देवी भागवत के अनुसार वर्ष में चार बार नवरात्रि आते हैं और जिस प्रकार नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के दौरान साधक माँ काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, माँ धूमावती , माँ बगलामुखी, मातंगी और माता कमला देवी की पूजा करते हैं। जहां नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है उसी तरह गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की पूजा होती है। इस समय देवी भगवती के भक्त बेहद कड़े नियमों से देवी की आराधना करते हैं। विधिपूर्वक पूजा-अर्चना देवी से आर्शीवाद लेते हैं।
ज्योतिषाचार्य मुकेश के अनुसार इस वर्ष माघ गुप्त नवरात्रि में 5 वर्षों बाद सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जिसका लाभ माता के साधको को मिलने वाला है.
गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्त्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं। इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं।
गुप्त नवरात्रि पूजा विधि GUPT NAVRATRI POOJA VIDHI
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार गुप्त नवरात्रि में की गयी पूजा को गोपनीय रखा जाता है नवरात्रि के पहले दिन स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प ले और नौ दिनों के लिए शुभ मुहूर्त में कलश की स्थापना करे यदि आप कलश स्थापना करते है तो सुबह शाम देवी मंत्र जाप, चालीसा या सप्तशती का पाठ जरूर करे. देवी मां को दोनों वेला के समय लौंग और बताशे का भोग लगाएं, गुप्त नवरात्रो के दौरान मां को लाल रंग के फूल चढ़ाना सर्वोत्तम मन जाता है नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक अपना खान पान और आहार सात्विक रखें. गुप्त नवरात्री में गुप्त रूप से की गयी देवी की आराधना जल्द ही फलीभूत होती है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करती है।
सिद्धिकुंजिकास्तोत्र का 18 बार पाठ करें।
माघ गुप्त नवरात्रि शुभ मुहूर्त 2020
*साल 2020 में गुप्त नवरात्रि का पर्व 25 जनवरी से शुरू होकर 3 फ़रवरी तक चलेगा.
*25 फ़रवरी के दिन कलश स्थापना की जायेगी|
साल 2020 में गुप्त नवरात्रि का पर्व 25 जनवरी शनिवार से शुरू होकर 3 फ़रवरी तक चलेगा.
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त होगा – 25 जनवरी प्रातःकाल 09:39 मिनट से प्रातःकाल 10:38 मिनट तक|
मुहूर्त की कुल अवधि होगी – 59 मिनट की होगी|
घटस्थापना का अभिजित मुहूर्त होगा – दोपहर 12:03 मिनट से 12:46 मिनट तक |
मुहूर्त की कुल अवधि – 43 मिनट की होगी|
प्रतिपदा तिथि शुरू होगी – 25 जनवरी सुबह 03:11 मिनट पर |
प्रतिपदा तिथि समाप्त होगी – 26 जनवरी सुबह 04:31 मिनट पर |
माघ गुप्त नवरात्रि कथा (Magha Gupt Navratri Story/ Katha)
माघ गुप्त नवरात्रि कथा के अनुसार एक समय ऋषि श्रृंगी अपने भक्तों को दर्शन दे रहे थे और अचानक ही भीड़ से एक स्त्री निकलकर बाहर आई और उसने ऋषि श्रृंगी से कहा कि मेरे पति सदैव दुर्व्यसनों से घिरे रहते हैं। जिसकी वजह से मैं कोई भी पूजा पाठ नहीं कर पाती धर्म और भक्ति से जुड़े कार्यों का संपादन भी नहीं कर पाती। यहां तक कि ऋषियों को भी उनके हिस्से का अन्न भी समर्पित नहीं कर पाती। मेरे पति मंसाहारी और जुआरी हैं।
लेकिन मैं मां दुर्गा की सेवा करना चाहती हूं। उनकी भक्ति साधना से अपने और अपने परिवार के जीवन को सफल बनाना चाहती हूं।ऋषि श्रृंगी महिला के भक्ति भाव से बहुत प्रभावित हुए और उसे इसका उपाय बताते हुए कहा कि चैत्र और शारदीय नवरात्रि को सब आमजन जानते हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं। जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रकट नवरात्रि में नौ देवियों की उपासना होती है और गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।
इस नवरात्रि में यदि कोई मां दुर्गा की उपासना करता है तो मां उसके जीवन को सफल बना देती हैं। ऋषि श्रृंगी ने आगे कहा कि लोभी, कामी, व्यसनी, मांसाहारी अथवा पूजा पाठ न कर सकने वाला भी यदि गुप्त नवरात्रि में मां की पूजा करता है तो उसे जीवन में कुछ और करने की आवश्यकता नहीं रहती। उस स्त्री ने ऋषि श्रृंगी के वचनों पर पूर्ण श्रद्ध करके गुप्त नवरात्रि की पूजा की। जिसके बाद मां उस स्त्री पर प्रसन्न हुई और उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा। उसके जीवन में सुख शांति आने लगी और पति जो गलत रास्ते पर था वह सभी मार्ग पर आ गया।
दशमहाविद्या साधना गुप्त नवरात्रों में मुख्य रुप से की जाती है. मंत्र साधना एवं सिद्धि हेतु दश महाविद्या की उपासना का बहुत महत्व बताया गया है. माता की उपासना विधि में मंत्र जाप का बहुत महत्व होता है. किसी भी साधक के लिए आवश्यक है की वह उपासना में शुद्धता शुचिता का ध्यान रखे. संपूर्ण एकाग्रता के साथ देवी का ध्यान करते हुए मंत्र जाप द्वारा देवी की साधना करे.
दशमहाविद्या मंत्र साधना में कई मंत्रों का उल्लेख मिलता है. साधक अपने अनुकूल मंत्र को ग्रहण करके उसके जाप द्वारा सिद्धि प्राप्ती के मार्ग पर चल सकता है. किसी भी मंत्र का अपना महत्व और शक्ति होती है.
महाविद्या काली | Kali
माँ काली तंत्र साधना की मुख्य देवी हैं, इनका स्वरुप भयावह एवं शत्रु का संहार करने वाला होता है. मां काली दस महाविद्याओं मे से एक मानी जाती हैं. तंत्र विद्या हेतु काली के रूप की साधना की जाती है.
मंत्र
'ऊँ क्रीं कालिकायै नमः'
महाविद्या तारा | Tara
माँ तारा दशमहाविद्याओं में से एक हैं, इन्हें भी तंत्र साधना के लिए भी बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.मां तारा सर्वसिद्धिकारक हैं एवं उग्र तारा, नील सरस्वती और एकजटा इन्हीं के रूप हैं. यही राज-राजेश्वरी हैं. देवी माँ तारा कला-स्वरूपा और मुक्ति को प्रदान करने वाली हैं.
मंत्र
ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट
महाविद्या ललिता | Lalita
माँ ललिता गौर वर्ण की, कमल पर विराजमान हैं उनके तेज से दिशाएं प्रकाशित हैं. इनकी साधना द्वारा साधक को समृद्धि की प्राप्त होती है. माँ के मंत्र जाप साधक को माता का आशीर्वाद प्रदान करने में सहायक होते हैं.
मंत्र
'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
महाविद्या भुवनेश्वरी | Bhuvaneswari
देवी भुवनेश्वरी को सर्वोच्च सत्ता की प्रतीक कहा गया है. दिव्य प्रकाश से युक्त माता भुवनेश्वरी साधक को शुभता का वरदान देती हैं. माँ भुवनेश्वरी के मंत्र जाप द्वारा उपासक को सुख और ऎश्वर्य की प्राप्ती होती है.
मंत्र
“ऐं हृं श्रीं ऐं हृं”
महाविद्या त्रिपुर भैरवी | Tripura Bhairavi
माँ त्रिपुर भैरवी की साधना द्वारा साधक को सुख और सौभगय की प्राप्ती होती है. माता की पूजा में लाल रंग का उपयोग किया जाता है. मां के मंत्र जाप द्वारा इनकी सिद्धि और शक्ति की प्राप्ति संभव है.
मंत्र
ऊँ ऎं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:
महाविद्या छिन्नमस्तिका॒ | Chinnamasta
माँ छिन्नमस्तिका॒ को मां चिंतपूर्णी के नाम से भी जाना जाता है. शत्रुओं का नाश करने और साधक को भय मुक्ति करके सुख एवं शांति प्रदान करती हैं. माता भक्त की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है. सभी चिंताओं का हरण कर लेने के कारण ही इन्हें चिंतपूर्णी कहा जाता है.
मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा ॥
महाविद्या धूमावती | Dhumavati
मंत्र
ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा
महाविद्या बगलामुखी | Maa Baglamukhi
माँ बगलामुखी स्तंभव की अधिष्ठात्री देवी हैं. इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है. देवी बग्लामुखी की साधना शत्रु का स्तंभन करने, वाकसिद्धि, विवाद में विजय के लिए की जाती है.
मंत्र
ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा’
महाविद्या मातंगी | Matangi
माता मातंगी वाणी और संगीत की देवी मानी जाती हैं. सुखी जीवन एवं समृद्ध की प्राप्ती के लिए मातंगी माता की उपासना का विधान है. माँ मातंगी को उच्छिष्टचांडालिनी, महापिशाचिनी, राजमांतगी, सुमुखी, वैश्यमातंगी, कर्णमातंगी स्वरुप में भी दर्शाया गया है.
मंत्र
‘क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा:’
महाविद्या कमला | Kamla
माँ कमला कमल पर आसीन हुए स्वर्ण से सुशोभित हैं. सुख समृद्धि और अतुल सामर्थ्य की प्रतीक हैं. इनकी साधना से उपासक को सुख समृद्धि का भंडार मिलता है. धन की कभी कमी नहीं रहती है. चारों दिशाओं में उसका यशोगान होता है
मंत्र
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