मंगलदेव की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें वरदान दिया था कि जब मंगलवार के दिन चतुर्थी पड़ेगी उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाएगा। मान्यता है है कि अंगारकी चतुर्थी के व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी कार्यों में आ रहे विघ्न और बाधाओं का नाश होता है।
इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। कुंडली में अशुभ चन्द्रमा के फल को शुभता में बदलने के लिए अंगारकी चतुर्थी का व्रत सबसे आसान और प्रभावशाली उपाय है।
इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। कुंडली में अशुभ चन्द्रमा के फल को शुभता में बदलने के लिए अंगारकी चतुर्थी का व्रत सबसे आसान और प्रभावशाली उपाय है।
जो श्रद्धालु चतुर्थी का उपवास करते हैं भगवान गणेश उसे ज्ञान और धैर्य का आशीर्वाद देते हैं। ज्ञान और धैर्य दो ऐसे नैतिक गुण है जिसका महत्व सदियों से मनुष्य को ज्ञात है। जिस मनुष्य के पास यह गुण हैं वह जीवन में काफी उन्नति करता है और मनवान्छित फल प्राप्त करता है।
संकष्टी के दिन चन्द्रोदय = 20:29
चतुर्थी तिथि शुरू होती है = 13:47 on 25/Dec/2018
चतुर्थी तिथि समाप्त होती है= 10:46 on 26/Dec/2018
अंगारकी चतुर्थी का महत्व:-
भगवान गणेश का एक भक्त था अंगारकी । अंगारकी ऋषि भारद्वाज और मां पृथ्वी का बेटा था। उसने भगवान गणेश की तपस्या शुरू कर दी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश अंगारकी के समक्ष आए और उनसे उनकी इच्छा के बारे में पूछा। अंगारकी ने कहा कि हे प्रभु मैं आपके नाम के साथ जुड़ना चाहता हूं। मेरा नाम भी आपके नाम के साथ जुड़ जाए। इस पर गणपति ने उन्हें वरदान दिया कि जब भी मंगलवार को चतुर्थी पड़ेगी, उस चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी कहा जाएगा। अंगारकी को भगवान मंगल भी कहा जाता है।
इस विधि से करें अंगारक विनायकी चतुर्थी व्रत:-
- सुबह स्नान आदि करने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- संकल्प मंत्र के बाद श्रीगणेश की षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र (ऊँ गं गणपतयै नम:) बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं।
षोडशोपचार पूजा
1.आवाहन एवं प्रतिष्ठापन , 2.आसन समर्पण, 3.पाद्य समर्पण, 4.अर्घ्य समर्पण , 5.आचमन , 6.स्नान, 7.वस्त्र समर्पण व उत्तरीय समर्पण, 8.यज्ञोपवीत समर्पण.9.गन्ध .10. अक्षत, 11. पुष्प माला, शमी पत्र, दुर्वाङ्कुर, सिन्दूर, 12.धूप , 13.दीप समर्पण, 14. नैवेद्य एवं करोद्वर्तन, 15.ताम्बूल, नारिकेल एवं दक्षिणा समर्पण, 16.नीराजन एवं विसर्जन !
- बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रख दें तथा 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद के रूप में बांट दें।
- पूजा में श्रीगणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम को स्वयं भोजन ग्रहण करें।
- संभव हो तो उपवास करें। इस व्रत का आस्था और श्रद्धा से पालन करने पर भगवान श्रीगणेश की कृपा से मनोरथ पूरे होते हैं और जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त होती है।
- गणेश चतुर्थी व्रत पर भगवान गणपति की पूजा में चावल, फूल, सिंदूर के साथ ही शमी पत्र भी चढ़ाएं। इस दौरान यहां दिए गए मंत्र का जप किया जा सकता है-
मंत्र-
त्वत्प्रियाणि सुपुष्पाणि कोमलानि शुभानि वै।
शमी दलानि हेरम्ब गृहाण गणनायक।।
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
गणेश चतुर्थी पर निषिद्ध चन्द्र-दर्शनगणेश चतुर्थी के दिन चन्द्र-दर्शन वर्ज्य होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चन्द्र के दर्शन करने से मिथ्या दोष अथवा मिथ्या कलंक लगता है जिसकी वजह से दर्शनार्थी को चोरी का झूठा आरोप सहना पड़ता है।
पौराणिक गाथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की कीमती मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप में लिप्त भगवान कृष्ण की स्थिति देख के, नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था जिसकी वजह से उन्हें मिथ्या दोष का श्राप लगा है।
नारद ऋषि ने भगवान कृष्ण को आगे बतलाते हुए कहा कि भगवान गणेश ने चन्द्र देव को श्राप दिया था कि जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दौरान चन्द्र के दर्शन करेगा वह मिथ्या दोष से अभिशापित हो जायेगा और समाज में चोरी के झूठे आरोप से कलंकित हो जायेगा। नारद ऋषि के परामर्श पर भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्त हो गये।
मिथ्या दोष निवारण मन्त्रचतुर्थी तिथि के प्रारम्भ और अन्त समय के आधार पर चन्द्र-दर्शन लगातार दो दिनों के लिये वर्जित हो सकता है। धर्मसिन्धु के नियमों के अनुसार सम्पूर्ण चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र दर्शन निषेध होता है और इसी नियम के अनुसार, चतुर्थी तिथि के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त होने के बाद भी, चतुर्थी तिथि में उदय हुए चन्द्रमा के दर्शन चन्द्रास्त तक वर्ज्य होते हैं।
अगर भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जायें तो मिथ्या दोष से बचाव के लिये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये -
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
ACHARYA MUKESH
0 comments:
Post a Comment