धार्मिक ग्रन्थों में कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि के दौरान गोवर्धन पूजा उत्सव को मनाने का बताया गया है जो दीपावली के अगले दिन पड़ता है। इस दिन शास्त्रों के अनुसार गौ को माता लक्ष्मी का रूप मानकर पूजने से धन-धान्य की वृद्धि होती है तथा श्री कृष्ण की पूजा से लक्ष्मी उसी घर मे स्थिर रेहड़ी है। क्योंकि पालनहार भगवान जहां वहीं मिलेगी उनके चरणों मे बैठी माता लक्ष्मी। अतः दीपावली के इस पंच-दिवसीय उत्सव में आज गोवर्धन-पूजन अवश्य करनी चाहिए।
गौ न मिले तो मिट्टी या आटे से उनकी मूर्ति बना कर घर मे ही अपनी सामर्थ्य अनुसार चंदन, धूप, फूलों और नैवेध इत्यादि से पूजन करना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। गोबर उपलब्ध हो तो उस से गोवर्धन पर्वत बनाये, उपलब्ध न हो तो मिट्टी से बना सकते हैं।
आज श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए उनको 56 भोग लगाने की प्रथा है।
कई जगह इसे अन्नकूट पूजा भी कहते हैं। इसमे अन्नकूट यानी अन्न का समूह, कई तरह के अन्न भगवान को चढ़ाने के पश्चात प्रसाद रूप में इसे वितरित करने से भगवान श्रीकृष्ण तथा माता अन्नपूर्णा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
आज श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए उनको 56 भोग लगाने की प्रथा है।
कई जगह इसे अन्नकूट पूजा भी कहते हैं। इसमे अन्नकूट यानी अन्न का समूह, कई तरह के अन्न भगवान को चढ़ाने के पश्चात प्रसाद रूप में इसे वितरित करने से भगवान श्रीकृष्ण तथा माता अन्नपूर्णा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
गोवर्धन पूजा का पहला मुहूर्त-
सुबह 6:39 से 8:52 तक
दूसरा मुहूर्त-
दोपहर 3:28 से शाम 5:41 तक
भगवान कृष्ण ने क्यों उठाया था पर्वत?
पुरानी कथाओं के मुताबिक, इस दिन वृंदावन के लोग अच्छी फसल के लिए भगवान इंद्र की धूमधाम से पूजा किया करते थे। इंद्र सभी देवताओं में सबसे उच्च समझे जाते रहे हैं, साथ ही उन्हें स्वर्ग का राजा कहा जाता है। लेकिन इंद्र को अपनी शक्तियों और पद पर घमंड हो गया था, जिसे चकनाचूर करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने एक लीला रची।
कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को समझाया कि गोवर्धन पर्वत की उपजाऊ धरती के कारण ही वहां पर घास उगती है, जिसे गाय, बैल और पशु चरते हैं. इससे ही लोगों को दूध मिलता है, साथ ही वो खेत को जोतने में मदद करते हैं।कृष्ण ने वृंदावन वासियों को समझाया कि वो इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। यह सुनकर इंद्र बहुत ज्यादा नाराज हो गए। उन्होंने वृंदावन पर मूसलाधार बारिश की. इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली यानी छोटी उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. सभी वृंदावन वासी उस पर्वत के नीचे आ गए और खुद को भारी बारिश से बचा लिया. इंद्र 7 दिनों तक पानी बरसाते रहे, लेकिन आखिर में उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ. भगवान इंद्र खुद धरती पर उतरे और श्रीकृष्ण से माफी मांगी। मान्यता है कि तभी से इस त्योहार को मनाया जाने लगा।
कृष्ण ने वृंदावन के लोगों को समझाया कि गोवर्धन पर्वत की उपजाऊ धरती के कारण ही वहां पर घास उगती है, जिसे गाय, बैल और पशु चरते हैं. इससे ही लोगों को दूध मिलता है, साथ ही वो खेत को जोतने में मदद करते हैं।कृष्ण ने वृंदावन वासियों को समझाया कि वो इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। यह सुनकर इंद्र बहुत ज्यादा नाराज हो गए। उन्होंने वृंदावन पर मूसलाधार बारिश की. इंद्र के प्रकोप से बचने के लिए कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली यानी छोटी उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठा लिया. सभी वृंदावन वासी उस पर्वत के नीचे आ गए और खुद को भारी बारिश से बचा लिया. इंद्र 7 दिनों तक पानी बरसाते रहे, लेकिन आखिर में उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ. भगवान इंद्र खुद धरती पर उतरे और श्रीकृष्ण से माफी मांगी। मान्यता है कि तभी से इस त्योहार को मनाया जाने लगा।
कैसे करते हैं गोवर्धन पूजा?
मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं। इसलिए लोग खाद्य पदार्थ का प्रयोग कर घर पर ही गोवर्धन पर्वत, गाय, बैल, पेड़ की आकृति बनाते हैं और उन्हें भगवान कृष्ण का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं। इस दिन गाय, बैल, भैंस जैसे पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चंदन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल, दही और तेल का दीपक जलाकर पूजा करते हैं और परिक्रमा करते हैं।
अचार्य मुकेश
Astro Nakshatra 27
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