Contact:9999782755/ 7678689062

PAY NOW

Saturday, 31 August 2019

शास्त्रों के अनुसार सुबह उठते ही करने चाहिए ‘कर दर्शन’, जानिए क्यों?..कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमध्ये सरस्वति । करमूले तु गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ॥


ऐसा कहा जाता है कि सवेरे जगने के बाद अपने दोनों हथेलियों के दर्शन करना चाहिए. इससे दशा सुधरती है और सौभाग्य की प्राप्त‍ि होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि इसके पीछे कौन-सी मान्यता काम करती है?

दरअसल, हर इंसान चाहता है कि जब वह आंखें खोले, एक नए दिन की शुरुआत करे, तो उसके मन में आशा और उत्साह का संचार हो. हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथों में ब्रह्मा, लक्ष्मी और सरस्वती, तीनों का वास होता है. 'आचारप्रदीप' के एक श्लोक में कहा गया है:

कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती।
करमूले स्थ‍ितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम्।। 

(गीताप्रेस, गोरखपुर से प्रकाशि‍त ‘नित्‍यकर्म पूजाप्रकाश’ के अनुसार)

इस श्‍लोक का एक अन्‍य पाठ भी प्रचलित है, जो इस तरह है:

ऊं कराग्रे वसते लक्ष्‍मी: करमध्‍ये सरस्‍वती।
करमूले च गोविंद: प्रभाते कुरुदर्शनम्।।

इसका मतलब है, 'हथेली के सबसे आगे के भाग में लक्ष्मीजी, बीच के भाग में सरस्वतीजी और मूल भाग में ब्रह्माजी निवास करते हैं. इसलिए सुबह दोनों हथेलियों के दर्शन करना करना चाहिए.'

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि दोनों हाथों में कुछ 'तीर्थ' भी होते हैं. चारों उंगलियों के सबसे आगे के भाग में 'देवतीर्थ', तर्जनी के मूल भाग में 'पितृतीर्थ', कनिष्ठा के मूल भाग में 'प्रजापतितीर्थ' और अंगूठे के मूल भाग में 'ब्रह्मतीर्थ' माना जाता है. इसी तरह दाहिने हाथ के बीच में 'अग्न‍ितीर्थ' और बाएं हाथ के बीच में 'सोमतीर्थ' और उंगलियों के सभी पोरों और संधि‍यों में 'ऋषि‍तीर्थ' है. इनका दर्शन भी कल्याणकारी माना गया है.

जब व्यक्त‍ि पूरे विश्वास के साथ अपने हाथों को देखता है, तो उसे विश्वास हो जाता है कि उसके शुभ कर्मों में देवता भी सहायक होंगे. जब वह अपने हाथों पर भरोसा करके सकारात्मक कदम उठाएगा, तो भाग्य भी उसका साथ देगा. सुबह हाथों के दर्शन के पीछे यही मान्यता काम करती है.

हाथों का ही दर्शन क्यों –

हमारी संस्कृति हमें सदैव कर्म का संदेश देती है। जीवन के चार आधार- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को पुरुषार्थ कहा गया है। ईश्वर पुरुषार्थी मनुष्य की ही सहायता करते हैं। कर्म से हम अपने जीवन को स्वर्ग बना सकते हैं और नर्क में भी ढकेल सकते हैं। मनुष्य के हाथ शरीर के महत्वपूर्ण अंग हैं। हमारे दो हाथ पुरुषार्थ और सफलता के प्रतीक हैं।

इस परंपरा के संबंध में वेद कहते हैं-

कृतं मे दक्षिणेहस्ते जयो मे सष्य आहित:। – अथर्ववेद 7/50/८

अर्थात- मेरे दाहिने हाथ में पुरुषार्थ है और बाएं हाथ में सफलता। भावार्थ यही है कि हम यदि परिश्रम करते हैं तो सफलता अवश्य मिलती है। हमे अपने कर्म में पीछे नहीं हटना चाहिए,

अयं मे हस्तो भगवानयं मे भगवत्तर:। – ऋग्वेद 10/60/12

अर्थात- परिश्रम से हमारे हाथों में श्री और सौभाग्य होते हैं। अर्थ यह है कि हम परिश्रम करेंगे तो ही हमें धन मिलेगा। धन से हम सुख-समृद्धि का सौभाग्य पाएंगे। वेद हमें यह भी सचेत करते हैं कि हमारे हाथ से कोई बुरा काम न हो।

हस्तच्युतं जनयत प्रशस्तम्। – सामवेद -72


अर्थात- हमारे हाथों से सदा श्रेष्ठ का निर्माण हो। हम सदा अच्छे काम करें। किसी का बुरा न करें। किसी को दु:ख न पहुंचाएं।

शिक्षा-

प्रभाते कर दर्शनम् का यही संदेश है। हम सुबह उठते ही अपनी हथेलियों के दर्शन कर अच्छे कार्य करने का संकल्प लें, ताकि दिनभर हमारे मन में कोई बुरे विचार न आएं। अच्छे कार्यां से ही हमारी अलग पहचान बनती है।




0 comments:

Post a Comment