वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है।
वट सावित्री व्रत की तिथि और शुभ मुहूर्त
अमावस्या तिथि प्रारंभ: 02 जून 2019 को शाम 04 बजकर 39 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त: 03 जून 2019 को दोपहर 03 बजकर 31 मिनट तक
वट सावित्री व्रत किस दिन करना चाहिए इसमें किंचित विवाद है ‘स्कंद’ और ‘भविष्योत्तर’ पुराण’ के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा पर करने का विधान है। ‘निर्णयामृत’ इत्यादि ग्रंथों के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के अमावस्या पर करने का विधान है। उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को ही किया जाता है।
वट / बरगद वृक्ष का महत्त्व
इस संसार में अनेक प्रकार के वृक्ष है उनमे से बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार – ‘वट मूले तोपवासा’ ऐसा कहा गया है। वट वृक्ष तो दीर्घायु और अमरत्व का प्रतीक है। पुराण के अनुसार बरगद में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का निवास होता है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोवांक्षित फल की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता तथा दीर्घायु के लिए लोक में प्रसिद्ध है। ऐसा लगता है कि सुहागन महिलाएं वटवृक्ष की पूजा यही समझकर करती है कि मेरे पति भी वट की तरह विशाल और दीर्घायु बने रहे।
कैसे करें वट सावित्री व्रत पूजा
वट सावित्री व्रत पूजन विधि में क्षेत्र के अनुसार कुछ अंतर पाया जाता है। प्रायः सभी भक्त अपने-अपने परम्परा के अनुसार वट सावित्री व्रत पूजा करते हैं। सामान्य पूजा के अनुसार इस दिन महिलाएँ सुबह स्नान कर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करती हैं। इस दिन निराहार रहते हुए सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष में कच्चा सूत लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। वट पूजा के समय फल, मिठाई, पूरी, पुआ भींगा हुआ चना और पंखा चढ़ाती हैं । उसके बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। पुनः सावित्री की तरह वट के पत्ते को सिर के पीछे लगाकर घर पहुंचती हैं। इसके बाद पति को पंखा झलती है जल पिलाकर व्रत तोड़ती हैं।
विशेष रूप में इस पूजन में स्त्रियाँ चौबीस बरगद फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियाँ अपने आँचल में रखकर बारह पूरी व बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं। वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं। कच्चे सूत को हाथ में लेकर वे वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं। हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं। और सूत तने पर लपेटती जाती हैं।
परिक्रमा के पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं। उसके बाद बारह कच्चे धागा वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को अपने गले में डालती हैं। पुनः छः बार माला को वृक्ष से बदलती हैं, बाद में एक माला चढ़ी रहने देती हैं और एक स्वयं पहन लेती हैं। जब पूजा समाप्त हो जाती है तब स्त्रियाँ ग्यारह चने व वृक्ष की बौड़ी (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती हैं।
और इस तरह व्रत तोड़ती हैं।
वट सावित्री पूजन सामग्री
सत्यवान-सावित्री की मूर्ति, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, 24 पूरियां, 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) बांस का पंखा, लाल धागा, कपड़ा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र और रोली.
वट सावित्री व्रत विधि
- महिलाएं सुबह उठकर स्नान कर नए वस्त्र पहनें और सोलह श्रृंगार करें.
- अब निर्जला व्रत का संकल्प लें और घर के मंदिर में पूजन करें.
- अब 24 बरगद फल (आटे या गुड़ के) और 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष पूजन के लिए जाएं.
- अब 12 पूरियां और 12 बरगद फल वट वृक्ष पर चढ़ा दें.
- इसके बाद वट वृक्ष पर एक लोट जल चढ़ाएं.
- फिर वट वक्ष को हल्दी, रोली और अक्षत लगाएं.
- अब फल और मिठाई अर्पित करें.
- इसके बाद धूप-दीप से पूजन करें.
- अब वट वृक्ष में कच्चे सूत को लपटते हुए 12 बार परिक्रमा करें.
- हर परिक्रमा पर एक भीगा हुआ चना चढ़ाते जाएं.
- परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनें.
- अब 12 कच्चे धागे वाली एक माला वृक्ष पर चढ़ाएं और दूसरी खुद पहन लें.
- अब 6 बार माला को वृक्ष से बदलें और अंत में एक माला वृक्ष को चढ़ाएं और एक अपने गले में पहन लें.
- पूजा खत्म होने के बाद घर आकर पति को बांस का पंख झलें और उन्हें पानी पिलाएं.
- अब 11 चने और वट वृक्ष की लाल रंग की कली को पानी से निगलकर अपना व्रत तोड़ें.
इसके पीछे यह मिथक है कि सत्यवान जब तक मरणावस्था में थे तब तक सावित्री को अपनी कोई सुध नहीं थी लेकिन जैसे ही यमराज ने सत्यवान को जीवित कर दिए तब सावित्री ने अपने पति सत्यवान को जल पिलाकर स्वयं वटवृक्ष की बौंडी खाकर जल ग्रहण की थी।
वट सावित्री व्रत कथा
कथा के अनुसार सावित्री ने अपने पति की प्राण रक्षा के लिए निराहार व्रत किया और विष्णु की आराधना करने लगी। अमावस्या के दिन सत्यवान का प्राण लेने यमराज आए, लेकिन सावित्री की भक्तिसे प्रसन्न होकर सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे दिया। जब यमराज पति का प्राण लेकर जाने लगे, तो वह पीछे लग गई। आखिरकार यमराज ने प्राण लौटाना पड़ा |
सावित्री सत्यवान कथा |
महाभारत के वनपर्व में सावित्री और सत्यवान की कथा का वर्णन मिलता है। वन में युधिष्ठिर मार्कण्डेय मुनि से पूछते है कि क्या कोई अन्य नारी भी द्रोपदी की जैसे पतिव्रता हुई है जो पैदा तो राजकुल में हुई है पर पतिव्रत धर्म निभाने के लिए जंगल-जंगल भटक रही है। तब मार्कण्डेय मुनि युधिष्ठर से कहते है की पहले भी सावित्री नाम की एक कन्या हुई थी जो इससे भी कठिन पतिव्रत धर्म का पालन कर चुकी है तब युधिष्ठिर मुनि से आग्रह करते है की कृप्या वह कथा मुझे सुनाये —
मुनि कथा सुनाते हुए कहते है —
मद्र देश में अश्वपति नाम का एक बड़ा ही धार्मिक राजा हुआ करता था। जिसकी पुत्री का नाम सावित्री था। सावित्री जब विवाह योग्य हो गई तब महाराज उसके विवाह के लिए बहुत चिंतित थे। महाराज अपनी पुत्री के लिए योग्य वर ढूंढने के लिए बहुत प्रयास किये परन्तु अपनी पुत्री के लिए योग्य वर नहीं ढूंढ सके। तब अन्ततः उन्होंने सावित्री से कहा बेटी अब आप विवाह के योग्य हो गयी है इसलिए स्वयं ही अपने योग्य वर चुनकर उससे विवाह कर लें।तब राजकुमारी शीघ्र ही वर की तलाश में चल दी। तलाश करते करते वह शाल्व देश के राजा के पुत्र सत्यवान जो जंगल में ही पले बढे थे को अपने पति के रूप में स्वीकार की।
राजकुमारी अपने देश लौटकर दरबार में पहुंची तो और राजा देवर्षि नारद जी से मंत्रणा कर रहे थे राजा ने अपनी पुत्री से वर के चुनाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने शाल्वदेश के राजा के पुत्र को पति रूप में स्वीकार किया है। जिसका नाम सत्यवान है। तब नारदमुनि बोले राजन ये तो बहुत ही दुःख की बात है क्योंकि इस वर में एक दोष है तत्क्षण राजा ने पूछा भगवन बताये वो कौन सा दोष है ? तब नारदजी ने कहा जो वर सावित्री ने चुना है उसकी आयु बहुत ही कम है। वह सिर्फ एक वर्ष के बाद मरने वाला है। उसके बाद वह अपना देहत्याग देगा। तब सावित्री ने कहा पिताजी कन्यादान एक बार ही किया जाता है जिसे मैंने एक बार वरण कर लिया है। मैं उसी से विवाह करूंगी आप उसे कन्यादान कर दें। उसके बाद सावित्री के द्वारा चुने हुए वर सत्यवान से धुमधाम और पूरे विधि-विधान से विवाह करवा दिया गया।
सत्यवान व सावित्री के विवाह के कुछ समय बीत जाने के बाद जिस दिन सत्यवान मरने वाला था वह दिन नजदीक आ चुका था । सावित्री एक-एक दिन गिनती रहती थी। उसके दिल में नारदजी का वचन सदा ही बना रहता था। जब उसने देखा कि अब इन्हें चौथे दिन मरना है। उसने तीन दिन तक व्रत धारण किया। जब सत्यवान जंगल में लकड़ी काटने गया तो सावित्री ने उससे कहा कि मैं भी साथ चलुंगी। तब सत्यवान ने सावित्री से कहा तुम व्रत के कारण कमजोर हो रही हो। जंगल का रास्ता बहुत कठिन और परेशानियों भरा है। इसलिए आप यहीं रहें। लेकिन सावित्री नहीं मानी उसने जिद पकड़ ली और सत्यवान के साथ जंगल की ओर चल दी ।
सत्यवान जब लकड़ी काटने लगा तो एकदम उसकी तबीयत खराब होने लगी तब वह सावित्री से बोला मेरी तबियत खराब हो रही है अब मई बैठ भी नहीं सकता हू तब सावित्री ने सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लिया। पुनः वह नारदजी की बात स्मरण कर मन ही माह दिन व समय का विचार करने लगी। वैसे ही वहां एक भयानक पुरुष दिखाई दिया जिसके हाथ में पाश था। वे यमराज थे। सावित्री पूछी आप कौन है तब यमराज ने कहा मैं यमराज हूं। इसके बाद यमराज ने सत्यवान के शरीर में से प्राण निकालकर उसे पाश में बांधकर दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री बोली मेरे पतिदेव को जहां भी ले जाया जाएगा मैं भी वहां जाऊंगी। तब यमराज ने उसे समझाते हुए कहा मैं उसके प्राण नहीं वापस नहीं लौटा सकता हू पतिव्रता स्त्री होने के कारण मझसे मनचाहा वर मांग लो।
सावित्री ने वर में अपने श्वसुर के आंखे मांग ली। यमराज ने कहा तथास्तु। उसके बाद भी सावित्री उनके पीछे-पीछे चलने लगी। तब यमराज ने उसे पुनःसमझाया और वर मांगने को कहा उसने दूसरा वर मांगा कि मेरे श्वसुर को उनका पूरा राज्य वापस मिल जाए। उसके बाद तीसरा वर मांगा मेरे पिता जिन्हें कोई पुत्र नहीं हैं उन्हें सौ पुत्र हों। यमराज कहा तथास्तु।
पुनः सावित्री उनके पीछे-पीछे चलने लगी यमराज ने कहा सावित्री तुम वापस लौट जाओ चाहो तो मुझसे कोई और वर मांग लो। तब सावित्री ने कहा मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र हों। यमराज ने कहा तथास्तु। यमराज फिर सत्यवान के प्राणों को अपने पाश में जकड़े आगे बढऩे लगे। सावित्री ने फिर भी हार नहीं मानी तब यमराज ने कहा तुम वापस लौट जाओ तब सावित्री ने कहा मैं कैसे वापस लौट जाऊं । आपने ही मुझे सत्यवान से सौ यशस्वी पुत्र उत्पन्न करने का आशीर्वाद दिया है। तब यमराज ने सत्यवान के प्राण वापस लौटा दिए और जीवित कर दिए। उसके बाद सावित्री जब सत्यवान के शव के पास पहुंची तो कुछ ही देर में सत्यवान के शव में चेतना आ गई और सत्यवान जीवित हो गया उसके बाद सावित्री अपने को पति को पानी पिलाकर पुनः पानी पीकर अपना व्रत तोड़ी।
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