंधी अनिष्ठ फल दर्शाते हैं। राहु और गुरु जब साथ होते हैं या फिर एक-दूसरे को किन्हीं भी भावों में बैठ कर देखते हों, तो गुरु चाण्डाल योग का निर्माण होता है। यह योग किसी भी इंसान के लिये अच्छा नहीं होता है। उस व्यक्ति को जीवन भर परेशानियों का सामना करना होता है।
जिस जातक के जन्मांक में यह योग होता है उसकी कथनी और करनी में अंतर होता है तथा वह निराशावादी और आत्मघाती स्वभाव वाला होता है। जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति गुरुजनों का भी अपमान करता है खुद को श्रेष्ठ साबित करने के लिए गुरु का अपमान भी करने से पीछे नहीं हटता। ऐसा जातक धर्म और शास्त्रों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए करता है। ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, गुरु चांडाल योग धारण करने वाले जातक और कोई न कोई शारीरिक मानसिक विकृति होती है।अत: उस व्यक्ति के साथ रहने वाला इंसान भी उससे परेशान रहता है।
वास्तव में गुरु ज्ञान का ग्रह है, बुद्धि का दाता है। जब यह नीच का हो जाता है तो ज्ञान में कमी लाता है। बुद्धि को क्षीण बना देता है। राहु छाया ग्रह है जो भ्रम, संदेह, शक, चालबाजी का कारक है। नीच का गुरु अपनी शुभता को खो देता है। उस पर राहु की युति इसे और भी निर्बल बनाती है। राहु मकर राशि में मित्र का ही माना जाता है (शनिवत राहु) अत: यह बुद्धि भ्रष्ट करता है। निरंतर भ्रम-संदेह की स्थिति बनाए रखता है तथा गलत निर्णयों की ओर अग्रसर करता है।
आपकी कुंडली में भी यदि ये युतियां दिखे तो नज़रंदाज़ न करें ! कुंडली विवेचना किसी विद्वान ज्योतिषी जिसे अनुभव हो उसी से करवाएं ! क्योंकि आज के समय में कुछ ज्योतिषी सिर्फ अधुरा किताबी ज्ञान लेकर उसे ही पैसे के लिए आगे बांट रहे हैं जो सर्वथा अनुचित है ! कुछ डरा कर पैसे कमा रहा हैं !
उपरोक्त योग फल एक सामान्य कारकतत्व के आधार पर वर्णित है। हर किसी की निजी कुंडली के ग्रह स्थितियों के आधार पर फलित में थोड़ी बहुत अधिकता या कमी संभव है। क्योंकि हर कुंडली मे भाव तथा ग्रहों की शक्ति एवं दृष्टि अलग अलग होते हैं। सामान्यतः उपरोक्त फल इन युतियों में प्रमाणित हो चुके हैं। कई परिस्थितियों में उपरोक्त अशुभ योग भंग भी होते हैं और जातक को शुभ फल प्राप्त होते देखे गए हैं। सभी के कुछ न कुछ शास्त्रिय नियम होतें हैं। अतः जीवन मे मनचाही सफलता के लिए सही वक्त पर सही ज्योतिषी से कुंडली जांच करवाएं।
उपरोक्त योग फल एक सामान्य कारकतत्व के आधार पर वर्णित है। हर किसी की निजी कुंडली के ग्रह स्थितियों के आधार पर फलित में थोड़ी बहुत अधिकता या कमी संभव है। क्योंकि हर कुंडली मे भाव तथा ग्रहों की शक्ति एवं दृष्टि अलग अलग होते हैं। सामान्यतः उपरोक्त फल इन युतियों में प्रमाणित हो चुके हैं। कई परिस्थितियों में उपरोक्त अशुभ योग भंग भी होते हैं और जातक को शुभ फल प्राप्त होते देखे गए हैं। सभी के कुछ न कुछ शास्त्रिय नियम होतें हैं। अतः जीवन मे मनचाही सफलता के लिए सही वक्त पर सही ज्योतिषी से कुंडली जांच करवाएं।
अगर ज्योतिष-शास्त्र में कई अशुभ योग हैं तो वहीँ अनेकों शुभ-योग भी हैं ! लेकिन आपको ध्यान देने की जरुरत सिर्फ अशुभ योगों के निदान में है , ठीक उसी तरह जैसे एक बीमार व्यक्ति डॉक्टर के पास सिर्फ दिखाने नहीं बल्कि उसकी दवाइयां यानि समाधान लेने जाता है ! अधूरे ज्योतिषी सिर्फ रोगों के नाम और उसके खतरे बताते हैं वहीँ एक तजुर्बेकार सफल ज्योतिषी ये कहता है की "घबराएं नहीं मैं हूँ आपकी मदद के लिए !" क्योंकि मेरा मानना ये है की जो इलाज न कर पाए वो डॉक्टर नहीं, और जो फलित और समाधान न बता पाए वो ज्योतिषी नहीं !
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